खानदान की इज्जत – निशा जैन   : Moral Stories in Hindi

सेजल घर से बाहर जाती तो काॅलोनी की औरतें कहती कैसी बहू ले आए कपड़े पहनने का ढंग ही नहीं, साड़ी पहनना तो दूर, सूट का दुपट्टा भी सिर पर नहीं रखती। शर्मा जी की बहू खानदान की इज्जत मिट्टी में मिलाने में कोई कमी नही रखती।

सेजल जब भी अपने काम पर जाती तो राधिका चाची और आस पास की पडौसने ऐसे ही बातें बनाती थी। वैसे तो राधिका चाची और सेजल की सास अरुणा जी बहुत अच्छी पड़ोसी थी। दोनों के पति एक ही ऑफ़िस में सहकर्मी थे और अच्छे बुरे वक्त में राधिका चाची ने अरुणा जी के परिवार का बहुत साथ दिया । बस अरुणा जी जहां खुले विचारों वाली थी वहीं राधिका चाची संकीर्ण सोच वाली, पुराने खयालातों की  औरत थी और व्यक्ति को उसके स्वभाव से कम रहन सहन से ज्यादा पहचानती थी।

सेजल का व्यक्तित्व बहुत ही प्रभावी थीं पर राधिका चाची को उसका ऑफ़िस जाना , सूट पहनना , सिर पर पल्लू नही रखना अखरता था तो वो बस अरुणा जी के कान भरती रहती थी कि बहु को बहुत छूट दे रखी है। खानदान की इज्ज़त का कोई ख्याल नही उसे। बड़े  बुजुर्ग सबसे हंस कर बातें करती रहती है। पर अरुणा जी भी राधिका चाची के स्वभाव से भली भांति परिचित थी तो बस बात का बतंगड़ नही बनाकर मुस्कुरा कर रह जाती और बस इतना ही बोलती

“जीजी आजकल के बच्चे हैं , अपना भला बुरा समझते हैं और खानदान की इज्ज़त में कोई कमी नही आए उसका ख्याल भी रखते हैं और ये पहनना ओढ़ना कोई मायने नहीं रखता अगर अपना दिल साफ़ है और घर के बड़े बुजुर्गों का मान सम्मान हो रहा है ।

फिर ये घर बेटी बेटे की तरह बहु का भी तो है उसके रहने , पहनने पर पाबंदी कैसी”

राधिका चाची अपना सा मुंह लेकर रह जाती

कल की ही तो बात है सेजल को देख राधिका चाची बातें बना रही थीं पर आज उन्हीं की घूंघट वाली बहू उन्हें भला-बुरा सुना रही थी(शायद राधिका चाची उसे अपने तरीके से रहना सिखा रही थी जो बहु को गवारा नहीं था और  वो राधिका चाची से छुटकारा पाना चाहती थी) बेटा भी कुछ नहीं कह पाया,उन्हें वृद्धाश्रम भेजे जाने की पूरी तैयारी हो चुकी थी।

तभी सेजल अपनी सासू मां को तीर्थयात्रा में भेजने की खुशखबरी देने और कीर्तन में आमंत्रित करने के लिए उनके घर पहुँचती है।राधिका चाची अवाक थीं । 

“जिस बहु के पहनावे को लेकर संस्कारहीन, खानदान की इज्जत को मिट्टी में मिलाने वाली  जैसे शब्दों से संबोधित करते हुए  आई थी आज उसी के संस्कार हैं जो सासू मां को तीरथ देखना नसीब हो रहा है और मैं  तीर्थ जाने की उम्र में वृद्धाश्रम जाने की तैयारी कर रही हूं” राधिका चाची रोते हुए सेजल से बोली

चाचीजी आप वृद्धाश्रम नही बल्कि मां के साथ तीर्थयात्रा पर जा रही हो

जिस वृद्धाश्रम में आपके भेजने की बात हुई है उसे हमारा एनजीओ ही चलाता है 

आगे क्या करना है ये मुझ पर छोड़ दीजिए बस जाने की तैयारी कीजिए सेजल राधिका चाची का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोली

 अरे , पर मैं कैसे? चाची आश्चर्य के साथ बोली

मां से एक बार आपने तीर्थ जाने की इच्छा जताई थी पर नही जा पाई और आपने कठिन समय में मां की बहुत आर्थिक मदद की है तो बस मां आपका कर्ज़ चुकाने का मौका छोड़ना नहीं चाहती थी । उनकी दिली ख्वाहिश है वो आपको साथ लेकर जाएं 

बस आप जाइए और भगवान से दुआ कीजिए कि सब ठीक हो जाए

राधिका चाची को सेजल में भगवान का रूप नजर आया जो उसके दुख हरने आई थी।

उसने सेजल को गले लगा लिया और ढेरों आशीर्वाद दिए

राधिका चाची और सासू मां को भेजने के बाद सेजल ने चाची के बेटे  बहु को समझाया कि चाची की पेंशन से ही घर चलता है । वृद्धाश्रम जाने के बाद देख लीजिए आपका क्या होगा? ना वो रहेंगी न ही उनके पैसे

बहु बेटे ने सोच विचार कर अपना फैसला बदल डाला और राधिका चाची वापस आई तब तक सब कुछ बदल गया था।

घर का माहोल और राधिका चाची की सोच दोनो।

सेजल की वजह से राधिका चाची के खानदान की इज्जत तो बची ही साथ में संकीर्ण सोच वाली राधिका चाची अब बहु को पर्दे में रखने के बजाय उसकी गलतियों पर पर्दा डालने की कोशिश करने लगी और जल्दी ही सास _बहू के रिश्ते में मां _बेटी   के प्यार की झलक देखने को मिल रही थी।

दोस्तों जहां तक मुझे लगता है खानदान की इज्जत बहु को पर्दे में रखने में नही बल्कि उसे बेटी बनाकर रखने में है ।

उसे ससुराल में मायके जैसा प्यार मिलेगा तो परिवार से और परिवार वालों  से उसका रिश्ता भी मजबूत हो जायेगा।

फिर न कोई सास वृद्धाश्रम जायेगी और न ही कोई बहु अलग घर बसाएगी

ये मेरे अपने विचार हैं

आप क्या सोचते हैं कमेंट करके बताएं और मेरा उत्साहवर्धन करना ना भूलें

धन्यवाद

स्वरचित और मौलिक

निशा जैन

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