विक्रम- बेताल (भाग 1) – साधना मिश्रा समिश्रा
सरसराती हवा, अमावस्या की रात, जंगल से उठती सांय-सांय की आवाज… कभी कोई वानर कूद जाता पेड़ की डगाल से सोते-सोते तो ऐसा लगता कि तूफान ही आ गया है । लेकिन विक्रम तो ठहरा हठयोगी, निर्विकार, निर्विचार…पर निर्विचार तो कोई भी नहीं होता है। हाँ…यह सत्य है कि निर्विचार तो कोई नहीं होता है…कोई … Read more