इस लँगड़े की वजह से घर टूटता जा रहा है…..
घर चाचाजी की वजह से नहीं…… तुम्हारे स्वभाव के कारण टूटेगा…शायद तुम भूल रहे हो कि घर मेरे चाचा जी का है ।
पता नहीं अपाहिज कब तक हमारे सिर पर बैठा रहेगा …. बिना मतलब की ज़िम्मेदारी पल्ले पड़ गई ।
ख़बरदार माधव , अगर आपने अब कुछ भी कहा तो पछताओगे……..ये बात नई नहीं है मैंने शादी से पहले ही तुम्हें बता दिया था कि चाचाजी मेरे पिता भी है और माँ भी ….. क्या मैंने नहीं बता दिया था कि मैं एकमात्र उनका सहारा हूँ और आज तुम्हें यह कहते लाज नहीं आई कि मैं क्यों उनकी ज़िम्मेदारी उठा रही …….आगे कुछ मत बोलना…… डरो भगवान से , हर एक को उम्र के इस दौर से गुज़रना पड़ता है ।मैं रोज़-रोज़ की इस चिक-चिक से परेशान हो चुकी हूँ……
सचमुच पायल की आँखों में आँसू आ गए पर वह माधव के सामने एक आँसू भी दिखाना नहीं चाहती थी । माधव …. जिसे वह दुनिया का सबसे अच्छा दोस्त और जीवनसाथी समझती थी , उसने पायल के विश्वास को ही नहीं तोड़ा था परंतु दिल के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे ।
जिन चाचाजी के बलबूते पर उसका अस्तित्व टिका है, जिन्होंने अपने सारे सुख-चैन नन्ही सी पायल के लिए क़ुर्बान कर दिए, जिन चाचाजी ने उसकी माँ बनकर उसकी फ़रमाइशों को पूरा किया , भाई-बहन बनकर उसे रुलाया-मनाया और पिता बनकर पायल को दुनिया का सामना करने की ताक़त दी …..आज उन्हीं चाचाजी को माधव ने लँगड़ा और अपाहिज कहा…. शुक्र था कि चाचाजी उस समय घर पर नहीं थे वरना वह उनके सामने कैसे नज़रें मिलाती ।
पायल कोई डेढ़ साल की थी कि एक रात ऐसा भूकंप आया कि उसके क़स्बे को निगल गया । कुल मिलाकर बीस व्यक्ति बचे होंगे , जिनमें पायल और उसके चाचा जी भी थे । चाचाजी जब दो साल के थे तो पोलियो ने उनकी टांगों पर ऐसा प्रभाव डाला कि वे हमेशा के लिए अपाहिज होकर बैशाखी के सहारे चलने लगे । माता-पिता ने जगह- जगह दिखाया , झाड़-फूँक करवाई , ग्रहशांति के उपाय करवाए पर आख़िर में उन्हें डॉक्टर की इस बात पर विश्वास करना पड़ा कि उनके बेटे की टाँगों पर पोलियो का असर हो चुका है ।
पायल के चाचाजी राकेश सिंह पढ़ाई में तेज थे । अपनी शारीरिक असमर्थता को उन्होंने कभी कैरियर के बीच नहीं आने दिया । वे पढ़ते गए और जीवन में आगे बढ़ते हुए बैंक प्रबंधक के रूप में नौकरी करने लगे । चरित्र और आचरण में हीरा थे पर सूरत में ठीक उल्टे । कहते हैं कि हीरे की परख जौहरी को होती है । यही कारण था कि नौकरी लगने पर विवाह तो हो गया पर ना तो उस लड़की को पति की शक्ल भाई और ना ही सरल स्वभाव । वह विवाह के दो महीने के भीतर ही कई आरोपों के साथ उन्हें छोड़कर चली गई ।
उसके बाद भाई-भाभी और माँ ने जी तोड़ कोशिश की कि किसी तरह राकेश सिंह का घर पुनः बस जाए पर पहली बीवी के चले जाने से वे एकदम टूट गए थे इसलिए उन्होंने परिवार के सामने हाथ जोड़कर माफ़ी माँग ली । और एक रात जब वह अपनी माँ के साथ नीचे की मंज़िल पर सो रहे थे , उस दिन भाभी को तेज बुख़ार था इसलिए दादी पायल को साथ लेकर आ गई ….
– बहू , आज पायल को मैं ही सुला लूँगी… वैसे भी रात को तो बोतल से ही दूध पिलाते हैं, तू आराम कर ।
कहीं रात में परेशान ना करे …..
ना , कुछ ना करेगी ….. रह लेती है मेरे पास ।
उसी रात तीन- साढ़े तीन बजे ऐसा भूकंप आया कि भाई-भाभी का तो मलबे में कुछ पता नहीं चला पर दादी की छाती से चिपकी पायल और राकेश सिंह बच गए ।
माँ के चले जाने पर पायल का पालन- पोषण ही राकेश सिंह के जीवन का लक्ष्य बन गया ।घर तो उजड़ ही गया था, वे अपना बोरी- बिस्तर उठाकर दिल्ली आ गए । बैंक की नौकरी में हर तीन साल बाद तबादले के कारण, पायल के साथ काफ़ी परेशानी होती थी ….. कई बार मित्रों और रिश्तेदारों ने पायल को होस्टल भेजने की सलाह दी पर उन्होंने कभी एक रात भी पायल को आँखों से दूर नहीं किया I
पायल के कॉलेज में पहुँचने पर उन्होंने दिल्ली वाले घर को अपना स्थायी निवास बना लिया ताकि बिटिया को पढ़ाई में कोई दिक़्क़त ना हो….
कोचिंग के दौरान पायल की मुलाक़ात माधव से हुई । धीरे-धीरे दोस्ती हो गई । दोनों का ही अच्छे विभागों में नौकरी के लिए चयन हो गया । एक दिन माधव अपनी माँ के साथ पायल का हाथ माँगने चाचाजी के पास पहुँच गए ।
भाई साहब, हमें केवल पायल बेटी चाहिए । दोनों बच्चे एक दूसरे को समझते हैं…..इससे अच्छा क्या होगा?
हाँ बहनजी …. फिर भी मुझे दो-तीन दिन का समय दीजिए ।
आँटी , चाचाजी ही मेरे माता-पिता सब कुछ है और ये मेरी ज़िम्मेदारी है…. कल को आपको इससे दिक़्क़त तो नहीं होगी?
अरे पायल ! हम बच्चे थोड़े ही हैं , मैं माँ को सब कुछ बता चुका हूँ….. क्यों, बार-बार कहकर हमें हल्का करती हो । मेरे लिए जैसी माँ हैं वैसे ही चाचाजी …… विश्वास रखो ।
दोनों माँ- बेटे ने चाशनी में डूबा-डूबाकर ऐसे शब्दों का प्रयोग किया कि पायल और चाचाजी उनकी बातों में आ गए ।
चाचाजी ने अपने जिगर के टुकड़े पायल की ऐसी शादी की कि शायद उसके माता-पिता भी ना कर पाते । दो महीने बाद ही माधव ने कहा—-
पायल , हम चार तो प्राणी है । मैं अपना ट्रांसफ़र चाचाजी के घर के पास वाली ब्रांच में करवा लेता हूँ, तुम्हें भी वहीं से पास पड़ेगा, बार-बार आने-जाने का झंझट नहीं रहेगा तथा माँ को भी चाचाजी के रुप में बड़ा भाई मिल जाएगा …… बताओ, तुम क्या कहती हो?
पायल के मन की मुराद जैसे सच हो गई क्योंकि चाचाजी से दूर होकर , उसे उनकी बहुत चिंता रहती थी क्योंकि उसके विवाह से एक महीने पहले चाचाजी रिटायर हो चुके थे ।
पर कुछ ही दिनों में घर का माहौल कुछ खिंचा-खिंचा सा रहने लगा । घर का खर्चा पायल ही करती थी ….. बहुत ज़्यादा हुआ भी तो कभी-कभी माधव महीने में एक आध बार फल ले आता ।
शादी के साल भर में पायल की गोद में धृति आ गई । अब तो बेचारी पायल की ज़िंदगी लट्टू की तरह हो गई । माधव और उसकी माँ का सहयोग शून्य था । कभी किसी काम में ज़रा सी देर हो जाती तो माधव कह उठता —-
तुम्हें अपनी बेटी और अपने चाचा से फ़ुरसत मिलेगी तो दूसरा काम करोगी…..
जो भी करती हूँ, मैं ही करती हूँ ….. चीखना- चिल्लाना मुझे भी आता है पर मुझे दूसरों पर आरोप लगाना सिखाया नहीं गया….
तुम्हारा क्या मतलब है बहू ? मैंने माधव को कुछ नहीं सिखाया…
मम्मी प्लीज़…. बात को ग़लत दिशा में मोड़ कर ….
देख लीजिए….अपनी लड़की को…. इसे बड़ों के साथ बोलने की तहज़ीब नहीं ।
अरे बेटा…. मुझे और बहनजी को बीच में क्यों लाते हो…. चलिए बहनजी…. धृति को लेकर पार्क में चलते हैं…. तब तक दोनों का ग़ुस्सा शांत हो जाएगा — बात को पलटने के इरादे से चाचाजी अक्सर कह देते थे ।
पर आज पायल अंदर तक हिल गई । उसने अपनी बचपन की सहेली मुग्धा को फ़ोन मिलाया और तुरंत धृति को लेकर उसके घर पहुँच गई । पहले जी भर कर रोई क्योंकि जिस आदमी पर उसने चाचाजी के बाद भरोसा किया वो तो बनावटी निकला ।
मुग्धा…. मैं चाचाजी के आत्मसम्मान को दाँव पर नहीं लगाना चाहती इसलिए कैसे भी करके जल्दी से जल्दी कोई मकान किराए पर दिलवा दो ।
सचमुच पायल की प्रार्थना और मुग्धा की कोशिश से अगले ही दिन उसी सोसायटी के दो टावर छोड़कर एक फ़्लैट ख़ाली मिल गया ।
—- मम्मी जी , कल पूर्णिमा है । हम लोग नए फ़्लैट में शिफ़्ट हो रहे हैं….. शायद आपको माधव ने बता दिया होगा ?
छोटे पापा , बस दो टावर बीच में है…. कोई परेशानी नहीं होगी… चिंता मत करना । आपकी बेटी सब सँभाल लेगी ।
माधव और उसकी माँ चुपचाप अलमारी से कपड़े निकालकर पैक करने लगे ।
पायल शुक्रवार की शाम धृति को लेकर चाचाजी के पास चली जाती, शनिवार को दोनों वहीं रहती तथा रविवार की सुबह वापस घर लौट आती । शुरू के कुछ सालों में उसे मेहनत करनी पड़ी क्योंकि हर हफ़्ते माँ- बेटा उस पर व्यंग्य कसने से बाज नहीं आते थे पर जब उन्होंने देखा कि पायल बिना विचलित हुए, अपने सोच समझ कर लिए निर्णय पर अडिग है तो धीरे-धीरे उन्होंने कहना सुनना बंद कर दिया ।
दादी, चलो ना नाना घर चलते हैं…. आपको पता है आज नानू के लिए खीर बनी है…
तुम्हें कैसे पता ? स्कूल बस से लेने आई माधव की माँ ने कहा।
अरे मम्मा ने खाने बनाने वाली आँटी से कहा था कि बहुत दूध पड़ा है…. कल खीर बना देना …. चलो ना दादी … चलो ना…
धृति की ज़िद के आगे उनकी एक ना चली क्योंकि बैग लटकाए धृति नाना के टावर की ओर बढ़ गई थी । वे धृति को छोड़कर भी नहीं जा सकती थी ।
रूक तो …. धृति ….
जब तक वे धृति के पास पहुँची , दरवाज़ा खुल गया था और सामने खड़े थे राकेशसिंह
—— नमस्ते बहनजी…. आईए , आइए …..बैठिए, आपकी तो साँस फूल रही है, मैं पानी लाता हूँ ।
नहीं…नहीं भाई साहब, मैं खुद पानी ले लूँगी…. पानी क्यों … मैं तो धृति के साथ खीर खाऊँगी ।
कब दिन ढलने लगा … पता ही नहीं चला । जब शाम को पायल ने आकर सास को फ़ोन किया तो वे बोली—-
पायल, जब माधव आ जाए तो अपने चाचाजी के घर आ जाना … पायल ! मेरी नासमझी थी या लड़के की माँ होने का अहम था जो मैं तुम्हारे चाचाजी का सम्मान करना माधव को नहीं सिखा पाई …. बेटा माफ़ कर देना ।
तभी माँ सके हाथ से फ़ोन लेकर माधव बोला—-
पायल , मैं भी यहीं पहुँच गया हूँ । आज बरसों बाद जब चाचाजी का फ़ोन आया और उन्होंने यहाँ आने के लिए कहा तो मैं मना नहीं कर पाया । अपनी गलती तो मुझे कई साल पहले ही पता चल गई थी…. जब नए फ़्लैट में जाकर सारा घर खर्च करना पड़ा …. उस दिन आँख खुली थी कि तुम निःस्वार्थ भाव से , एक साथ रहने के लिए कितना कुछ सह रही थी…. तुम दोनों बाप-बेटी ही हमें पाल रहे थे और मैं कितना ख़ुदगर्ज़ निकला कि अहसान मानना तो दूर , मैंने तुम्हारी भावनाओं को नहीं समझा । पर मुझे ख़ुशी है कि तुम मेरी बेटी की माँ हो जो अपने पिता के आत्मसम्मान को बचाने के लिए सही निर्णय लेना जानती है ।
उधर पायल की आँखों से अविरल आँसू बह रहे थे ।