एक डाली के फूल – विभा गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :   ” सूर्यप्रकाश जी, आपका कोई वकील…?” ” वकील…नहीं जज साहब….मेरा केस लेने को कोई वकील तैयार नहीं हो रहा है…, अपनी बेटी की फ़रियाद लेकर….।” हताश-लाचार सूर्यप्रकाश जी जज साहब को कहते हुए रो पड़े, तभी उनके कंधे पर काला चोगा पहने एक सज्जन ने हाथ रखते हुए कहा,” धीरज रखिये…, आपकी बिटिया का केस मैं लड़ूँगा और उसे न्याय भी दिलाऊँगा।

        सूर्यप्रकाश एक व्यवसायी थें।उनके पिता आनंद प्रकाश की कपड़े की एक दुकान थी जिसकी आमदनी से चार सदस्यों के परिवार का गुज़ारा मज़े से हो जाता था।उनकी माँ भी एक सुघड़ गृहिणी की तरह अपने पति और दो बच्चों का पालन-पोषण बहुत अच्छी तरह से करतीं थीं।उनसे तीन वर्ष छोटी बहन सुशीला के साथ उनका छोटी-छोटी बात पर बहुत झगड़ा होता था लेकिन बहन को खिलाये बिना वे कुछ खा ले, ऐसा कभी नहीं होता था।ऐसे हँसते-खेलते परिवार को न जाने किसकी नज़र लग गई….।

       एक दिन बहन का हाथ थामे जब वे स्कूल से वापस आये तो घर के आँगन के फ़र्श पर माँ को सफ़ेद कपड़े में लिपटे देखा तो उनका कलेज़ा धक रह गया।आसपास बैठी महिलाएँ रोती हुई कहती जा रहीं थी,” हाय..अब उन दो मासूमों का क्या होगा…कौन उनके मुँह में निवाला डालेगा…।” तब तो वो बहन का हाथ पकड़े-पकड़े ही माँ की छाती से लिपटकर कर रो पड़े थें।तब वे इतने बड़े नहीं हुए थे कि बहन को संभाल सके लेकिन इतने छोटे भी न थे कि कोई उन्हें यह कहकर बहला दे कि कुछ दिनों में तुम्हारी माँ वापस आ जायेगी।

           पत्नी बिना घर सूना…माँ बिना बच्चे अनाथ….।तब रिश्तेदारों ने आनंद प्रकाश को दूज़ा ब्याह की सलाह दी।उन्होंने भी सोचा कि घर में एक गिलास पानी देने वाली कोई तो होनी ही चाहिए जो बच्चों की देखभाल करे और मुझसे भी दो बात करे।उनके चाचाजी ने ही अपने एक परिचित की बेटी सुकन्या के साथ उनका विवाह करा दिया।

        सुकन्या ने अपने नाम के अनुरूप आनंद प्रकाश का घर ऐसे संभाल लिया जैसे वो वहाँ बरसों से रह रहीं हों।आठ वर्षीय सुशीला को उनमें अपनी माँ दिखाई दी तो वह उनके सीने से लग गई लेकिन सूर्यप्रकाश को लगता कि सुकन्या उन दोनों से आनंद प्रकाश को छीनने आई है।फिर खुद को हितैषी कहने वाले भी सूर्यप्रकाश का कान भरने से ज़रा भी नहीं चूकते थें।

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       साल भर बाद सुकन्या ने एक बेटे को जनम दिया जिसका नाम चन्द्रप्रकाश रखा गया।गोल-मटोल, नन्हा चन्द्र तो सुशीला का खिलौना बन गया था।रिश्तेदार भी आनंद प्रकाश को कहते,” अब तो आप दो बेटों के पिता बन गये हैं।दोनों ही आपके बुढ़ापे की लाठी है।” और वो सुनकर बस मुस्कुरा देते थें लेकिन सूर्यप्रकाश को चन्द्र एक आँख नहीं सुहाता था।

       समय के साथ-साथ तीनों बच्चे भी बड़े हो रहें थें।सूर्यप्रकाश दसवीं और सुशीला सातवीं में पढ़ रही थी।चन्द्र भी उसी स्कूल में पढ़ने जाना शुरु किया था।एक दिन किसी ने सूर्यप्रकाश को कह दिया, ” यार सूर्य…तेरा भाई तो बिल्कुल तेरे जैसा है।” इतना सुनना था कि वह उस लड़के से हाथा-पाई करने लगा।प्रिंसिपल ने घर पर खबर भिजवाई, आनंद प्रकाश दौड़े हुए स्कूल पहुँचे और माफ़ी माँगकर बेटे को घर लाए।पूछा कि ये सब क्या है सूर्या…।तमक कर बोला,” वो आपका बेटा है, मेरा भाई नहीं।” 

      उस दिन पहली बार आनंद जी ने बेटे की आँखों में छोटे भाई के लिये नफ़रत देखी थी।उन्होंने सोचा कि सूर्य अभी नासमझ है, समय के साथ सब ठीक हो जायेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं।सुकन्या के साथ भी वह कम ही बात करता था।

       आनंद प्रकाश की अब दो दुकानें थीं और दोनों ही खूब चलती थी।सूर्यप्रकाश ने बीकाॅम करके पिता की एक दुकान को संभाल लिया।सुशीला भी इंटर की परीक्षा दे रही थी।पढ़ाई में उसकी कोई ख़ास रुचि न देखकर आनंद प्रकाश जी ने पत्नी से विचार-विमर्श करके एक खाते-पीते घर के लड़के के साथ उसका ब्याह कर दिया।

        बेटी ससुराल चली गई और सुकन्या का आँगन सूना हो गया।सावन में जब सुशीला मायके आई तो कुछ दिन रही और पूरा प्रयास किया कि सूर्यप्रकाश चन्द्र को अपना भाई मान ले।छोटी होकर भी वह उसे समझाती कि भाई…खून के रिश्तों में दरार होना ठीक नहीं है। लेकिन सूर्यप्रकाश पर छोटी बहन की बात का कोई असर नहीं पड़ा।दोनों भाईयों को राखी बाँधकर वो ससुराल चली गई।दसवीं के बाद चन्द्रप्रकाश काॅलेज़ की पढ़ाई के लिये दिल्ली चला गया।वहीं पर उसने इंजीनियर की पढ़ाई की और नौकरी करने लगा।

        सूर्यप्रकाश का भी विवाह हो गया।वह एक बेटी का पिता भी बन गया था।सुशीला भी एक बेटे की माँ बन चुकी थी।सब कुछ अच्छा चल रहा था, फिर भी बड़े बेटे का अपने भाई के प्रति नफ़रत देखते हुए सुकन्या को चन्द्रप्रकाश की चिंता होने लगी थी।हालांकि चन्द्र हमेशा माँ को समझाता रहता कि माँ…,भाई ऊपर से गुस्सा करते हैं लेकिन भीतर से मुझे बहुत प्यार करते हैं।उसके पिता भी पत्नी को समझाते लेकिन माँ का दिल….उनके हृदय का यह बोझ उनका रोग बन गया। एक दिन पति से बोलीं,” मेरे पीछे आप सबको संभाल लेंगे ना।” 

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    ” तुम्हारे पीछे क्यों..? हम दोनों साथ मिलकर चंद्र की  बहू लायेंगे।अदरक की चाय पिओगी…सब नकारात्मकता छू-मंतर हो जायेगी…।” कहते हुए उन्होंने बहू को चाय बनाने के लिये कहा और पत्नी का हाथ अपने हाथ में लेकर बैठे रहे।बहू सास को चाय देने लगी तो चीख पड़ी, ” माँजी…।” एक बार फिर से आनंद प्रकाश जी अकेले हो गये।धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य भी गिरता गया।सूर्यप्रकाश ने पिता की बहुत सेवा की, चन्द्र भी आता रहता था।पिता का मन रखने के लिये सूर्यप्रकाश ने भाई के साथ मेल-मिलाप कर लिया।आनंद प्रकाश के हृदय से बोझ उतर गया और निश्चिंत होकर एक दिन उन्होंने संसार से हमेशा के लिये विदा ले ली।

           पिता की चिता की आग ठंडी भी नहीं हुई थी कि सूर्यप्रकाश ने अपने भाई से साफ़ शब्दों में कह दिया,” अब हमारा-तुम्हारा कोई संबंध नहीं।जायदाद का हिस्सा चाहिये तो…।” 

   ” नहीं भाई…, घर-जायदाद मुझे कुछ नहीं चाहिये।आप खुश रहें, यही मेरी सबसे बड़ी पूंजी है।” फिर पलटकर चन्द्रप्रकाश कभी नहीं आया।

          चन्द्रप्रकाश ने भी विवाह कर लिया, दो बच्चों का पिता भी बन गया।इस बीच सुशीला ही उसे फ़ोन करके भाई की खबर दे दिया करती थी।

       एक दिन सुशीला ने चन्द्रप्रकाश को बताया कि भईया बेटी का विवाह कर रहें हैं।सुनकर वह बहुत खुश हुआ।बोला, ” दीदी…, अपनी नैना इतनी बड़ी हो गई है।कैसी दिखती है?”

    ” एकदम राजकुमारी…भाई ने उसकी शादी अपने शहर के ही बड़े बिल्डर के बेटे से तय की है।भाई बता रहें थें कि बहुत पैसे वाले हैं,नैना वहाँ राज करेगी।” 

 ” लेकिन दीदी…, सुना है..उसका बेटा तो बहुत बिगड़ा हुआ है।”

 ” हाँ, मैंने भी यही कहा तो कहने लगे,” उनके दुश्मनों ने अफ़वाह फैला दी है।नैना को आशीर्वाद देने आओगे ना…।” कह नहीं सकता दी।

        शुभ-मुहूर्त में सूर्यप्रकाश ने बेटी का विवाह कर दिया।सामर्थ्य से अधिक दान-दहेज भी दिया।विवाह के बाद नैना आई तो बहुत खुश थी।महीने भर बाद जब नैना की माँ बेटी से बात करना चाहती तो ससुराल वाले टाल-मटोल करने लगते।बेटी खुश है,यह सोचकर वो तसल्ली कर लेंती।एक दिन नैना की माँ को किसी ने बताया कि उनका दामाद तो एक नंबर का अय्याश है।माँ का दिल है, बेटी के लिये तड़प उठा।उन्होंने पति से बेटी के पास जाने को कहा।

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      बेटी के ससुराल पहुँचकर सिर पर लगी चोट, दुखी-मायूस अपनी लाडली को देखकर सूर्यप्रकाश गुस्से-से पागल हो उठे।नैना पिता को न रोकती तो वो तो मर्डर ही कर देते।बेटी को लेकर घर आ गये।फिर बेटी ने रोते-रोते बताया कि उसका पति शराबी-अय्याश तो था ही, साथ ही सास-ससुर दहेज के लिये उसे ताने भी देते थें।कभी-कभी हाथ भी…।दो दिन पहले उसने शराब न पीने के लिये कहा तो पति ने उसका सिर दीवार पर दे…..।

    ” बस कर बेटी…., मैं उन कमीनों का जीना हराम कर दूँगा।” सूर्यप्रकाश गुस्से-से चीख पड़े और बेटी को सीने से लगाकर फूट-फूटकर रोने लगे।एक अच्छा वकील देखकर उन्होंने ससुराल वालों पर दहेज़ और घरेलू-हिंसा का केस दायर कर दिया।उनका समधी भी कोई कच्चा खिलाड़ी तो था नहीं, उनका वकील पलटकर नैना पर ही लाँछन लगाने लगा।छह महीनों तक वे अदालतों के चक्कर लगाते रहें।उनके वकील ने भी हाथ जोड़ लिये, तब वे निराश होकर जज के सामने रोने लगे थे, तब एक सज्जन मसीहा बनकर उनके सामने आ खड़ा हुआ था।

       सूर्यप्रकाश जी के पूछने पर उसने अपना नाम मानिक बताया और फिर उसने सूर्यप्रकाश के वकील के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा दी।दो महीनों तक अदालत में बहस चली, गवाह-सबूत पेश किये गये और अंततः सच की जीत हुई।बिल्डर परिवार के सुपुत्र को जेल भेजा गया,साथ ही आर्थिक दंड भी देना पड़ा।लगे हाथ मानिक ने नैना के तलाक की अर्ज़ी भी दे दी।

      सूर्यप्रकाश जी मानिक को धन्यवाद दिये और पूछे कि आपकी फ़ीस..? जवाब में मानिक मुस्कुराया और हाथ से इशारा किया,” वो रहा..।” दूर चन्द्रप्रकाश खड़ा था।मानिक ने उन्हें बताया कि नैना की शादी ठीक होते ही चन्द्र ने बिल्डर परिवार की कुंडली का पता लगाया तो मालूम हुआ कि सबकुछ गलत है।उस वक्त तो आप चन्द्र की सुनते नहीं, अनहोनी होनी थी…सो हो गई।केस के बारे मालूम होने पर उसने तुरंत मुझसे बात की, सारे गवाह-सबूत भईया उसी ने इकट्ठा किये थे।भईया…वो आपसे बहुत प्यार….।

      आगे कुछ और वो सुन नहीं सके और चन्दर…मेरे भाई…।” कहकर दौड़ पड़े।दोनों भाईयों का मिलन अद्भुत था।दोनों की आँखों से प्यार-स्नेह की वर्षा हो रही थी।सूर्यप्रकाश रोते हुए बोले,” मैंने कहा और तूने रिश्ता तोड़ दिया।खून के रिश्ते कहीं टूटते…।”

    ” तो भईया, आपने भी मुझे कान पकड़कर रोका क्यों नहीं…आखिर हम दोनों हैं तो एक ही पिता की संतानें..।” शिकवे-शिकायतों से जी हल्का करके दोनों भाई ठहाका मारकर हँसने लगे।

      आनंद प्रकाश जी और सुकन्या जी का घर बच्चों के कहकहों से गूँज उठा।दोनो भाई बच्चों से बतिया रहें थें और उनकी पत्नियाँ रसोईघर में नाश्ता तैयार कर रहीं थीं।सूर्यप्रकाश जी बोले कि नैना का तलाक होते ही इसका फिर से विवाह…।

  ” नहीं भाई…अब नैना अपनी पढ़ाई पूरी करेगी और अपने पैर पर खड़ी होगी।क्यों नैना…।” चन्द्रप्रकाश तपाक-से बोला तो सबने एक स्वर में ‘हाँsss’ कहते हुए सहमति दे दी।अपने दोनों भाइयों को साथ देखकर सुशीला ने मन में कहा, किसी ने सच ही कहा है कि खून के रिश्ते अटूट होते हैं जिनमें समयानुसार दरार तो पड़ सकती है पर कभी टूट नहीं सकते।

                                    विभा गुप्ता 

#खून के रिश्ते                 स्वरचित 

             खून के रिश्ते तो ईश्वर बनाते हैं जिसे कोई अलग नहीं कर सकता है।कुछ समय के लिये उन रिश्तों में दूरियाँ अवश्य आ जातीं हैं लेकिन तकलीफ़ के समय वे फिर से एक साथ हो जाते हैं।सूर्यप्रकाश ने भी स्वीकार किया कि हम दोनों हैं तो एक ही डाल के फूल, साथ-साथ ही खिलेंगे।

 

1 thought on “एक डाली के फूल – विभा गुप्ता  : Moral Stories in Hindi”

  1. नमस्ते mem, sir क्या मैं आपकी कहानियों को अपने यूट्यूब चैनल के लिए उपयोग कर सकता हूं कृपया मुझे जरूर बताएं please
    Thank you

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