मुक्ति (भाग-6) एवं (अंतिम भाग ) – कंचन सिंह चौहान : Moral stories in hindi

” क्या मतलब ?” “मतलब तो तुम ही जानती हो शायद ! उन सब बातों का मतलब जो तुम्हारे लिये होती हैं। ऐसी बातें सब क्यों करते हैं तुम्हारे लिये ?” सारिका ने मुझे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखते हुए कहा और मैं उस दृष्टि का सामना नही कर पाई। मैं दूसरे कमरे में जा के … Read more

मुक्ति (भाग-5) – कंचन सिंह चौहान : Moral stories in hindi

मैं आगे बढ़ कर पीछे के रास्ते निकली और पड़ोस का पिछला दरवाजा खटखटाने लगी गाँवों के लिये तो उस समय आधी रात का समय था। एक अधेड़ उम्र की महिला ने दरवाजा खोला। मैने उन्हे देखते ही सारिका को उनके पैरों पर रख दिया। “चाची जिऊ ! एकर जिनगी बचाइ लें।” ” का भै … Read more

मुक्ति (भाग-4) – कंचन सिंह चौहान : Moral stories in hindi

ससुराल में आने के बाद कभी-कभी ओसारे में बाबू जी को खाना देने आती थी। वो भी तब जब ये नही होते थे। वो मेरी आखिरी सीमा रेखा थी। लेकिन आज मुझे अपनी कोई भी सीमा रेखा नही याद थी। मैं नंगे पैर ही उधर दौड़ पड़ी जहाँ से गाँव भर की आवाजें आ रही … Read more

मुक्ति (भाग-3) – कंचन सिंह चौहान : Moral stories in hindi

ये आवाज तो इनकी थी। मैने सारिका को जहाँ का तहाँ छोड़ा और दौड़ कर दरवाजा खोलते ही इनसे लिपट कर फिर उसी बेग से रोने लगी। ये कुछ भी समझने में असमर्थ थे। ऐसी स्थिति अब तक कभी नही हुई थी। इन्होने मुझे पकड़े हुए ही दरवाजा धीरे से लगाया और एक मजबूत रक्षक … Read more

मुक्ति (भाग-2) – कंचन सिंह चौहान : Moral stories in hindi

कितनी सुंदर थी वो गोल भरा सा मुँह बड़ी सी काली.काली आँखें, घुँघराले बाल, मैं मुग्घ हो गई थी अपनी ही कृति पर। मुझे जीवन में खुश रहने का सहारा मिल गया था। मैं उसी को सोचती, उसी को जीती। मुझे नही पता, मेरे पति भी खुश थे या नही लेकिन कभी-कभी सारिका अकेले पड़ी … Read more

मुक्ति (भाग-1) – कंचन सिंह चौहान : Moral stories in hindi

हास्पिटल के उस कमरे के बेड पर पड़ा वो शरीर जिसमें खून की बोतल चढ़ रही है, उसके शरीर के रोम-रोम में सुइयों का दर्द है। उसे कुछ भी नही याद। पिछली सुबह कब हुई थी, अगली शाम कब होगी! महीनों से उसे कुछ पता नही। वो सन्निपात के दौर में है। लेकिन एक चीज … Read more

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