खुदकुशी या कानूनी जंग – मुकुन्द लाल

Post View 962 भावना बेतहाशा निर्जन, जंगलों, पहाड़ों की ओर दौड़ी चली जा रही थी रोती-कलपती हुई। उसकी आंँखों के आगे बलात्कारी का वीभत्स चेहरा अभी भी घूम रहा था। उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था, बस उसके जेहन में एक ही बात चक्कर काट रही थी कि वह अपने को मिटा देगी। कालिख … Continue reading खुदकुशी या कानूनी जंग – मुकुन्द लाल