कर्त्तव्य-बोध –  डॉ पारुल अग्रवाल

New Project 91

#चित्रकथा रात के सन्नाटे में सड़कों पर कोई शोर नहीं था, सुनाई दे रही थी तो एम्बुलेंस की वो भयवाह आवाजें। पूरी रात घरों के आस-पास,एम्बुलेंस की आवाज़ सन्नाटे को चीरकर एक डरावना माहौल पैदा कर रही थी,हर कोई घबराया हुआ था। लोगों के हाथ अनजानों के लिए भी दुआ के लिए उठ रहे थे। … Read more

 जायदाद – विभा गुप्ता

New Project 59

    दीक्षा, तीन वर्ष की रही होगी,जब उसकी माँ का देहान्त हो गया था।रिश्तेदारों ने उसके पिता को बहुत समझाया कि दीक्षा अभी बहुत छोटी है,उसके पालन-पोषण के लिए दूसरी शादी कर लो लेकिन वे नहीं माने।कहने लगे कि कौन जाने, नई माँ मेरी बच्ची को प्यार दे या न दे और फिर अपनी औलाद होने … Read more

पितृ दिवस – डा. मधु आंधीवाल

बेटियाँ शायद मां से भी अधिक पिता से जुड़ी होती हैं । कभी कभी मां को टीसता भी है । जब बेटी स्कूल ,कालिज या ससुराल से आते ही पूछती है मां पापा कहां है। फोन पर पहला सवाल पापा कैसे हैं ।  एक पिता का संघर्ष सब सन्तान नहीं समझ पाती । हमारे समय … Read more

मैं पागल नहीं हूं – सुषमा यादव

New Project 89

#चित्रकथा ,, इस चित्र में किसी की असीम वेदना, संताप , मानसिक प्रताड़ना से पीड़ित असहनीय दर्द से उपजा हुआ क्रोध और उसकी बेबसी की चीखें परिलक्षित हो रही है,,,,,, **** इसी से संबंधित मेरी ये कहानी,,,, ,,,,वो फ्रांस यूनिवर्सिटी से एमबीए करने के बाद वहीं नौकरी करने लगी थी,,पर कुछ समय बाद उसे अपनी मां … Read more

दायाँ हाथ  – अनुज सारस्वत

New Project 88

********* “ऐसा है मम्मी मैं घर छोड़कर चला जाऊंगा या कुछ खा पीके मर जाऊंगा अगर मुझे बाईक नही दिलायी पापा ने तो ,सुगंधा की शादी के लिए तो पैसे जाने कहाँ से आगये और अपने  लड़के के लिए फटेहाली का रोना ,मैं सब समझता हूँ आज पापा से बात करके रहूंगा आप बीच में … Read more

 अनकही – नीलीमा सिंघल

New Project 87

#चित्रकथा   सारा मेरठ की रहने वाली थी बँधन से भरे घर की बेटी थी जिसको घर कम जेल कहना ज्यादा अच्छा होगा उसके अनुसार,  उसका दम घुटने लगा था ऐसे माहौल से जहाँ साँस भी उसके माता-पिता की इच्छा अनुसार ली जा सकती थी, स्कूल मे भी और अब कॉलेज मे भी उसके साथ के … Read more

आत्मा के जख्म – अनुपमा

माला अपने मां बाप को बचपन में ही खो चुकी थी , मामा मामी ने उसे बड़ा किया ,मामी ने एक पल के लिए भी माला को भूलने नही दिया की वो अनाथ है और उन पर बोझ है , हर पल ,हर बात मैं , अकेले मैं ,आने जाने वाले लोगो के बीच कोई … Read more

जंगल में रोज खून होते हैं। – संगीता अग्रवाल

New Project 86

 जल्दी जल्दी हाथ चलाओ बेटा शाम होने से पहले काम खत्म करना है !” पेड़ के तने पर कुल्हाड़ी चलाता रामदीन अपने बेटे किशना से बोला। ” हां बापू !” अठारह साल का किशना भी बहुत कुशलता से पेड़ पर कुल्हाड़ी चला रहा था अचानक रामदीन को अपनी कुल्हाड़ी पर लाल धब्बा नजर आया । … Read more

*मेरे आदर्श मेरे पिता* – सरला मेहता

मेरे पिता पटेल दुर्गाशंकर जी नागर देवास जिले के ग्राम लसुरडिया के जागीरदार थे। दूरस्थ पत्थरों में बसा मेरा गाँव देवी अन्नपूर्णा की पावन स्थली है। वर्षों पूर्व नरसिंह मेहता के वंशज, मुगलों द्वारा प्रताड़ित मेरे पूर्वज गुजरात से इस बीहड़ में आकर बस गए थे। उनके साथ अन्य वर्ण व वर्ग के लोग भी … Read more

मीठा घट – लतिका श्रीवास्तव

New Project 84

 सजा हुआ मीठा जल भरा घट…..आता जाता हर व्यक्ति आज उस सजे धजे मिट्टी के घड़ेमे भरे हुए शीतल जल को उसमे लगे हुए नल से जरूर पी रहा  था…… विनय उसमे पानी भरते हुए सोच रहा था बाबूजी कितना सही कहते है , मनुष्य का जीवन भी माटी के घट जैसा ही तो है,जब … Read more

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