कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन…”  – *नम्रता सरन “सोना”*

“देखो तो अनंता, ये मुझे भुलक्कड़ कहते हैं, अभी मैंने इनसे पूछा कि आपने ऑइनमेंट रखा, तो बोले भूल गया, मैंने पूछा कि, माला रखी, तो बोले भूल गया, अब तुम बताओ , भुलक्कड़ मैं हूं या यह हैं, घुटनों के दर्द का आइनमेंट भूल आए, अब वहां जाते ही लेना पड़ेगा, और माला… उसके … Read more

 बेटी होने की जिम्मेदारी – सुमन श्रीवास्तव

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सुरु वो सुरु ” देखो बेटा, सुमित के कमरे की सफाई ठीक से कर देना । ऐसा न हो तेरे भईया भाभी को आने के बाद किसी किस्म की परेशानी हो और हां जिस समान की जरूरत हो बाजार से मंगवा ले। मुझे देखने के लिए कितना लम्बा सफर करके आ रहे हैं। “सुरुभि ” … Read more

रक्षा कवच – तृप्ति शर्मा

बहुत ही जिद की थी अमृत ने मां से ,मां हमें भी एक बहन चाहिए । सब दोस्तों के पास है ,सब माथे पर लाल रंग का टीका लगाते हैं। अगले साल वह भी दोस्तों में खूब शान से माथे पर राखी का टीका,उसमें चावल के कुछ दाने जो मां ने नन्ही अनन्या से लगवाए … Read more

जो साथ निभाए वह है दोस्त” – ऋतु अग्रवाल 

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“सुनो जी! यह प्रभाकर भैया तो आपके साथ ही नौकरी करते हैं। फिर इनके और हमारे जीवन स्तर में इतना अंतर, मुझे समझ नहीं आता। इनके पास हमारी ही तरह कोई पुश्तैनी जमीन जायदाद भी नहीं है।” आभा ने चाय का कप विवेक को पकड़ते हुए कहा।    “हाँ! पहले मैं भी यही सोचता था पर … Read more

वहम – डॉ उर्मिला सिन्हा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  :  कहते हैं वहम का इलाज हकीम सुलेमान के पास भी नहीं है और सुरेखा तो साधारण मानवी है। पहिरावा, दिखावा से भले ही वह शिक्षित,आधुनिका दिखाई देती है, परंतु बाल्यावस्था से मन में कुछ मनोवैज्ञानिक गुत्थियां अवश्य पाले हुई है।    सुबह जल्दी में थी। गृहिणियों का प्रातकाल वैसे भी बड़ा … Read more

क्या सही क्या गलत – गीता वाधवानी

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आज सुगंधा बहुत खुश थी, बहुत खुश। लेकिन मन ही मन कोई द्वंद चल रहा था शायद सही और गलत का। वह उस में उलझ कर रह गई थी।  आज उसकी बेटी नेहा को बहुत अच्छे विद्यालय में नौकरी मिल गई थी। नेहा का फोन आने के बाद से, सुगंधा उसी के इंतजार में बैठी … Read more

यह अंत नहीं जीवन का”-तृप्ति उप्रेती

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“पापा, आज बिजली का बिल भर दीजिएगा”। विहान ऑफिस जाते हुए सुरेश जी से बोला। सुरेश जी लाॅन में बैठकर चाय पी रहे थे। तभी सुहानी बाहर आई और उन्हें एक कागज देते हुए बोली, “पापा जी, जब आप बिल भरने जाएंगे ही तो यह राशन के सामान की लिस्ट भी किराने वाले को दे … Read more

वो बदनाम गलियां – संगीता अग्रवाल

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क्या ये बदनाम गलियां ही अब मेरा मुकदर होंगी… क्या मैं कभी खुल कर नही जी पाऊंगी….क्या मुझे यहीं घुट घुट कर जीना पड़ेगा । मेरा नाम मेरी पहचान मेरा वजूद सब खो जायेगा..,? कांता बाई के कोठे के अंधेरे कमरे में पड़ी सत्रह साल की वैशाली ये सब सोच रही थी। वो जितना इस … Read more

हम थे जिनके सहारे वो हुए ना हमारे – मुकेश पटेल

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संतोष जी बैंक में मैनेजर थे। उनको  दो बेटा और एक बेटी थी  बड़ा बेटा और बेटी की शादी हो गई थी,बड़ा बेटा अपनी पत्नी के साथ अलग फ्लैट लेकर रहता था।  एक दिन उनकी पत्नी राधा जी  का बाथरूम में पैर फिसला और कमर में काफी चोट आ गई डॉक्टर को दिखाया गया तो … Read more

काश हमने सारे पैसे अपने बेटे बहू को नहीं दिए होते – मुकेश पटेल

New Project 83

साहिल  अपने पापा से गुस्से में कह रहा था, “पापा आप ऐसा कैसे कर सकते हैं कोई बाप  क्या अपने बेटे के ऊपर केस करता है. एक बाप अपने बेटे के लिए जो करता है वह उसका फर्ज होता है मैं भी तो अपने बेटे को पढ़ा रहा हूं उसका खर्चा चला रहा हूं इसका … Read more

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