सहारे की बैसाखी – मंजू तिवारी

मम्मी ये ऐसे वैसे कपड़े नहीं पहनते हैं इनको तो ब्रांडेड कपड़े चाहिए मम्मी पापा भी बड़े खुश होकर अपनी बेटी के कहे अनुसार दमाद को बेटी को और उसके बच्चों को अच्छे अच्छे कपड़े दिलाते कभी पैसे देते बेटी जब भी आती एक गाड़ी भर कर सामान के साथ उसकी विदा की जाती,,, बेटी … Read more

एक दूसरे का सहारा…… – अनु अग्रवाल

वाह! दीनदयाल…पूरी कॉलोनी में तेरे परिवार के ही चर्चे रहते हैं….तीनों बहुओं पर तेरा पूरा नियंत्रण है…….आजकल कहाँ देखने को मिलते हैं संयुक्त परिवार…..बच्चे अपनी मनमामी करते हैं और हम बुड्ढे बुढ़ियों को पुराने फर्नीचर की तरह घर में पटक दिया जाता है……आज्ञा लेना तो दूर की बात….. बच्चे बताना भी जरूरी नहीं समझते लेकिन … Read more

हीटर –  उषा भारद्वाज

 हाड़ कंपाती हुई ठंड ,चाहे कितने भी गर्म कपड़े पहन लो लेकिन ठंड दूर नही हो रही थी।  मोहन को आज  फिर से लौटने में देर हो गई। जैसे ही वह घर के अंदर पहुंचा मां की आवाज सुनाई पड़ी- आ गया बेटा। ” हां मां”- मोहन के शब्दों में लाचारी और मजबूरी पूरी तरह … Read more

“बाबा,आपको बेसहारा कैसे कर दूं!” – अमिता कुचया

रजनी आज सुबह ही बाबा के कमरे में झाड़ू लगा रही थी ।तभी उसने देखा कि बाबा के चश्मे से ग्लासेस टूट चुके हैं।तब उसने सोचा, चलो जब बाबा उठेंगे ,तब उनसे बात करुंगी और वह दूसरे काम में लग गई। बाबा को डर था कहीं रजनी बहू को पता न चल जाए कि चश्मे … Read more

बस!माँ आपसे ही सीखा है। – ममता गुप्ता

“दीपू को उसकी नानी जाते वक्त चीज खाने के लिए पैसे देकर गई थी,उन्ही पैसो को दीपू अपनी गुल्लक में डाल रहा था तो उस वक़्त राधा वहाँ आई औऱ दीपू की गुल्लक देख कर कहने लगी-“”अरे मैं भी तो देखूं मेरे दीपू ने अपनी गुल्लक में कितने पैसे जोड़ रखे है। राधा अपने बेटे … Read more

“मैं तुम्हारी सासू मां हूं, मां नहीं” – अनिता गुप्ता

वह अपनी तकलीफ किसी को ना बताती । बचपन से ही मेघना की ऐसी ही आदत थी। मम्मी – पापा उसकी उतरी हुई शक्ल देखकर ही समझ जाते कि आज हमारी लाड़ली की तबियत ठीक नहीं है। या ऐसा भी कहा जा सकता है कि मेघना के बोलने के पहले ही पैरेंट्स उसकी तकलीफ समझ … Read more

डूबते का सहारा’ – अनीता चेची

कहते हैं बच्चे का मन कोरी स्लेट की तरह होता है जो लिखते हैं ,वहीं अंकित हो जाता है।   जब मैं पांचवी कक्षा में पढ़ती थी और महज 10 वर्ष की थी। उस समय हमारे घर में 6-7 भैंसे थी। उन मवेशियों को चराने के लिए हमें पहाड़ में  जाना पड़ता ।  गांव में … Read more

बेटियां हमारा अभिमान होती है –  ममता गुप्ता

रिया अपने माता पिता की इकलौती संतान थी। पिता मोहन व माता राधा अपनी बेटी की सभी ख्वाहिशों को पूरा करने की कोशिश करते थे,लेकिन पिता मोहन एक प्राइवेट स्कूल में चपरासी का काम करता था, औऱ माँ घर के कामकाज से फ्री होकर सिलाई का काम करती थी…!दोनों का एक ही सपना था कि … Read more

अन्न का सम्मान ही संस्कृति का मान है – नूतन योगेश सक्सेना 

“अरे वाह ये तिकोनी – तिकोनी बर्फी कितनी अच्छी है, और ये लड्डू…… ये लड्डू कितना मीठा है……. मां – मां देख पूरी भी हैं नरम – नरम इस थाल में और और ये बीच में क्या रखा है, मां देख ना क्या कहते हैं इसे…… हां याद आया पन्द्रह नंबर फ्लैट वाली मेमसाब जबरदस्ती … Read more

सहारा – अंतरा

आज खिचड़ी का दिन है.. रमिया ने मिट्टी के चूल्हे पर खिचड़ी का पतीला चढ़ाया तो बरबस ही मन अतीत की गलियों में घूमने लगा।  बंसी को भी खिचड़ी बेहद पसंद थी । खिचड़ी के दिन तो जैसे उसकी मन मांगी मुराद पूरी हो जाती थी। भले ही रमिया के पास खाने को फांके थे … Read more

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