नफरत – कमलेश राणा

#चित्राधारित कथा

समर एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पद पर कार्यरत था।पत्नी माधवी भी अस्पताल में नर्स थी।काफी मनन्तों के बाद उन्हें दो कन्यारत्न की प्राप्ति हुई।एक छोटा सा घर संसार,खुशियों से भरा-पूरा,जीवन की हर सुख सुविधा से परिपूर्ण,,,,

दोनों बेटियाँ पढ़ने में बहुत ही होशियार,,, समर अपनी बेटियों को देख-देख कर फूला नहीं समाता,ठीक उसी तरह जैसे किसान अपनी लहलहाती फसल को देख कर खुश होता है।कहता,,”मेरी बेटियाँ अभिमान हैं मेरा,आप देखना एक दिन ये मेरा नाम रोशन करेंगी।”

पर होनी को कौन टाल सकता है,,,,,एक दिन समर के सीने में तेज दर्द हुआ और अस्पताल ले जाते हुए ही सांसो ने साथ छोड़ दिया।

छोटी बेटी मात्र साढ़े तीन साल की थी और बड़ी सात साल की।माधवी का रो-रो कर बुरा हाल था,,,उसे ढाढ़स बंधाने के लिए भी शब्द नहीं मिल रहे थे,,,,जिस उम्र में विवाह होते हैं आजकल ,,,,,,उस उम्र में ही उसे पति विछोह का दारुण दुख झेलना पड़ रहा था,,,,सारी दुनिया वीरान हो गई थी उसके लिए,,,,

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पर कहते हैं न वक़्त सबसे बड़ा मल्हम होता है,वह बड़े से बड़े घाव भर देता है,,,अपने लिए न सही,,,बच्चों के लिए तो उसे खड़ा होना ही था ।

इसी तरह चार साल गुजर गए,,,,,


माधवी केअस्पताल में एक नया डॉक्टर आया ट्रांसफर हो कर,,,नाम था शेखर,,,,उसने भी अपनी पत्नी को खो दिया था।

धीरे-धीरे एक दूसरे से अपने दुख साझा करते हुए कब वो दोनों इतने करीब आ गए,,,,उनको पता ही नहीं चला,,,दोनों यह महसूस कर रहे थे कि वो साथ मिल कर जीवन को बेहतर बना सकते हैं।शेखर माधवी की बेटियों को अपनाने और पिता का नाम देने के लिए भी तैयार था,,,

माधवी को और क्या चाहिए था,,,वह सुनहरे सपने सजाने लगी।

जब उसने यह बात अपनी बेटियों को बताई तो वह असहज हो गई।बड़ी बेटी तन्वी अपने पिता के स्थान पर और किसी की कल्पना मात्र से ही विचलित हो गई थी।छोटी बेटी कनिका को अभी इतनी समझ नहीं थी।

माधवी ने सोचा दो चार बार वो शेखर से मिलेंगी तो सहज हो जायेंगी।यह सोचकर उसने शाम को साथ में डिनर का प्रोग्राम बनाया,,,सारा परिवार साथ था,सब ठीक देख कर माधवी के दिल को सुकून मिला।

अब तो शेखर कभी डिनर,कभी मूवी का प्रोग्राम रोज ही बना लेता,,,वह तन्वी पर कुछ ज्यादा ही प्यार लुटाता ,पर तन्वी को उसका स्पर्श बिल्कुल पसंद नहीं था,,,उसने अपनी माँ से कहा कि,”वो अंकल अच्छे नहीं हैं,आप उनसे शादी मत करो।”

पर माधवी पर तो जैसे शेखर का जादू चढ़ा हुआ था,,,,इधर तन्वी को शेखर से बहुत चिढ़ होने लगी थी,उसे ऐसा लगता जैसे शेखर की नजरें उसके बदन को टटोल रहीं हैं।

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वह बार बार कहती रही,”माँ,आप बहुत पछताओगी,,,आप अपना फैसला बदल दो।”

पर कहते हैं न,,,,विनाशकाले विपरीत बुद्धि,,,माधवी को लगा तन्वी को अपने पिता के  स्थान पर किसी और को स्वीकार करने में वक़्त लगेगा,,,,धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।

आखिर शादी हो गई,,, शुरू -शुरू में सब  ठीक-ठाक चलता रहा,,,

शेखर ने कहा,”घर का खर्च मेरी सैलरी में आराम से चल जाएगा,,तुम नौकरी छोड़ दो,,,दरअसल वह माधवी का सम्पर्क सब से खतम कर देना चाह्ता था,,,उसकी इस चाल को माधवी समझ नहीं पायी और बातों में आ कर नौकरी छोड़ दी।

कुछ दिन बाद माधवी को ऐसा लगने लगा कि शेखर का ध्यान उस से ज्यादा तन्वी पर रहता है ,,,

फिर सोचा,बेटी को प्यार करने में कुछ गलत भी नहीं है,,,एक दिन तन्वी ने कहा,”मम्मी ,मुझे यहाँ नहीं रहना,मुझे पापा का व्यवहार अच्छा नहीं लगता।”पर माधवी ने कोई जवाब नहीं दिया,,,,तन्वी अपने आप को पूरी तरह अकेला और असहाय महसूस कर रही थी,उसके मन की बात सुनने वाला कोई नहीं था।

शेखर की धृष्टता दिनों-दिन बढ़ती जा रही थी,वह तन्वी की रजाई में घुस जाता तो वह वहां से भाग जाती,,,पर घर से भाग कर जाये भी तो कहां,,,,अब अपनी इस बेबसी के लिए वह अपनी माँ को जिम्मेदार मानने लगी और उसके मन में अपनी माँ के लिए नफरत जन्म लेने लगी,उसने माँ से बात करना ही बंद कर दिया।


एक दिन रात को माधवी की नींद खुली,,,,देखा तो  शेखर वहां नहीं था,,,थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद भी जब वो नहीं आया तो वह तन्वी के कमरे में गई,जो देखा ,,,,उसे देख कर तो माधवी के होश उड़ गए,,,तन्वी बुरी तरह से रो रही थी और शेखर चुपचाप खड़ा था,,,माधवी ने जब तन्वी से रोने का कारण पूछा तो उसने कोई जवाब नहीं दिया।

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इसके बाद शेखर जो भी सामान लाता तन्वी को ही देता,खाना भी उसी की पसंद का बनता,पैसे का लेन देन भी उसी को सौंप दिया,,,,अब माधवी की और उसकी छोटी बेटी की हैसियत किसी नौकर के जैसी हो गई थी,,,तन्वी उस से अपनी बर्बादी के गिन गिन कर बदले ले रही थी,,,हरदम नीचा दिखाने की कोशिश करती रहती।

शेखर भी बात-बात पर माधवी पर हाथ उठाने  लगा था,,,अब माधवी की सहनशक्ति जवाब देने लगी थी,,,एक दिन मौका पाकर,,,छोटी बेटी को साथ ले वह घर से निकल गई,,

मायके ,ससुराल वालों से तो पहले ही रिश्ता तोड़ चुकी थी,,,,अब जाये तो कहाँ जाये,,,बहुत मिन्न्तों के बाद एक रिश्तेदार ने बेटी को  रखने के लिए हामी भरी।

अब माधवी हरिद्वार के एक आश्रम में रहती है,,,जीवन से मोहभंग हो चुका है उसका,,,अभी तलाक नहीं हुआ है,,,तन्वी अभी भी शेखर के  साथ ही है ,,,वो कहीं नहीं जाना चाहती।

(इस कहानी का किसी भी व्यक्ति से कोई सम्बंध नहीं है, फिर भी अगर किसी के साथ साम्य हो तो उसे मात्र संयोग ही माना जाये)

मौलिक

कमलेश राणा

ग्वालियर

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