अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 25) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

“हाहाहा भाभी, बुआ को इस तरह हड़बड़ाते देख एक कहावत याद आ रही है।” विनया के दोनों कंधे को पकड़ झूलती हुई संपदा हॅंसी से दुहरी हुई जा रही थी। “ननद रानी कौन सी कहावत है वो, जो हमारी प्रिय बुआ जी के लिए आप सोच रही हैं।” विनया परांठे सेंकती हुई कहती है। “भागते … Read more

अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 24) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

“क्या बात है मनीष, तुम्हारे और विनया के बीच कोई दिक्कत है क्या?” संभव बालकनी में मनीष के साथ बैठा हुआ पूछता है। “नहीं भैया, कोई दिक्कत नहीं है।” मनीष संभव की ओर देखे बिना ही कहता है। “तुम दोनों को देखकर ऐसा क्यों लगता है, जैसे एक दूसरे से खींचें खींचें से रहते हो।” … Read more

अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 23) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

“भरवां करेला, दम आलू, आह हा, मजा आ गया मामी। आपने याद रखा था मामी।” संभव डाइनिंग टेबल पर सजे हुए डोंगे में अपनी पसंद के व्यंजनों को देखते ही खुश हो गया था। “बच्चों की पसंद कोई भूलता है भला।” बोलती हुई अंजना एक नजर मनीष पर डालती है। अंजना की बातों में एक … Read more

अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 22) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

“आ गईं महारानी घूम घाम कर।” विनया को देखते ही बड़ी बुआ ताना लिपटे हुए शब्दों के साथ उसका स्वागत करती हैं। “आपके मुॅंह में घी शक्कर बुआ जी।” चरण स्पर्श करती हुई विनया कहती है। विनया की हाजिरजवाबी पर संपदा खिलखिला कर हॅंस पड़ी और बुआ और बुआ के बगल में बैठा मनीष को … Read more

अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 21) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

“कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि मनीष और पापा जी को सच्चाई से कैसे अवगत कराया जाए। मनीष तो बुआ की बात आते ही पूर्ण रूप से हृदय हीन हो जाते हैं। दोनों बुआ ऐसा कौन सा नशा करा दी हैं कि अपनी माॅं भी नजर नहीं आती हैं। घर के हर निर्णय … Read more

अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 20) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

“माॅं मैं कुछ दिनों के लिए मम्मी के पास जाना चाहती हूॅं।” रात में डिनर के समय विनया अंजना से कहती है। अब विनया लंच और डिनर जबरदस्ती ही सही अंजना के साथ ही करती है और धीरे धीरे संपदा भी दोनों का साथ देने लगी थी।  “मनीष से पूछ लेना।” अंजना संक्षिप्त उत्तर देकर … Read more

अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 19) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

“ये सुबह सुबह क्या मनहूसियत फैला रखी है तुमने बहू और संपदा तुम क्या इसे गले लगाए खड़ी हो। घर ना हुआ अजायबघर हो गया है।” अपने कमरे से बाहर आकर बड़ी बुआ कुर्सी खींच कर बैठती विनया और संपदा की ओर देखती हुई कहती है। “फिर से वही सब ड्रामा शुरू हो गया। हमारी … Read more

अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 18) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

“नमस्ते मामाजी”…. संपदा ट्रे रखती हुई अखबार वाले अंकल से कहती है। संपदा के नमस्ते कहने पर अंजना और अखबार वाले अंकल हड़बड़ा जाते हैं और अखबार वाले अंकल खड़े हो गए क्योंकि इन दो तीन सालों में इस घर में अंजना के अलावा किसी ने भी बात करने की आवश्यकता नहीं समझी थी और … Read more

अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 17) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

“चाय कैसी बनी थी माॅं।” अंजना चाय का खाली प्याला ट्रे में रख रही थी तो विनया अंजना की ओर देखती हुई पूछती है। “अच्छी बनी थी, वैसे कैसे कर लेती हो ये सब।” अंजना के आवाज में फिर से तल्खी उभर आई थी। “क्या माॅं?” विनया के चेहरे पर असमंजस का भाव आ गया … Read more

अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 16) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

विनया ने बीप की आवाज से मोबाइल उठा कर देखा और एक प्यार भरी इमोजी भेज कर मोबाइल रख आगे की रणनीति पर गौर करने लगी और रणनीति के बीच में कब उसके पलकों पर नींद ने अपना घर बना लिया, उसे पता भी नहीं चला और उधर अंजना की ऑंखों का नींद उड़ चुका … Read more

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