कर्ज़- विनय कुमार मिश्रा

“माँ! गाँव की बड़की माई शायद अब अलग खाना बनाने लगी हैं, बीमार भी रहने लगी हैं, सूरज है यहां अपने गांव का, वही बता रहा था” बेटे ने ऑफिस से आते,एक खबर की तरह बड़े ही आराम से कहा था कल, पर मेरे दिल में एक हलचल सी मच गई, उनसे मिलने की “अरुण! … Read more

सहेली बनी भाभी-नीरजा नामदेव

चारु और इरा बहुत ही अच्छी सहेली  थी। बचपन से दोनों साथ खेलती ,साथ ही स्कूल जाती । ऐसा करते करते दोनों कॉलेज  पहुंच गईं। दोनों हमेशा ही साथ रहती ।चारु बहुत ही समझदार और शांत स्वभाव की थी। इरा  चंचल  थी।उसे बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता था। जब भी इरा गुस्सा करती चारु हमेशा … Read more

छल –   किरन केशरे

“आज लड़के वाले रूपल को देखने आने वाले थे”, उसकी पढाई पूरी हो चुकी थी ,पढ़ी लिखी रूपल मध्यम वर्ग की आकर्षक नैन नक्श वाली प्यारी सी लड़की थी । लड़के वाले भी मध्यम वर्ग से थे , ओर लड़का भी स्मार्ट और मल्टीनेशनल में इंजीनियर । “साथ ही शादी के बाद अपनी कंपनी के … Read more

सांवला समझूं काला समझूं- अंजु ओझा

संगत से गुण आवत है संगत गुण जावत है समझी ललित बहुरिया ! काहे तू कलपती है कि हमारा पोता तनिक काला है या समझो साँवला है तो क्या हुआ वो तुम्हारा पति है , तुम पर अपना सब कुछ न्यौछावर करता है । कृष्ण, राम व शिव भी काले हैं उन्हें तो हम पूजते … Read more

एक रिश्ता ऐसा भी- सुधा जैन  

मेरे ससुर जी की उम्र सत्यासी वर्ष है और अभी भी वे जीवन ऊर्जा से भरे हुए हैं। हस्त रेखा विशेषज्ञ हैं। प्रतिदिन कई लोगों से संपर्क होता है। ना वे तन से कमजोर हुए हैं ना मन से ,और इन सब के पीछे उनकी सकारात्मक सोच, जीवन के प्रति दृष्टिकोण, जीवन ऊर्जा, यह सब … Read more

आप मेरे बच्चे हैं – विनय कुमार मिश्रा 

मैं बड़ा होता गया और पापा बूढ़े, ना चाहते हुए भी धीरे धीरे उनसे लगाव कम होता जा रहा है। मैं चाहता हूँ कुछ देर बैठूँ उनसे बातें करूँ पर वो एक ही बात की रट लगाने लग जाते हैं। उन्हें लगता है मैंने सुना नहीं। सुनाई उन्हें कम देता है तो मुझे भी कुछ … Read more

इन्सान – विनय कुमार मिश्रा

अभी कुछ देर पहले जिस चमचमाती काली गाड़ी में रोहित ने फ्यूल भरा था वो कुछ दूर चलकर अचानक से रुक गई। थोड़ी देर रुकी रही फिर सामने गैरेज से एक मैकेनिक आया। फिर कुछ ही देर बाद उस गाड़ी का मालिक अपनी गाड़ी से उतरकर रोहित के करीब पहुंचा और लगभग चीखते हुए कहा … Read more

दर्द का रिश्ता-गौतम जैन

चूड़ी… बिंदी …लाली …पाउडर लें लो ..! सर पर टोकरी में सामान सजाए बसंती गली गली घुम कर सामान बेचने की पुरजोर कोशिश कर रही थी ।           सुबह से शाम हो गई मगर अभी तक बोहनी भी नहीं हुई थी । चिल्लाते हुए गला भी जवाब देने लगा था । टोकरी सर पर उठाए हुए … Read more

नाटक – कल्पना मिश्रा

“ये क्या!! कितनी गंदगी कर देते हो तुम? मेरे जैसी टोंकने वाली और तुम्हारे जैसा सुनने वाला शायद दूसरा कोई नही होगा। हद है, बोलते-बोलते मेरी ज़ुबान घिस जाती है,पर तुम हो कि अब दिन पर दिन ज़्यादा ही गंदे होते जा रहे हो” सुनकर वह हँस देते तो वह फिर से चालू हो जातीं.. … Read more

सम्मान की रोटी ~~मधु मिश्रा

“अम्मा मैं बाबुजी को देखने के लिए बार बार नहीं आ सकती, मेरी भी घर की कुछ जिम्मेदारी है,अच्छा होगा कि इस घर के लिए कोई ग्राहक देखो और बेच कर वहीं मेरे पास चलकर रहो..!” कमला, अपनी माँ को अपना ये निर्णयात्मक फ़ैसला सुनाकर वापस अपने ससुराल चली गई l माँ के सामने अब … Read more

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