Post View 288 कविता क्या कर रही हो कहते हुए सुलेखा ने कमरे में कदम रखा।और जैसे ही उन्होंने कदम रखा वो छुटकर पैर छूते हुए कुर्सी पर बैठने का इशारा किया।वो बैठी ही थी कि राम आ गया तो इसने शिकंजी का गिलास पकड़ाते हुए कहां ये लीजिए। पर उसका मुंह देखने लायक था। … Continue reading सफ़र – कंचन श्रीवास्तव
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