अपने घर के एक कमरे मे बीमार पड़ी शारदा जी शून्य मे निहार रही थी । कहने को उनकी बीमारी कोई बड़ी नही थी पर जब मन ही बीमार हो तो तन कैसे बेहतर महसूस कर सकता है ।
” अम्मा जी लीजिए ये खिचड़ी खाकर दवाई ले लीजिए !” तभी उनके घर काम करने वाली कमला ने आवाज़ दी।
” ना री भूख नही मुझे !” उन्होंने उदासी के साथ कहा।
” अरे अम्मा खाओगी नही तो दवाई कैसे लोगी और दवाई नही लोगी तो ठीक कैसे होगी !” कमला प्यार से बोली।
” क्या करना है री ठीक भी होकर वैसे भी तन का रोग दवाई से ठीक हो सकता है पर मन का क्या वो बीमार हो तो कोई इंसान कैसे ठीक रह सकता है !” शारदा जी बोली।
” अम्मा एक बात कहे आपको छोटा मुंह बड़ी बात होगी पर खुद को रोक भी नही पा रहे कहने से !” कमला बोली।
” तेरी किसी बात का कभी बुरा माना है क्या मैने तू तो मेरे बेटे बहू से बढ़कर है बोल क्या बोलना है !” शारदा जी बोली।
” अम्मा तुम्हे भैया जी और भाभी ने इस कोठरी मे पटक दिया और तुम चुपचाप यहाँ आ गई । वो कितने कितने दिन यहां झाँकते नही , अपने बच्चो को दादी के पास नही आने देते ना आपका पूरे घर मे डोलना उन्हे पसंद है । फिर भी आप उनके हेज मे मरी जाती है ऐसा क्यो ?” शारदा जी की मुंह लगी कमला ने आखिर मन की बात बोल ही दी ।
” तुझे पता है जब तेरे साहब जी यानि तेरे भैया जी के पापा इस दुनिया से गये थे तब तेरे भैया जी दस बरस के थे । तब मैं कम पढ़ी लिखी औरत जिसने कभी अकेले बाहर कदम तक नही रखा था उसपर क्या बीती थी। वो तो शुक्र है कि अपनी सारी जमा पूंजी लगा ये घर उन्होंने अपने जीवन काल मे बनवा लिया था वरना तो कहाँ जाती मैं ।
तब मुझे अपने बच्चे और खुद का भविष्य अन्धकारमय लग रहा था मायके मे माँ बाप नही थे ससुराल वालों ने मुझे कभी दिल से स्वीकार नही किया तो बेटे के बाद मुझे क्या सहारा देते !” इतना बोल शारदा जी हांफने लगी !
” लो अम्मा पानी पियो और चुप हो जाओ पहले ही तबियत खराब है और करनी है क्या ?” कमला उन्हे पानी पिलाती हुई बोली।
” ना री आज मन की बात बोल लेने दे ! मैने तब खुद को मजबूत बनाया और आँगनवाडी मे खाना बनाने की नौकरी पकड़ी क्योकि इससे ज्यादा कुछ कर नही सकती थी मैं । ये इतना बड़ा घर था तो इसको किराये पर दिया जिससे ज्यादा से ज्यादा पैसा आये और मेरे राघव को किसी चीज की कमी महसूस ना हो । जब घर से बाहर निकली तब पता लगा एक जवान विधवा का घर से बाहर निकलना भी आसान नही होता । खैर किसी तरह बच्चे को पाल रही थी फांकाकशी भी करती जिससे उसकी सब जरूरत पूरी करने के साथ साथ उसके भविष्य के लिए भी जोड़ सकूँ। फिर वो बड़ा हुआ और पढ़ने के लिए पुणे चला गया। मुझे उस वक्त कितनी खुशी मिली थी कि अब कुछ सालो मे मेरा बेटा मेरा सहारा बनेगा । उसकी शादी तक के ख्वाब देखने लगी थी मैं !” शारदा जी इतना बोल अपने आंसू पोंछने लगी।
” हां इसके बाद तो मुझे पता है भैया जब पढ़ कर नौकरी करने लगे तब उन्होंने साफ बोल दिया वो अपनी पसंद की लड़की से शादी करेंगे और आपने भी बेटे की पसंद को अपना लिया !” कमला बोली।
” हां री क्यो ना अपनाती आखिर कलेजे का टुकड़ा है वो मेरे उसकी खुशी मे ही मेरी खुशी है !” शारदा जी मुस्कुराते हुए बोली।
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हम बूढ़े भले है पर लाचार नही ( भाग 2 )
हम बूढ़े भले है पर लाचार नही ( भाग 2 ) – संगीता अग्रवाल : short moral story in hindi