मैनेजर – भगवती सक्सेना गौड़ #लघुकथा

मैनेजर नाम का मजदूर दीवाली की सफाई बड़े मन से कर रहा था। रश्मि अकेली घर पर थी, दोनो बेटे दिल्ली में कार्यरत थे, दीवाली में सबके आने का कार्यक्रम था। थोड़ी थोड़ी देर में आकर काम का मुआयना कर लेती थी, अचानक उसकी नजर गयी,  मैनेजर बड़े ध्यान से टेबल पर रखी अश्विन संघी … Read more

प्रसाद – दीप्ति सिंह #लघुकथा

राशि का गोलमटोल बेटा शुभ जब से घुटने चलने लगा है माँ को खूब दौड़ाता है गिरी हुई वस्तुओं को नियत स्थान पर रखते -रखते राशि थक जाती है कभी कभार तो भोजन करना भी दूभर हो जाता है। “राशि …राशि ”  की आवाज लगाते हुए मकान मालकिन रचना ऊपर आयी।  “क्या बात है दीदी … Read more

कसक – अनु ‘मित्तलइंदु ‘

बचपन से एक दूसरे को देखते बड़े हुये थे हम दोनों । मेरे घर के सामने ही घर था उसका । उसके पिता शहर के नामी वकील थे । और हम लोग उनके घर के सामने की बिल्डिंग में थर्ड फ्लोर पर किराये पर रहते थे । मेरे परिवार में मेरी बड़ी बहन अनीता जिसे … Read more

पापा की नफ़रत- सुषमा यादव

बेटियां तो पापा की परी होती हैं,,  ,,उनका अभिमान और गौरव होती हैं,, ,,, फिर ऐसा क्या था कि उसके पापा अपनी बेटियों को अभिशाप समझते थे,, उनसे नफ़रत करते थे,,, ,,, चलिए,,,मिलते हैं एक ऐसे ही पापा से,,, ,,, मेरी हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी हुई थी, दिल्ली में,, मुझे लगभग छः महीने तक नीचे झुकना … Read more

बाबुजी – पुष्पा पाण्डेय

पंडित जी! सुने है अपनी बिटिया की शादी वकील साहब के बेटे से कर रहे हैं?” “सही सुना है आपने रामदीन जी।सब भगवान की कृपा है।” पंडित जी की बेटी वाणी भी तो रूप और गुण दोनों की मल्लिका थी। सितार वादन में निपुण काॅलेज की टाॅपर थी। वाणी आगे पढ़ना चाहती थी, लेकिन पिता … Read more

ससुराल में उपहारों से नहीं, प्यार  से सम्मान मिलता हैं.. – -संगीता त्रिपाठी

    ” मम्मी आप इतनी कम मिठाइयाँ भेज रही हो,मेरी ससुराल वाले क्या कहेँगे ड्राई फ्रूट्स भी कम हैं।शुभ अवसरों पर मेरी देवरानी के घर से इक्कीस किलो से कम मिठाई आती ही नहीं। आपने मेरी सासु माँ की सोने की जंजीर भी हल्की खरीदी जबकि प्रिया के घर से तो पूरा सेट आया था सासु … Read more

डैडी  – सीमा बी.

#पितृ दिवस विशेष हम भाई बहन जहाँ पैदा हुए थे वे एक छोटा सा गाँव था। किसान परिवार था। आज से तकरीबन 50 साल पहले गाँव में पापा को बाऊजी, पापा या बाबूजी के संबोधन से ही बुलाया जाता था पर हम पापा को डैडी कहते थे। हमारा ननिहाल दिल्ली में था तो ये शब्द … Read more

मेहमान – अनु मित्तल “इंदु”

दीवाली से कुछ दिन पहले ही हमारे सब दोस्तों के यहाँ ताश के सेशन शुरू हो जाते थे। दिवाली के अगले दिन अन्नकूट पर मैं सब को इनवाइट  कर लेती थी।सारा खाना 56 भोग बड़े शौक़ से  तैयार करती थी।हमारा छःसात फ्रेंड्स का ग्रुप था। सभी अपने परिवार सहित आते थे। कुल मिला कर 30-35 … Read more

 ” श्रेया फिर चीख पडी ” – उमा वर्मा

#चित्रकथा श्रेया अब बडी  हो गई है ।वह शादी शुदा है और एक अच्छी और सुखी जीवन बिता रही है ।लेकिन बीता हुआ कल आज भी उसका पीछा नहीं छोड़ता ।कुछ साल पहले की ही तो बात है जब—– ” क्या हुआ बेटा ” क्यो चीख रही थी तुम ” कोई बुरा सपना देखा क्या? … Read more

वादा – प्रीति आनंद

“आँटी जी, आप हमें कबसे पढ़ाना शुरू करेंगी?” नन्ही-सी लक्ष्मी का सवाल सुन सुमन चौंक गई। अतीत के अंधकार में जी रही सुमन को मानो उस छोटी बच्ची ने वर्तमान में घसीट लिया हो! कोठियों पर काम करने वाली महिलाओं के बच्चों को वह काफ़ी सालों से घर पर पढ़ा रही थी परंतु पति के … Read more

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