श्राद्ध  –   डॉ अंजना गर्ग

“मां ! परसों बाबू जी का श्राद्ध है ।तुम दिल्ली आ जाओ। इस बार यही करेंगे “। जितेंद्र टेलीफोन पर मां को कहता है ।

“बेटा ,हर बार गांव में करती तो हूं ।  इस बार भी यही कर लेती हूं “।

” नहीं मां तुम कल आ जाओ ।  मैं गाड़ी और ड्राइवर भेज रहा हूं । आते हुए सोनीपत से  बहन मधु और उसके  बच्चों को भी बिठा लाना।  मैंने उसे फोन कर दिया है “।

अगले दिन गाड़ी में  बैठते ही मधु बोली , “माँ! अचानक भाई में यह प्यार कहां से उमड पड़ा  और वह भी बाबू जी का श्राद्ध दिल्ली में कर रहा है । जो पिछले आठ साल से बाबू जी के श्राद्ध पर  कभी गांव भी नहीं आया ।”

“मधु तुम पुरानी बातों को भूल जाओ।  सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते । अब वह बदल रहा है ” ।मां ने समझाना चाहा ।

“मां ! मुझे तो यकीन नहीं , जरूर दाल में कुछ काला है । बिना स्वार्थ के तो भाई फोन भी ना करें ।  फिर दिल्ली वाले घर में सब को बुलाना”। मधु ने मां से कहा ।

“बेटा , तू खाम खाह शक कर रही है अपने भाई पर “।

मधु चुप हो गई । गाड़ी जैसे-जैसे आगे बढ़ रही थी । मां की ममता बेटे की सारी  गलतियां माफ करके मन में हिलोरे लेने लगी ।

“मां , देख लो कोई कमी तो नहीं , बाबूजी की यही पसंद थी न “? माँ के आगे सारा सामान रखते हुए जितेंद्र ने कहा ।

“बेटा,  बहुत अच्छा किया है तूने तो। पिछली सारी कसर पूरी कर दी । जुग जुग जियो मेरे लाल ” ।

पंडित जी को जितेंद्र उसकी पत्नी और बेटे ने बड़े प्यार से खाना खिलाया ।  अंत में पैर छूकर कपड़े , मिठाई , फल और दक्षिणा दी।

” यजमान अब परिवार के नाती-नातिन और बहन को खिलाओ ,  तुम्हारा श्राद्ध रूपी यज्ञ पूर्ण हो जाएगा। मां के पैर छूकर आशीर्वाद लो”। पंडित जी ने जितेंद्र से कहा।

” पंडित जी,  मेरा आशीर्वाद तो इन बच्चों के साथ हमेशा है। आप अपनी कृपा दृष्टि इन बच्चों पर बनाए रखना”। मां ने बड़े प्यार और श्रद्धा से कहा।

“नहीं माते , पितरों के साथ-साथ आपका आशीर्वाद भी चाहिए। तभी आप के पोते की शादी में आने वाली अड़चने हटेगी”।

मधु ने मां की ओर देखा। मां की सारी खुशी और उत्साह काफूर हो गया।

अब मां मधु से कह रही थी, ” बेटा जल्दी जल्दी सब खाना खा लो। फिर चलना है। गांव में पशु तेरी काकी के भरोसे छोड़े हैं “।

                       डॉ अंजना गर्ग

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