मैं यह अन्याय नहीं कर सकता –  विभा गुप्ता 

  एमबीए करते ही वरुण को दिल्ली के एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिल गई।रहने की व्यवस्था होते ही उसने अपनी माँ वसुधा जी को भी अपने पास बुला लिया।दरअसल वरुण के पिता एक सरकारी मुलाज़िम थें।वरुण जब पाँच वर्ष का रहा था,तभी उसके पिता की मृत्यु हो गई थी।उसकी माँ के लिए अकेले बेटे का … Read more

लेखनी की कहानी उसी की जुबानी – सुषमा सागर मिश्रा

   सेवानिवृत्ति के बाद समय के बंधन से तो सरला मुक्त हो चुकी थी मगर अब समस्या यह थी कि वह  अपने खाली समय का सदुपयोग कैसे करे ,जीवन भर ईमानदारी और परिश्रम से अनुशासित जीवन जीने वाले सरला को अब खाली बैठना बोझिल  लगने लगा था वह जब भी वह खाली बैठी तो वह अपने … Read more

सारी अपेक्षाएं मुझसे ही क्यों..? – प्रियंका मुदगिल

“अरे अंजू !! यह तुम क्या कर रही हो…?माना कि घर में  मेहमान आने वाले हैं  पर इसका मतलब यह तो नहीं कि तुम थोड़ा बहुत खाना बनाओगी और बाकी सब बाहर से मंगाओगी…मेरे बेटे पर थोड़ा तो रहम करो…कितनी मेहनत से वह चार पैसे कमाकर घर में लाता है..”रत्ना जी ने अपनी बड़ी बहू … Read more

नज़रिया – पुष्पा ठाकुर

वो एक दस वर्ष का बच्चा है ,जिसकी मां उससे घर के छोटे बड़े काम ले रही है।ऐसा नहीं कि वो खुद बीमार हो।    वो पूरी तरह स्वस्थ है ,संपन्न है फिर भी अक्सर उसका बच्चा कभी आंगन में झाड़ू लगाता दिखाई दे जाता ,कभी पौधों को पानी देता,कभी बाजार से सामान लाता,कभी कभी छोटी … Read more

 ‘ अन्याय ‘ –  विभा गुप्ता

  नवीनचन्द्र जी ने अपने दोस्तों को चाय पर बुलाया था।पत्नी के गुज़र जाने के बाद उनकी रिटायर्ड लाइफ़ ऐसे ही गुज़र रही थी।कभी वे मित्रों के घर चले जाते तो कभी उन्हें ही अपने घर पर बुला लेते।बेटे-बहू उनका बहुत ख्याल भी रखते थें।इसीलिए जब उन्होंने मित्रों के आने की खबर अपनी बहू अलका को … Read more

मेरा परिवार-मेरी दुनिया – निधि जैन

रहें ना रहें हम, महका करेंगे…..रेडियो पर एक प्रोग्राम में गाना चल रहा था, शाम के यही कुछ 4 बज रहे थे,  आरती भी गुनगुनाती हुई चाय बना रही थी, बारिश अपने ज़ोर पर थी, आज़ चाय के साथ कुछ अच्छा सा बनाओ आरती, रमेश ने रसोई में आते हुए कहा। हां अब बारिश हो … Read more

ठगनी – कमलेश राणा

निरंजन जी और मधु दोपहर में आंगन में धूप का आनंद ले रहे थे। घर के बाहर गली में बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे उनकी नोंक झोंक दोनों को सुख दे रही थी । बचपन के दिन भी बड़े अलमस्त होते हैं पल में लडाई पल में सुलह हो जाती है। तभी एक महिला गेट … Read more

अन्याय कब तक रहेगा – नेकराम

आज से 45 वर्ष पहले की यह कहानी शुरू होती है सन 1992  दिल्ली कि एक छोटी सी पुनर्वास कॉलोनी गोकुलपुरी से – मोहल्ले में एक छोटे से कारखाने में काम करते हुए एक नाबालिक बच्चा जो अपने नन्हे नन्हे हाथों से भारी भारी मशीनों पर काम करने को मगन था उसे एक धुन सवार … Read more

“कलेजा निकालने की कोई जरूरत नहीं है” – सुधा जैन

  “अरे यह क्या दिन भर सास बहू वाली कहानियां पढ़ती रहती हो, दूसरा कुछ पढ़ा करो “ पतिदेव ने अपनी पत्नी से कहा, तब पत्नी मुस्कुरा कर बोली ” यह इतनी जगत व्यापी, सर्वव्यापी समस्या है कि न वर्तमान में ,न भूत मे न भविष्य में इस समस्या का हल नजर आता है ….करें … Read more

“कलयुगी अन्याय  – कविता भड़ाना

अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए सुरेंद्र जी गहरी सोच में थे, चोटों की वजह से पूरा शरीर भयंकर दर्द कर रहा था पर शरीर की चोटों से अधिक उनका मन आहत था। पांच भाईयो में सबसे छोटे और सबसे अधिक सेहतमंद  सुरेंद्र ने कभी सपने में भी नही सोचा था की उनके सगे भाई … Read more

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