“लो फिर तुम यहाँ बैठ कर आँसू बहा रही हो… अब क्या हुआ..अच्छी भली सबके साथ बैठ कर गप्पें मार रही थी अचानक उठ कर यहाँ आकर रोना चालू।” पति मयंक की बात सुन ऋषिका और जोर जोर से रोने लगी “ आप नहीं समझेंगे।
” कहते हुए ऋषिका अपने आँसू पोंछ कर वापस से हॉल में जाकर सबके सामने अपने आपको सहज करने की कोशिश करने लगी राजबाला जी की अनुभवी आँखों ने ऋषिका की आँखों में उतर आए गम की परछाई को देख लिया…पर सामने पूरा परिवार बैठा था
ये सोच कुछ भी बोलना मुनासिब ना समझी। “ चलो अब बहुत बातें हो गई खाना खा लो।” राजबाला जी ने कहा ऋषिका रसोई में जाकर पूरियाँ तलने लगी और राजबाला जी ने अपनी बेटी से कहा ,”खाना ले जाकर बाहर मेज पर रख दो।” “ बहू मायके की याद आ रही ?
” राजबाला जी फुसफुसाते हुए ऋषिका से पूछी “ नहीं तो।” कह कर ऋषिका पूरियाँ तलने लगी खाना खाकर सारे लोग चले गए… ऋषिका रसोई समेट रही थी तभी राजबाला जी रसोई में आई । “ बहू जानती हूँ राखी है.. तुम्हें भी अपने भाई की याद आ रही होगी… चाहो तो चली जाओ कौन सा बहुत दूर है मायके..
तीन चार घंटे में पहुँच जाओगी ।” राजबाला जी प्यार से बोली “माँ आप ये बात कह रही है… आप तो जानती है ना हमने कब से उनसे सारे संबंध तोड़ लिए थे… मेरे मायके की गली कब की छूट गई।” ऋषिका रोते हुए बोली “ किसने कहा गली छूट गई..बस थोड़ी सी नासमझी थी अब सब कुछ ठीक हो गया है दीदी।
” अचानक से ऋषभ की आवाज़ कानों में पड़ी तो ऋषिका को यूँ लगा जैसा बचपन वाला भाई बोल रहा हो पर वो यहाँ कहाँ…नज़रअंदाज़ कर काम में लगी रही “ क्या हुआ दीदी … बात भी नहीं करोगी?” फिर से आवाज़ सुनाई दी तो ऋषिका मुड़ कर देखने लगी…
सच में उसका भाई सामने खड़ा था दोनों भाई बहन गले मिल आठ आठ आँसू रोने लगे…दोनों को अपनी गलती का अहसास हो रहा था और पश्चात्ताप की आग में जल कर आज दोनों का रिश्ता खरे सोने के समान हो गया था। “ दी तुमने अपने भाई को कभी याद नहीं किया ना…
मैं थोड़ा दूसरों की बातों में आ गया था… बिज़नेस में पैसे की ज़रूरत पड़ी…सबने कहा तेरे जीजाजी के पास बहुत पैसे है उनसे माँग ले…जब आपसे कहा तो आपने मना कर दिया… मुझे बहुत ग़ुस्सा आया… माता-पिता के बाद आप ही तो सबकुछ थी मेरी और आपने भी मदद नहीं की…
बस इस बात पर मैं आप सब को कितना भला बुरा कह गया और रिश्ता तोड़ दिया था… अभी कुछ दिन पहले पता चला जीजाजी का भी बिज़नेस अच्छा नहीं चल रहा तो वो मेरी मदद कहाँ से कर पाते… और तब से मैं हर दिन आपसे माफ़ी माँगने की हिम्मत जुटा रहा था पर आज खुद को रोक ना पाया।
” कहते हुए ऋषभ रोते हुए अपनी कलाई आगे बढ़ा दी ऋषिका के आँसू भी थम नहीं रहे थे पर अब ये आँसू ख़ुशी के थे… इतनी छोटी सी बात पर भाई ने मायका ख़त्म कह कर ऋषिका के पैर बांध दिए थे पर आज खुद सामने आकर उसने मायके की गली फिर से जीवंत कर दिया भाई की कलाई पर राखी बाँध कर उसे प्यार से गले लगा लिया। स्वरचित
रश्मि प्रकाश
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