Moral stories in hindi : ग़रीब पति-पत्नी का एक जोड़ा था। दोनों श्री कृष्ण जी में बहुत विश्वास रखते थे।
एक बार पति ने एक साहूकार से दो हज़ार रुपए उधार लिए और पांच महिने में ब्याज समेत पूरी रकम लौटाने का वायदा किया। पति-पत्नी ने मिलकर उन पैसों को साधु-संतों के भोजन पर खर्च कर दिया।
वह साहूकार बड़ा बेदर्द था। पांच महिने गुज़र जाने पर जब पति उधार की रकम लौटा नहीं पाया, तो साहूकार कोर्ट से ग़रीब पति के सामान की कुर्की के आदेश लाने के बारे में सोचने लगा।
पति उस साहूकार के पास रकम लौटाने के लिए कुछ दिनों की मोहलत मांगने गया, परन्तु साहूकार सामान की ज़ब्ती कराने की बात पर अड़ा रहा।
परेशान पति ने घर पर आकर कुर्की की बात जब पत्नी को बताई, तब पत्नी ने कहा, “मुझे विश्वास है कि श्री कृष्ण जी कुर्की नहीं होने देंगे।”
पति ने जब पत्नी की निश्चिंतता देखी, तो वह मुस्कराकर बोला, “श्री कृष्ण जी पर भरोसे वाला तेरा ये रूप मुझे बहुत अच्छा लगता है।”
पति-पत्नी आपस में बात करने में इतने मग्न हो गए कि वो साहूकार और कुर्की वाली बात ही भूल गए। रात हो गई परन्तु साहूकार का कोई आदमी कुर्की के लिए नहीं आया।
सुबह अचानक किसी ने दरवाज़ा खटखटाया। पत्नी ने उठकर दरवाज़ा खोला, तो सामने साहूकार का मुंशी खड़ा था।
उस मुंशी ने बड़ी नम्रता से कहा, “माता जी, कल शाम को साहूकार के पास सुन्दर मुखड़े वाला रेश्मी वस्त्र पहने हुए एक व्यक्ति आया और उसने पूछा, “आपको कितने रुपए उस पति से लेने हैं?” साहूकार ने कहा, “2000 रुपए और ब्याज के 500 रुपए।” तब उस व्यक्ति ने एक थैली साहूकार को दी और कहा, “इसमें पांच हज़ार रुपए हैं। ये उसके हैं और मेरे पास बहुत समय से अमानत के तौर पर पड़े हुए हैं। जितने तुम्हारे हैं उतने तुम ले लो और बाक़ी उन पति-पत्नी के घर पर पहुंचा दो।”
साहूकार उससे आगे कुछ बातचीत करता, इसके पहले ही वह व्यक्ति एकदम से अंतरध्यान हो गया।
यह देखकर साहूकार पर बहुत प्रभाव पड़ा। साहूकार समझ गया, “आप दोनों ईश्वर के बहुत ही प्यारे बन्दे हैं। इसलिए अब साहूकार आपके सामान की कुर्की करके गुनाह का भागीदार नहीं बनना चाहता है। साहूकार ने यह थैली आपके पास भेजी है। इसमें पूरे पांच हज़ार रुपए हैं।” साहूकार ने कहा है, “आप मेरे उधार की रकम भी धर्म के काम में लगा दें और मेरे पाप को बक्श दें।”
*दोनों पति-पत्नी ने श्री कृष्ण जी का खूब गुणगान किया और उसी दिन अपने घर पर एक भण्डारा का आयोजन किया, जिसमें पूरे पांच हज़ार रुपए की वो रकम खुशी-खुशी खर्च कर दी गई।*