कुसुम ससुराल में कदम रखते ही खुद को अपनी जेठानी निधि की छाया में घिरा हुआ महसूस करने लगी थी। हर बात पर तुलना, हर छोटे-बड़े काम पर निधि भाभी की तारीफें सुन-सुनकर उसका मन कुंठित हो गया था। जैसे-जैसे दिन गुजरते गए, उसकी ईर्ष्या और असंतोष ने उसके दिल में एक गहरे घाव की तरह जगह बना ली। उसके मन की शांति, अब बस अपनी जेठानी के गुणगान सुनते-सुनते कहीं खोने लगी थी।
“कुसुम, सब्जी तो तुमने अच्छी बनाई है, पर निधि भाभी के हाथों का स्वाद कुछ और ही है,” उसकी सास अकसर खाने के समय उसे कहतीं। और तो और, बच्चों की हर छोटी-बड़ी बात में भी निधि भाभी का नाम आता, “कुसुम, बेटा शिव की स्कूल की मीटिंग में तुमसे नहीं हुआ तो बड़ी बहू से कह दो, वह सब संभाल लेगी।” जैसे ही कुसुम ने यह सुना, उसके दिल में न चाहते हुए भी एक कसक उठ गई। यह लगातार हो रहा था, जैसे हर समय निधि भाभी का उदाहरण देना उसकी सास की आदत बन गई थी।
निधि, केवल एक साल ही बड़ी थी, मगर उसके काम और जिम्मेदारी निभाने की क्षमता को घर में बहुत सम्मान मिला था। वह नौकरी करती थी, फिर भी अपने घर को संभालने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी। कुसुम ने एक बार खुद को मजबूत करने की कोशिश भी की थी, अपने मन से कहने की कोशिश की कि वह भी कुछ ऐसा कर दिखाएगी कि सब उसकी तारीफ करें। लेकिन हर बार उसे निधि से तुलना करके कमतर महसूस करवाया जाता, और धीरे-धीरे वह खुद को हतोत्साहित महसूस करने लगी।
कुसुम के भीतर का दर्द और जलन उस समय और भी गहरा हो गया जब निधि ने जुड़वां बेटियों, रिद्धि और सिद्धि, को जन्म दिया। उसकी ईर्ष्या और कुढ़न कहीं से भी कम नहीं हुई थी, लेकिन उसे थोड़ी तसल्ली उस दिन जरूर मिली जब उसने खुद जुड़वां बेटों, शिव और शक्ति, को जन्म दिया। घर में बेटों के आने के बाद से उसे ये भरोसा हो गया था कि खानदान का नाम रोशन करने का सारा भार अब उसी के बेटों के कंधों पर है, और कहीं ना कहीं, इससे उसके मन की जली-कटी भावनाओं पर मरहम लगाने जैसा महसूस हुआ। वह अपने दिल में एक तरह की राहत महसूस कर रही थी, यह सोचकर कि भले ही निधि भाभी कितनी भी आदर्श हों, कितनी ही महान हों, लेकिन लड़के तो उसके हैं, खानदान का नाम तो उसी के बेटे आगे बढ़ाएंगे।
वह कई बार खुद को इन विचारों में खो जाने देती थी। अपनी माँ से फोन पर वह अक्सर अपने दिल की भड़ास निकालती और अपने जख्मों को भरने का प्रयास करती। वह अपने बेटे के भविष्य के बारे में सोचती, जिसमें वह खुद को बेटे-बहू के सुख-संस्कार में लिप्त देखती। वहीं दूसरी ओर, अपने भतीजियों का अंधकारमय भविष्य उसकी सोच में एक तसल्ली का भाव लाता, मानो किसी तरह से उसकी जेठानी को एक सबक मिल रहा हो।
समय अपनी गति से चलता रहा। रिद्धि और सिद्धि अपनी पढ़ाई में बहुत मेहनत कर रही थीं। वे दिन-रात पढ़ाई में जुटी रहतीं, और निधि भी उनकी पूरी सहायता करती, उन्हें हर तरह की प्रेरणा देती। कुसुम ने जब भी उन्हें देखा, मन में कहीं ना कहीं एक जलन और कुढ़न का भाव और गहरा हो गया। वह सोचती, “इतनी मेहनत कर भी लें, लेकिन आखिर में तो बेटियां हैं। आगे चलकर ये सब किसी और के घर की शोभा बनेंगी।”
कुछ वर्षों के बाद वह दिन भी आया जब रिद्धि और सिद्धि का सिविल सेवा परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ। कुसुम उस दिन अपनी दिनचर्या में व्यस्त थी कि तभी उसका बेटा शिव तेजी से दौड़ता हुआ उसके पास आया। उसकी आँखों में खुशी की चमक थी, और वह जोर-जोर से चिल्ला रहा था, “माँ, माँ! रिद्धि और सिद्धि दोनों का सिविल सेवा में चयन हो गया है। जल्दी आओ, बड़ी मम्मी तुम्हें बुला रही हैं। आज घर में नेता, विधायक और मीडिया वालों का हुजूम लगा है। लोग बड़ी मम्मी की प्रशंसा कर रहे हैं और कह रहे हैं कि खानदान का नाम रोशन कर दिया।”
कुसुम के दिल पर जैसे एक तेज झटका लगा। उसने मुश्किल से अपने आंसू रोकते हुए बेटे से पूछा, “और तुम लोगों का रिजल्ट क्या रहा?”
बेटा हँसते हुए बोला, “अरे माँ, हमने तो तैयारी ही नहीं की थी। बताया तो था कि पेपर बिगड़ गया था।” इतना कहकर वह अपने भाई शक्ति के साथ बाहर भाग गया।
कुसुम स्तब्ध रह गई। जिस भविष्य की उसने कभी अपने लिए कल्पना की थी, वह अब पूरी तरह बिखर चुका था। उसने जो सपना देखा था, वह मानो उसकी आँखों के सामने टूटकर चकनाचूर हो गया। उसके अपने ही मन के ईर्ष्या और द्वेष ने उसे अपनी सफलता और अपने बच्चों की परवरिश से दूर कर दिया था। आज उसे अपनी जली-कटी भावनाओं का खामियाजा भुगतना पड़ा था।
वह खुद को अपने द्वारा बनाए गए जख्मों में जकड़ा हुआ महसूस करने लगी। निधि के प्रति उसकी ईर्ष्या और उसके बच्चों के प्रति अपनी ऊंची आकांक्षाएं ही उसे आज उस जगह ले आई थीं, जहाँ से अब कुछ भी नहीं बदला जा सकता था। उसका अपना भविष्य, उसकी अपनी संतानों का भविष्य, उसे अंधकार में डूबता दिख रहा था, और साथ ही उसकी उम्मीदें और सपने भी धुंधला चुके थे। आज कुसुम को समझ में आ गया था कि उसने अपने रिश्तों को जितना खोखला समझा था, वह उसकी अपनी ही सोच की गलती थी।
कुसुम ने अब निधि की ओर देखने का नज़रिया बदलने की ठान ली। उसे यह एहसास हुआ कि निधि के प्रति उसकी जलन ही उसके जीवन में सबसे बड़ी बाधा बनी थी। अब उसे समझ में आ चुका था कि उसे अपने और अपने बच्चों के भविष्य को सँवारने के लिए सकारात्मक सोच की ओर कदम बढ़ाना होगा। आखिर में, एक ही परिवार में रहकर एक-दूसरे की खुशियों में खुशी ढूँढने से बड़ा और कोई रास्ता नहीं हो सकता था।
मौलिक रचना
लतिका श्रीवास्तव