पापा मैं छोटी से बड़ी हो गई क्यूँ – सुभद्रा प्रसाद : Moral Stories in Hindi

रचना अपनी शादी के सात महीने के बाद मायके आई थी | उसके पति रंजन उसे पहुंचाने आये थे | एकदिन रहकर वे दूसरे दिन लौट गये | कहकर गये कि सात दिन रहकर पापा के साथ वापस आ जाना | मैं लेने नहीं आऊंगा | रचना को यह अच्छा नहीं लगा कि रंजन सिर्फ सात दिन रहने को बोले  है ं

और वापस लेने भी नहीं आयेंगे, पर वह तो इसी में खुश थी कि उसे शादी के बाद पहली बार मायके में सात दिन रहने की अनुमति मिल गई  थी | शादी के बाद वह सिर्फ एक दिन के लिए मायके आ पाई थी | रंजन उसे लेकर सिर्फ रस्म पूरा करने के लिए एकदिन के लिए लेकर आये थे

और दूसरे दिन अपने साथ वापस लेते गये | रचना तबसे मायके आने के लिए तरस रही थी, पर आ नहीं पा रही थी | बहुत मिन्नतों के बाद इसबार उसे मायके सात दिन रहने की अनुमति मिली थी | वह मायके आकर खुश तो थी, पर सिर्फ सात दिन के बाद वापस ससुराल जाना है, यह सोचकर उदास हो जाती थी | 

             एकदिन रचना यूँ ही उदास बैठी थी, तभी उसके मम्मी – पापा उसके पास आ बैठे | पापा ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा -” रचना, तुम अपने ससुराल में खुश तो हो ना ? कोई परेशानी तो नहीं है   ना? अगर कोई परेशानी है तो हमें बताओ, हम उसे दूर करेंगे | तुम हमारी इकलौती बेटी हो | हम तुम्हारे लिए सब कर सकते हैं | तुम्हारे दोनों भाई भी तुम्हें बेहद प्यार करते हैं और तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकते हैं |”

           ” पापा, आपने मेरी शादी क्यों की? “

रचना अचानक पूछ बैठी | 

          ” क्योंकि, तुम अब बड़ी हो गई | तुम्हारी उम्र इक्कीस साल हो गई थी और हमें रंजन जैसा लडका मिल गया, जो अपने माता-पिता की इकलौती औलाद है और उसके पापा का इतना बड़ा बिजनेस है | रंजन भी उसमें हाथ बटाता है और बिजनेस दिनों दिन तरक्की कर रहा है | ” पापा ने उसे समझाते हुए कहा |

        ” पर, पापा मैं छोटी से बड़ी हो गई  क्यूँ?  काश, मैं छोटी ही रहती |” रचना ने पापा का हाथ पकडकर कहा |

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          ” यह तो प्रकृति का नियम है |समय के साथ सभी लोगों की उम्र सदा बढती ही रहती है | सभी छोटे से बडे होते हीं है | तुम छोटी से बड़ी हो गई | ग्रेजुएशन पूरा कर लिया | हमने तुम्हारी शादी एक अच्छे लडके के साथ अच्छे घर में की है | तुम्हें परेशानी क्या है? ” पापा ने   कहा |

         ” पापा, परेशानी या कमी तो कुछ नहीं है, पर यहाँ जैसा रह नहीं पाती हूँ | ” रचना बोली | 

         ” क्या मतलब है तुम्हारा? रचना बेटी, साफ, साफ, बताओ, क्या बात है? तुम्हें परेशानी क्या है? ” मम्मी ने उसका सिर अपने गोद में लेते हुए कहा |

           ” बस यही तो परेशानी है मम्मी | न तो मैं यहाँ जैसा देर तक सो सकती हूँ, न हीं कोई मुझे सुबह की चाय बनाकर देता है, न हीं मै पैर पसार कर टेलीविजन देखते हुए जोर – जोर से ठहाके लगा सकती हूँ, न हींं जब जी चाहे शापिंग, ब्यूटीपार्लर या होटल जा सकती हूँ | न हीं सिरदर्द करने या तबियत खराब होने पर कोई इसतरह  गोद में सर रखकर प्यार करता है |

यहाँ जैसा मनचाहा कुछ भी नहीं कर पाती, न हीं रह पाती हूँ | यहाँ की बहुत याद आती  है | सबकुछ है, पर अपने मन का नहीं | हर समय हर बात में कुछ न कुछ टोकाटोकी होती रहती है | यहाँ आने के लिए , आपलोगो से मिलने के लिए भी मुझे कितना कहना पडा | मैं तो तरस कर रह गई, आपलोगो से मिलने के लिए | तभी तो मुझे लगता है, मैं छोटी से बड़ी हो गई, क्यूँ? अभी कुछ दिन और छोटी रहती, आपलोगो के पास रहती, अपनी मनमर्जी से जीती| ” कहते हुए रचना उदास हो गई | 

         ” बेटा एक न एक दिन तो तुम्हें बड़ी होना ही था | हमें तुम्हारी शादी करनी ही    थी | ऐसा तो होता हीं है | मैं भी तो मात्र अठारह वर्ष की ही थी जब इस घर में शादी होकर आई थी | शुरू शुरू में मुझे भी ऐसा ही लगता था ,पर देखो अब यही मेरा घर    है  | ऐसा अधिकतर लडकियों के साथ होता है | 

हर घर के कुछ संस्कार और नियम होते हैं | हमने तुम्हें जो संस्कार दिये है, उस के अनुसार उस घर , परिवार में सामंजस्य बैठाने की कोशिश करो | वे लोग बुरे नहीं    हैं | दामाद जी ने मुझे बताया है कि तुम में अभी भी बचपना है और तुम बात – बात पर रूठ जाती हो | अपने बिजनेस के कामों में व्यस्त रहने के कारण ही वे तुम्हें इतने दिन तक नहीं ला पाये और वापस ले जाने नहीं आ पायेंगे | 

मुझे ही देखो, तुम्हारे नानी घर कितना जा पाती हूँ | दामाद जी और घर के सभी लोग तुम्हें बहुत प्यार करते हैं और तुम्हारे भले के लिए  हीं कोई बात कहते हैं | शादी के बाद जीवन में कुछ बदलाव तो आते हीं हैं | तुम ये बात जितनी जल्दी समझ पाओगी, उतनी जल्दी अपने  घर में व्यवस्थित हो पाओगी | ” मम्मी प्यार से उसका सिर सहलाते हुए बोली | 

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           ” सच मम्मी| तुम्हारे साथ भी ऐसा  हीं हुआ था | ” रचना सोचते हुए बोली -” तुम्हारा मन भी नानी घर जाने के लिए इसीतरह तरसता होगा ना |”

            ” हाँ बेटा, तुम्हारी मम्मी ठीक कहती है | मूझे  तुम्हारी बातें सुनकर तुम्हारी मम्मी की भावनाओं का एहसास हो रहा है | अब मैं भी तुम्हारी मम्मी को अपने मन का करने दूंगा, ज्यादा रोकटोक नहीं करुंगा | हम जब तुम्हें ससुराल छोडने जायेंगे , तो एकदिन पहले निकलेंगे | वो एकदिन हम तुम्हारे नानी घर रूकेंगे | तुम वहाँ सबसे मिल लेना और मम्मी को कुछ दिनों के लिए वहाँ छोड़ देगें| ठीक है ना |” पापा ने मम्मी की ओर देखते हुए कहा | 

           ” जी पापा, यह तो बहुत अच्छी बात है | है ना मम्मी ? ” रचना हंसते हुए मम्मी के गले लग गई | मम्मी – पापा भी हंसने लगे | 

 

# पापा मैं छोटी से बड़ी हो गई क्यूँ

 

स्वलिखित और अप्रकाशित

सुभद्रा प्रसाद

पलामू, झारखंड

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