बेटी ही रहने दो – गीता चौबे “गूँज”

         फोन का रिसीवर रखने के बाद रजनी के मन में अपनी बिटिया रंजीता के आखिरी शब्द बहुत देर तक गूँजते रहे…  ‘बेटी को बेटी ही रहने दो, उसे बेटा मत बनाओ…’   रजनी अवाक रह गयी और गहराई से सोचने लगी कि उससे चूक कहाँ हुई। इतना आक्रोश कैसे भर गया उसकी बेटी के मन में। … Read more

बेटी ने अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना सीख लिया। – ममता गुप्ता

वह (सोनाली) अपने ऑफिस से निकलने वाली ही थी की बारिश शुरू हो गई बारिश रुकने तक उसने ऑफिस में रुकना ही ठीक समझा अपनी माँ(मीना) को फोन करके कह दिया कि-“माँ आप मेरी चिंता न करना बारिश की वजह से आज घर देरी से आना होगा माँ ने कहा ठीक है अपना ख़्याल रखना। … Read more

गलती – भगवती सक्सेना गौड़

बड़े नाजो से पली शाम्भवी का विवाह तय हो गया था, पापा, मम्मी की इकलौती बिटिया बचपन से अपनी हर इच्छा पूरी करती आई थी। छोटे से कस्बे में आराम से दिन गुजर रहे थे, अर्थशास्त्र लेकर स्नातक की डिग्री भी ले चुकी। एक ही इच्छा मन की मन मे रह गयी, वो नौकरी करना … Read more

हम मम्मी पापा भी तो हैं !! – मीनू झा 

मैं सिर्फ आपकी पत्नी नहीं,किसी की बेटी भी हूँ,जिनकी वजह से दुनियाँ में आई हूँ आप चाहते हैं उनकी परवाह छोड़ दूँ। छोड़ दूंँगी पर मेरी तरह आपको भी अपने माँबाप से सारे रिश्ते तोड़ने होंगे-चित्रा आवेश में थी। देखो..मेरे माँ बाप को बीच में ना लाओ तो बेहतर है, इकलौता बेटा हूँ मैं उनका..मैं … Read more

सासू मां!! आखिर चुप्पी कब तक?? –  कनार शर्मा

रिश्तो के बीच कई बार छोटी-छोटी बातें बड़ा रूप ले लेती है… सारिका तुम घर की बड़ी हो छोड़ो ना इन सब बातों को… क्यों अपना दिल जलाती हो?? तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारे लिए बिल्कुल वैसा ही रानी हार दोबारा बनवा दूंगा… मनोज ने अपनी पत्नी को हर बार की तरह एक बार … Read more

फैसला – डा.मधु आंधीवाल

सविता जी का मन आज बहुत विचलित था । अन्धेरी रात की तन्हाई में शोचनीय स्थिति में वह खिड़की में खड़ी हुई थी । दोनों बच्चे अपनी अपनी गृहस्थी में फंसे हुये थे । बेटी और बेटा दोनों चाहते थे कि मां रिटायर मैन्ट के बाद उनके साथ रहे पर सविता जी अपने इस मकान … Read more

अन्याय या मजबूरी – कमलेश राणा

शालिनी अपने पिता की चार संतानों में सबसे बड़ी थी। पिता मजदूरी करते और माँ सब्ज़ी का ठेला लगाती थी। गरीबों के बच्चे जल्दी ही बड़े और समझदार हो जाते हैं जिंदगी की पाठशाला उन्हें लोगों की नज़रें और उनकी तासीर पढ़ना अच्छे से सिखा देती है।  शालिनी 10 साल की उम्र में ही चौका … Read more

वो रात – अनुज सारस्वत

जनवरी की उस शाम धारासार बरसात शुरू हो गई थी. वह नखशिख भींगा हुआ था और जंगल में पेड़ के नीचे खड़ा कांप रहा था, तभी जोर की बिजली कड़की और उसने देखा, उस पेड़ के ठीक पीछे एक मकान था। वह मकान लकड़ी का टूटा हुआ था, लेकिन कुछ रोशनी सी चमक रही थी।उस … Read more

ज़िंदगी – बेला पुनिवाला

    आज मैंने गाजर का हलवा बनाया था, तो सोचा हेमा आंटी को जाकर दे आती हूँ, वह हमारे पड़ोस में ही रहती हैं और उनसे मेरा रिश्ता एक माँ-बेटी के रिश्ते जैसा ही है। इसी बहाने उनसे मिल भी लूँगी, दो दिन से ऑफिस के काम की वजह से उनसे मिल ही नहीं पाई। मैं … Read more

बचपन की गलियां—कहानी—देवेन्द्र कुमार

तीनों सखियाँ—रचना,जया और रंजना सोसाइटी के पार्क में बैठीं धूप का आनन्द ले रही थीं। छुट्टी का दिन, सर्दियों का मौसम—बच्चे घास पर उछल- कूद करते हुए खिलखिला रहे थे। हिरणों की तरह दौड़ते बच्चों को देख कर तीनों मुस्करा उठीं। रचना ने कहा—‘ इन खिलंदड बच्चों को देख कर अपना बचपन याद आ जाता … Read more

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