मुक्ति (भाग-3) – कंचन सिंह चौहान : Moral stories in hindi

Post View 117 ये आवाज तो इनकी थी। मैने सारिका को जहाँ का तहाँ छोड़ा और दौड़ कर दरवाजा खोलते ही इनसे लिपट कर फिर उसी बेग से रोने लगी। ये कुछ भी समझने में असमर्थ थे। ऐसी स्थिति अब तक कभी नही हुई थी। इन्होने मुझे पकड़े हुए ही दरवाजा धीरे से लगाया और … Continue reading मुक्ति (भाग-3) – कंचन सिंह चौहान : Moral stories in hindi