जुर्म के खिलाफ – विनोद प्रसाद

Post View 274 कमला मुझे पाँच-पाँच सौ के चार नोट पकड़ाते हुए बोली- “दीदी इसे बैंक में जमा कर देना।”   उसके नाम मैंने बैंक में एक खाता खुलवा दिया था ताकि वह दूसरों के घरों में झाड़ू-पोछा कर होने वाली कमाई के कुछ पैसे पति से छुपाकर भविष्य के लिए जमा कर सके। घर … Continue reading जुर्म के खिलाफ – विनोद प्रसाद