Moral stories in hindi : शाम के छह बज रहे थे, अविनाश घर आ चुका था माया भी घर पहुंच कर अपने काम में लगी हुई थी,”अम्मा!अब कैसा है आपका पैर” अविनाश कौशल्या देवी के करीब बैठते हुए बोला।”अब तो बिल्कुल ठीक लग रहा है बेटा! कौशल्या देवी अविनाश का हाथ पकड़ते हुए बोली।
“अम्मा! मैं गीता को उसके घर छोड़कर आता हूं ” अविनाश गीता की ओर देखते हुए बोला। “बेटा!अलमारी में पायल का हार रखा है, उसे गीता बेटी!को छोड़ने के बाद सही कराते आना वह सही नहीं है ” कौशल्या देवी गीता की ओर देखते हुए बोली। यह सुनकर गीता के चेहरे पर घबराहट साफ़ दिखाई दे रही थी,वह चुपचाप खड़ी कौशल्या देवी की ओर देख रही थी।
कौशल्या देवी पलंग से उठकर खड़ी हो गई, तकिया के नीचे से चाभी लेकर जैसे ही उन्होंने अलमारी खोली उनके मुंह से चीख निकल पड़ी,”अरे यह क्या हुआं “वह घबराते हुए बोली।”क्या हुआ अम्मा! क्यों घबरा रही हो क्या हुआ?” अविनाश कौशल्या देवी को पकड़ते हुए बोला।”बेटा! तुम्हारा दो लाख रूपया और मेरे सारे पुश्तैनी ज़ेवर पायल का हार,सब कुछ गायब है”
कौशल्या देवी रोते हुए बोली।”क्या कह रही हो अम्मा!ऐसा कैसे हो सकता है,आपके और माया मौसी के अलावा और कौन रहता है यहा, ध्यान से देखिए होंगे यही कही” अविनाश हैरान होते हुए बोला।”नही है बेटा! मैंने देख लिया है,किसी ने चुरा लिया है हमारे पैसे व लाखों के गहने”कौशल्या देवी चीखती हुई बोली।”मौसी!अम्मा! क्या कह रही है
आप देखिए आकर” अविनाश माया को आवाज देते हुए बोला। माया चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए कमरें में आते हुए बोली।”दीदी आपके सिवा किसी और ने तो अलमारी नहीं खोली?” माया सवाल करते हुए बोली।”क्या मतलब है मौसी! अम्मा!के सिवा और कौन अलमारी खोलेगा? अविनाश हैरानी से बोला।”बेटा! मैंने गीता से अलमारी खुलवाकर माया को पैसे दिए थे,
और किसी को मैंने कभी अलमारी की चाभी नहीं दी है ” कौशल्या देवी परेशान होते हुए बोली।”मम्मी!आप क्या कहना चाहती है?” गीता मासूमियत दर्शाते हुए बोली।”बेटी मैं तुझे तो नहीं कह रही हूं, मैंने खुद ही तुझे चाभी देकर अलमारी खोलने के लिए कहा था ” कौशल्या देवी गीता की ओर शंका भरी नजरों से देखते हुए बोली।
“अम्मा! मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है “अविनाश अपना सिर पकड़ते हुए बोला।”चलिए आप मुझे घर छोड़ दीजिए मुझे देर हो गई है ” गीता अविनाश का हाथ पकड़ते हुए बोली।”गीता! थोड़ी देर रूको, अभी चलता हूं ” अविनाश गीता को समझाते हुए बोला।”काहे की जल्दी हैं बहूरिया अभी चली जाना,यहा इतनी बड़ी चोरी हो गई है और तुम्हें जाने की जल्दी हो रही है,
आखिर यह भी तुम्हारा अपना ही तो घर है” मौसी!तुम बिल्कुल सही कह रही हो,गीता! हमारे घर में लाखों की चोरी हो गई है,तुम जाने की जल्दी क्यूं कर रही हो,कुछ दिन बाद सब कुछ तुम्हारा ही तो है ” अविनाश गीता की ओर देखते हुए बोला।गीता कुछ नहीं बोली उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी,वह यहां एक पल भी रूकना नहीं चाहती थी,
“आप समझते नहीं है, मुझे शाम को पापा को दवाई देनी पड़ती है वह मेरा इंतजार कर रहे होंगे?” गीता मासूमियत दर्शाते हुए अविनाश से बोली। अविनाश कुछ नहीं बोला दो लाख रुपए और लगभग दस लाख से ज्यादा कीमती गहने गायब थे,और गीता उसे जिस तरह आज घर छोड़ने के लिए कह रही थी,ऐसा पहले कभी नहीं कहा उसने बल्कि वह तो नौ दस बजे तक उसे घर नहीं आने देती थी ना जाने आज उसे क्या हो गया था।
“अम्मा!तुम परेशान मत हो मैं पुलिस को बुलाता हूं” अविनाश मोबाइल पर पुलिस का नंबर डायल करते हुए बोला।”लल्ला हमने पहले ही पुलिस बुला लिया है वह आती होगी,शायद आ गई है” माया घर के बाहर पुलिस की गाड़ी के सायरन की तरफ सबका ध्यान केंद्रित करते हुए बोली। कुछ ही देर में अविनाश के घर में पुलिस पहुंचकर सभी लोगों से पूछताछ करने लगी।
सभी लोगों से बात करने के बाद इंस्पेक्टर गीता से पूछताछ करने लगें, उसके सवालों का जवाब देते हुए गीता गुस्से से तमतमाने लगी।”क्या आप लोग मुझ पर शक कर रहे हैं”गीता अविनाश और कौशल्या देवी की ओर देखते हुए बोली। “शक ही नहीं तुमने ही चुराए हैं हमारे गहने और रूपए, उससे भी ज्यादा बड़ा धोखा तुम मेरे बेटे को अपने प्रेम जाल में फंसाकर दें रही हो”
कौशल्या देवी गुस्साते हुए गीता को पकड़कर चीखती हुई बोली।”यह तुम क्या कह रही हो मम्मी! अविनाश सकपकाता हुआ बोला।”मैं सही कह रही हूं बेटा! इंस्पेक्टर साहब आप इसे गिरफ्तार कर लीजिए यही बताएगी कि हमारे रूपए और गहने कहा है?” कौशल्या देवी सामने खड़े सब कुछ समझ रहे पुलिस इंस्पेक्टर से बोली।”
क्या सबूत है आपके पास, अविनाश मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी?” गीता अविनाश की ओर देखते हुए बोली। यह क्या हो रहा है अविनाश को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्या गीता ऐसा कर सकती हैं उसे यकीन नहीं हो रहा था,”अम्मा! तुम यह क्या कह रही हो?” सही कह रही हूं बेटा!इस लूटेरी को सबूत चाहिए,वह भी मिलेगा इंस्पेक्टर साहब को” गीता माया की ओर देखते हुए बोली।
“यह लीजिए साहब! ” माया अलमारी के ठीक सामने लगी गणेशजी की प्रतिमा में लगा एक छोटा सा कैमरा इंस्पेक्टर के हाथ में रखते हुए बोली। गीता खुद को जाल में फसता देखकर चुपचाप वहां से भागने का प्रयास करने लगी, मगर वह भाग न सकी उसे गिरफ्तार कर लिया गया। कैमरे में रिकॉर्ड रिकॉर्डिंग को देखकर अविनाश का सिर शर्म और घृणा से झुक गया, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस गीता पर वह जान छिडकता था, उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता था,
वह अपने पिता के साथ मिलकर लोगों को अपने रूप जाल में फंसाकर लूटने वाली एक शातिर लूटेरी थी। गीता की निशानदेही पर उसके घर से सारे गहने और रूपए बरामद करके पुलिस ने गीता के पिता शैलेन्द्र को पुलिस ने गिरफतार कर लिया। “अम्मा! मुझे माफ़ कर दो” अविनाश कौशल्या देवी से लिपटकर बच्चों की तरह रोने लगा।”उठों बेटा! इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है, जीवन साथी चुनने में कही लड़का तो कभी लड़की गलत गलत होती है,
जिससे उनका और उनका परिवार बिखर जाता है,इसलिए जीवन के फैसले रूप रंग देखकर नहीं करने चाहिए” कौशल्या देवी अविनाश को दुलारते हुए बोली।”सही कह रही हो अम्मा! तुम्हारी और मौसी की सूझ-बूझ ने इस घर के साथ-साथ मेरा पूरा जीवन बचा लिया है ” अविनाश कौशल्या और माया की तरफ़ देखते हुए अपना सिर झुकाते हुए बोला।”लल्ला मेरी और दीदी की आंखों ने उसी दिन इस लूटेरी को परख लिया था,जिस दिन तुम उसे यहां लेकर आए थे”
कहते हुए माया ने वह सारी बातें बताई कि किस तरह विकास की मदद से उन्होंने गीता के बारे में सब कुछ बताया और गीता के लिए जाल बिछाया,गीता अच्छी तरह जानती थी कि घर में सी,सी,टीवी नहीं लगा है, इसलिए उसने किस तरह गहने और रूपए अपने पिता को फोन करके यहा से गायब करा दिया, जिसे वह लोग पहले ही भांप चुकी थी, और विकास की मदद से अलमारी के सामने छोटा सा कैमरा लगवा दिया।
अविनाश यह सोच रहा था कि जीवन के फैसले लेने में मां की सहमति बहुत जरूरी है,उसकी नज़र अपने बेटे पर आने वाले हर संकट को तुरंत पहचान लेती है।”कहा खो गये बेटा! रविवार को चल रहा है ना हमारे साथ”कौशल्या देवी अविनाश को झकझोरती हुई बोली।”कहा चलना है अम्मा?” अविनाश हड़बड़ाते हुए बोला।”चलना कहा है लल्ला!दीदी ने जो बहुरिया पसंद की है तुम्हारे लिए उसे देखने चलना है” कहकर माया मुस्कुराने लगी।”क्यूं नहीं चलुंगा अम्मा! कहकर अविनाश कौशल्या देवी से लिपट गया।
माता प्रसाद दुबे
मौलिक स्वरचित अप्रकाशित कहानी, लखनऊ
परख भाग 4