राजेश्वरी अपने कमरे में पूजा करके आकर बैठी ही थी कि उसे लगा कि उसके सामने से किसी ने कुछ फेंका है देखा तो समाचार पत्र था। यह यहाँ कैसे कुछ सोचने से पहले उसके बड़े. बेटे राजन की तेज आवाज सुनाई दी कि अब आपका पेट भर गया पूरे शहर में मेरी थू थू हो रही है।
मैंने ऐसी कौनसी गलती कर दी है कि आपको पेपर में आना पड़ा। देखिए अपनी तस्वीर को पेपर में यह शीर्षक देखा है क्या लिखा है जो बच्चे अपने माँ बाप का दिल दुखाते हैं भगवान उन्हें जरूर सजा देते हैं। वाह माँ मुझे दुआ नहीं तो कम से कम बदुआ तो मत दो। कोई भी आता हैं तो अपना दुखड़ा सुना देती हो क्या? तब ही सबके साथ पेपर में भी आ गए हो।
राजेश्वरी ने पेपर देखा तो सचमुच यहाँ की दूसरी औरतों के साथ साथ उसका भी फोटो था। उसने कहा कि तुझे इतना गुस्सा होने की क्या जरूरत है बेटा मेरी बात भी सुकून से सुन ले फिर कुछ कहना।
राजन- नहीं माँ मुझे कुछ नहीं सुनना हैं आप अपना बैग जमा लीजिए हम घर चलते हैं। मैंने आपसे क्या कहा था कि जब अपने नए फ्लैट बन जाएँगे तो आपको मैं अपने साथ ले जाऊँगा अभी घर छोटा है आपको तकलीफ होगी यही कह कर मैंने यहाँ वृद्धाश्रम में आपको भर्ती किया था और आपने दुनिया भर में बता दिया हैं कि मैंने आपको घर से निकाल दिया है चलिए मैं ऑफिस में बात करके आता हूँ कल हम यहाँ से चलते हैं अभी मुझे ऑफिस के लिए देरी हो रही है कहते हुए चला गया।
उसके जाते ही ऐसा लगा जैसे आँधी तूफान आकर चला गया है। वह सोचने लगी कि राजन बचपन से ही ऐसा है अपनी बात कह देता है लेकिन दूसरों की बात सुनता ही नहीं है।
उस पेपर को हाथ में लेकर देखते हुए कल की बात याद करने लगी थी। आश्रम में कुल मिलाकर दस औरतें और दस पंद्रह पुरुष हैं। सब अपने आप में मस्त रहते हैं । आश्रम नया-नया खुला है मेरे ख्याल से चार पांच साल ही हुए हैं। यह बहुत बड़ा नहीं है परंतु यहाँ पर सारी सुख सुविधाएं थीं पेड़ पौधों के कारण चारों तरफ हरियाली थी । एक छोटा सा मंदिर पुस्तकालय मेडिटेशन हॉल एक डॉक्टर और छोटी सी दवाइयों की दुकान थी ।
यहाँ पर लोग जब जॉइन होते हैं तब एक लाख रुपए भर दिया जाता है और महीने में पांच हजार रुपए भरते हैं। सुकून भरी जिंदगी है I किसी की कोई रोकटोक नहीं है । हम महिलाएँ दिनभर अकेले रह भी गए तो भी शाम का एक घंटा मंदिर में भजन कीर्तन जरूर कर लेते हैं पुरुष पुस्तकालय या मेडिटेशन हॉल में बैठते हैं या पेडों के नीचे बने चबूतरों पर बैठकर गप्पें मारते हैं। हम सब कल मंदिर में बैठकर कीर्तन कर रहे थे कि कुछ लोग अंदर आए उन्हें देख हमने अपने भजन रोक दिया और चुपचाप उन्हें देखने लगे थे। कुछ तो वहाँ से उठकर चले गए उनमें से मैं भी एक थी। अभी मैंने दो कदम बढ़ाए थे कि नहीं पीछे से आवाज आई राजेश्वरी आंटी मैं रुक गई और पीछे पलटकर देखा तो पच्चीस साल की होगी वह लडकी भागते हुए आई और मुझसे कहा मैं आपको जानती हूँ। मैंने प्रश्नार्थक नजरों से उसकी तरफ देखा।
उसने कहा कि आपके पडोस में एक जज साहब रहते थे वे मेरे नाना हैं मैं जब भी यहाँ माँ के साथ आती थी आपसे मिलती थी। ध्यान से देखा तो मुझे याद आया ओहो तुम सुलोचऩा की नातिन हो कैसी हो बिटिया यहाँ कैसे आना हुआ?
उसने कहा आंटी मेरा नाम कविता है मैं एक न्यूस पेपर के ऑफिस में काम करती हूँ। मैं इस वृद्धाश्रम के लोगों पर एक स्टोरी बनाना चाहती हूँ इसलिए यहाँ आई हूँ। आपको मालूम है ना यहाँ पर रहने वाली हर एक महिला और पुरुष दोनों की अपनी एक अलग कहानी है। किसी का कोई नहीं है तो किसी को बच्चों ने उन्हें यहाँ छोड़ दिया है। बाय द वे आप यहाँ क्यों हैं ? आपका बेटा तो अच्छी नौकरी कर रहा है और आपको अंकल का पेंशन भी तो मिलता होगा ना आंटी फिर आप क्यों यहाँ हैं बताइए ना।
मैंने कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है बिटिया तुम्हें याद है ना तुम्हारे नाना के पडोस में हमारा जो घर है उसे डेवलपिंग के लिए बिल्डर को दे दिया है। वह बिल्डर वहाँ अपार्टमेंट बना रहा है उनके बनते तक उसने हमें रहने के लिए एक अपार्टमेंट दिया है जो दो कमरों का है बेटा राजन के परिवार के लिए ही बस नहीं होता है साथ ही मुझे अपार्टमेंट पसंद नहीं है वहाँ मेरा दम घुटता है इसलिए मैं यहाँ आ गई हूँ।
कविता- आंटी आपका बेटा तीन कमरों वाला फ्लैट किराए पर ले सकता था ना। मैंने उसकी बातों को अनसुना कर दिया था। नतीजा आज के पेपर में फोटो का छपना था।
कविता की बातों ने मुझे झकझोर कर पीछे धकेल दिया और मैं अपनी पुरानी यादों में डूब कर सोचने लगी थी कि कैसे हम नए नए इस शहर में आए थे जब उनका तबादला यहाँ हो गया था। मेरे पति रंगनाथ एक सरकारी स्कूल में पढ़ाते थे । मेरे पति और मेरी दिली ख्वाहिश यह थी कि हमारा अपना एक खुद का मकान हो।
इसके लिए हमने खूब मेहनत की थी। वे बेचारे स्कूल से आने के बाद ट्यूशन पढ़ाते थे रविवार के दिन एक दो बच्चों को घर जाकर ट्यूशन पढ़ाते थे जिससे कुछ ज्यादा पैसा मिलता था । अपने बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ हम थोड़ा सा पैसा भी बचाते थे। हमने किसी तरह से शहर से दूर 250 गज जमीन खरीद ली थी । हमारे दो बच्चे हैं हमने उनकी पढ़ाई पर ध्यान दिया राजन इंजिनीयर बन गया और बिटिया ऩे भी बीए की पढ़ाई पूरी की थी कि नहीं एक अच्छा रिश्ता आया तो उसकी शादी भी करा दिया था।
हमारी आँखों में घर बनाने का सपना अभी भी हिलोरें ले रहा था । उन्होंने अपने रिटायरमेंट के बाद आए पैसों से एक छोटा सा घर बना लिया था जो हम दोनों के लिए बस था। बेटा राजन दूसरे शहर में नौकरी करने लगा था उसकी भी शादी हो गई है ।बिटिया श्वेता जिसकी शादी हो गई है वह अपने पति के साथ खुश है।
राजन के मन में अपनी जमीन पर अपार्टमेंट बनाने की बात तब आई जब पडोस में रहने वाले सुरेन्द्र जी ने कहा कि हम दोनों अपनी जमीन बिल्डर को दे देते हैं तो हम दोनों को दो-दो अपार्टमेंट मिल जाएँगे। ऐसा ऑफर हमें बार-बार नहीं मिलेगा। राजन मेरे पीछे पड़ गया था कि पेपर पर साइन कर दो घर पुराना हो गया है मेरी ना सुनने की हालत में वह नहीं था। उसकी जिद के आगे मेरी एक नहीं चली और मैंने हाँ में सर हिलाया।
उस बिल्डर ने ही इन्हें एक घर रहने के लिए दिया था राजन ने कहा कि माँ घर छोटा है जब तक हमारा घर नहीं बन जाता है तब एक आप यहाँ वृद्धाश्रम में रह जाइए मैं बाद में आकर आपको ले जाऊँगा। इस तरह से एक लाख भरकर उसने मुझे यहाँ भर्ती करा दिया है। आज कविता के कारण मुझे इतनी बातें सुनाकर चला गया। उसी समय रजनी आई जो मेरे सामने वाले कमरे में रहती है। यहाँ वहाँ से बातें सुनकर आकर मुझे बताती है। मैं उन्हें सुनकर भी अनसुना करती रहती हूँ।
आज की उसकी बात ने मुझे क़ुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था। उसने कहा कि आपको मालूम हैं राजेन्द्र जी और सुशीला जी शादी करने वाले हैं। अपने ट्रस्टी के पास ये लोग कल गए थे और उन्हें बताया है कि वे शादी करना चाहते हैं।
मैंने कहा कि अच्छी बात है ना रजनी इस उम्र में शादी सिर्फ एक दूसरे की सहायता और अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए करते हैं। हम सब जानते हैं जब राजेन्द्र जी की तबियत खराब हो गई थी तो सुशीला ने ही उनकी सेवा की थी। उस समय दोनों ने निर्णय लिया होगा वैसे तुमने बहुत अच्छी खबर दी है। उसी समय हम सबको मैनेजर साहब का बुलावा आया था तो हम सब धीरे धीरे हॉल की तरफ बढ़े. वहाँ ऑलरेडी ट्रस्टी जी और दो तीन लोग थे। राजेन्द्र जी और सुशीला भी खडे हुए थे।
हम वहाँ रखी हुई कुर्सियों पर बैठ गए तब ट्रस्टी जी ने खड़े होकर सबका अभिवादन करते हुए कहा कि मैं आप लोगों का ज्यादा समय ना लेते हुए सीधे मुद्दे पर आ जाता हूँ। अपने राजेन्द्र जी और सुशीला ने यह फैसला लिया है कि वे साथ मिलकर रहेंगे। दोनों शादी करना चाहते हैं हमें इससे कोई आपत्ति नहीं हैं। आप सब जानते हैं कि उम्र तो सिर्फ नंबर है। आपके विचार मिलते हैं और आप अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए साथी चाहते हैं तो ठीक है आप सबके समक्ष मैं इन दोनों को मालाएँ बदलने के लिए कहता हूँ।
हम सबने तालियाँ बजाईं और दोनों ने मालाएं बदल ली। वे दोनों खुश नजर आ रहे थे। हम सबने दोनों को बधाई दी। सुशीला ने अपना सामान राजेन्द्र जी के कमरे रख दिया बस उन दोनों की जिंदगी में यही एक बदलाव था और कुछ नहीं। हमारी दिनचर्चा में किसी भी प्रकार की कोई रुकावट नहीं आई थी।
राजन उस दिन का गया फिर वापस नहीं आया था मुझे मालूम है वह यहाँ से ले जाने की धमकी सब गीदड़ भभकियाँ ही हैं। मैंने तो निर्णय ले लिया है कि अब मैं उसके पास रहने के लिए नहीं जाऊँगी। मेरा दि ल यहाँ रम गया है। मैं तो बस ईश्वर से यही प्रार्थना करूँगी कि पेपर की हेडिंग वाली बात सही ना हो मेरे बेटे को ईश्वर सजा न दें बस।
दोस्तों बच्चे कुछ भी कर लें लेकिन मातापिता के दिल से उनके लिए सिर्फ दुआएँ ही निकलती हैं।
के कामेश्वरी