Short Stories In Hindi

अच्छाई बाकी है – डॉ. पारुल अग्रवाल रमाकांत जी उम्र के साठ साल पार करने के बाद भी काफ़ी ज़िंदादिल और सकारात्मक इंसान थे। कुछ दिनों से वो जब अपनी सैर से लौट रहे होते तो एक बारह-तेरह साल के लड़के को पार्क के कोने में जूतें-चप्पल की मरम्मत वाले बक्से और  कुछ पढ़ने की … Read more

मां और माफी – गीतू महाजन  

जानकी देवी के पार्थिव शरीर से लिपटे हुए जतिन बाबू की चीखों से सारे गांव के लोगों की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बह रही थी।सारा गांव जानता था कि जतिन बाबू के दिल पर इस वक्त क्या बीत रही होगी।जतिन बाबू बार-बार एक ही बात दोहराते जा रहे थे,”मां, मुझे माफ कर दो…मुझे … Read more

स्वार्थी कौन..? – रोनिता कुंडू

ओफ ओह…! मां… क्या हर छोटी-छोटी बातों का बतंगड़ बना देती हो आप..? अब कहा ना याद नहीं था… मनोज अपनी मां शारदा जी से कहता है… शारदा जी:  बेटा..! यह बाल धूप में सफेद नहीं किए हैं मैंने… मुझे सब पता है… तेरी मां अब तुझ पर बोझ बन गई है… पर क्या करूं … Read more

ऐसे होते हैँ ससुर जी – मीनाक्षी सिंह

अंकित ,क्यूँ आ रहे हैँ पापाजी (ससुर जी) गांव से ! तुम्हे पता हैँ हम दोनों वर्किंग हैँ ! शुभी (बेटी ) भी सुबह स्कूल चली जाती हैं ! पूरा दिन घर साफ सुथरा पड़ा रहता हैँ ! पापाजी को हमेशा बलगम रहता हैँ ! पूरे दिन खांसते और थूकते रहते  हैँ ! और तो … Read more

क्यो कुछ बच्चो के पास अपने जन्मदाताओं के लिए इज़्ज़त की दो रोटी नही होती? – संगीता अग्रवाल

अपने कमरे मे गुमसुम बैठे अस्सी वर्षीय रामलाल जी बहुत कुछ सोच रहे थे। पास लेटी जीवनसंगिनी सुलोचना जो उनके सुख दुख की साथी रही थी आज लकवे के कारण बेबस पड़ी थी ।बेबस तो खुद रामलाल जी भी थे किसी बीमारी से ज्यादा अपनों से सताये हुए जो थे। अस्सी की उम्र देखभाल चाहती … Read more

जाके पाँव न फटी बिवाई – नीलम सौरभ

‘चौधरी जी का बाड़ा’…यही नाम है हमारे शहर की पुरानी बस्ती के बीच बसे उस चॉल का। ‘यू’ आकार में बनी उस तीन मंजिला रिहायशी इमारत में 36 खोलियाँ हैं अर्थात 36 परिवारों का निवास स्थान है चौधरी बाड़ा। बाड़े के मालिक अवध नारायण चौधरी परिवार सहित पॉश इलाके के अपने बड़े बंगले में रहते … Read more

सिलसिला – गीतांजलि गुप्ता

मंजूषा कुछ दिनों पहले ही हमारे पड़ोस वाले फ़्लैट में आई थी। पतली दुबली स्मार्ट दिखने वाली कुछ चालीस वर्ष की आयु होगी उसकी। परिवार के नाम पर वो और उसकी माँ ही थे। घर के बाहर एक कार खड़ी रहती पर वो उसे कभी कभार ही निकालती, तब जब माँ बेटी साथ में कहीं … Read more

आखिर मुखौटा उतर ही गया – शुभ्रा बैनर्जी

नंदिनी काफी दिनों से विवेक को तलाश रही थी।बहुत मुश्किल से जब पता मिला तो नंदिनी मिलने के लिए पहुंची आफिस।आलीशान बिल्डिंग थी ।नंदिनी आफिस से उनकी व्यक्तिगत जिंदगी की खुशहाली देख सकती थी।दूर से देखकर नंदिनी ने विवेक को पहचान लिया था।बस अब उससे मिलने की जरूरत नहीं। विवेक को देखते ही नंदिनी अपने … Read more

दीदी तेरा देवर दिवाना !! – स्वाती जैंन

शिवानी को कॉलेज से घर लौटते वक्त यह एहसास हुआ कि कोई उसका पीछा कर रहा है, जैसे ही उसने पीछे देखा एक लड़का उसके पीछे से आया और बोला हेलो क्या आप मुझसे दोस्ती करोगी ?? शिवानी को बहुत गुस्सा आया वैसे भी वह ऐसे मनचले लड़कों से बहुत परेशान थी जो मुंह उठाए … Read more

तू नौकरी क्यों करना चाहती हैं?? – मनीषा भरतिया 

रोमा बचपन से ही आत्मनिर्भर बनना चाहती थी| उसे पुरुष पर निर्भर रहना पसंद नहीं था| वह अपने माता पिता ज्ञानचंद जी और माता तारामणि जी की इकलौती संतान थी| उसके पिता ज्ञानचंद जी बहुत बड़ी रियासत के मालिक थे, घर में दूध की नदियां बहती थीं| यूँ कहो तो घर में पैसों की रेलम … Read more

error: Content is Copyright protected !!