रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून
पानी गए ना उबरे मोती मानुष चून।।
इस तथ्य को पैरो तले रौंदती निशी के लिए तो मानो बस रुपए की चमक दमक और अफसरशाही का रुआब ही प्रतिष्ठा का पानी बन गया था तभी तो उस दिन
मेम साब सलाम … एक ठो अर्जी लगानी थी ….बिशन थोड़ा सकुचाते डरते बोला तो निशी ने उसे देखा भी नहीं…पास खड़े अरदली ने बिशन से फुसफुसाते हुए कहा कुछ भेंट भी लाए हो मेम साब के लिए कि बस यूं ही खाली हाथ झुलाते अर्जी लगाने चले आए!!
अब बिशन समझा मेम साब की निरपेक्षता का राज …जल्दी से एक बोरी आम सामने करके बहुत विनय से बोल उठा ये हमारे बगीचे के सबसे बढ़िया आम हैं हम अपने हाथ से एक एक आम छांट कर लाए हैं आपके लिए…
हुंह बस आम ही लाए हो अर्जी तो बहुत बड़ी है तुम्हारी निशी ने उपेक्षित भाव से कहा तो बिशन सकपका गया अरे मेम साब हम साहब की बहुत तारीफ सुन कर आए हैं वो तो एक पैसा भी नहीं लेते हैं इसीलिए हम सोचे आम तो खाने की चीज है नाराज नहीं होंगे….आप हुकुम करिए क्या भेंट चाहिए ।
साहब तो बहुत सीधे हैं चुपचाप सबका काम कर देते हैं जो भी कहता है जी जान से पूरा करते हैं बदले में उनको क्या मिलता है !!ये हमें ही सोचना पड़ता है .. तुम्हें अपने पुत्र का तबादला करवाना है ना तो तुम साहब के पुत्र का ख्याल करो और कॉलेज जाने के लिए उसके लिए एक बाइक ले आओ ….
तुम्हारे पुत्र का तबादला करवाने की जिम्मेदारी हमारी….बहुत दर्प से निशी ने कहा तो बिशन दंडवत हो गया मेम साब ये तो बहुत ज्यादा है मैं गरीब आदमी इतनी बड़ी चीज कैसे खरीद पाऊंगा पिछले माह साहब ने आश्वासन दिया था
ऑफिस में आकर मिल लेना तुम्हारा काम हो जायेगा इसी भरोसे मैं यहां चला आया साहब नहीं है तो आपसे मिल कर अपनी जिंदगी की सबसे कठिन समस्या बता दी है आप तो साक्षात देवी का अवतार है ….।
रहने दो अपनी ये चिकनी चुपड़ी बातें मुझे मत बनाओ इतनी दुनियादारी तुम्हे भी समझनी चाहिए कि इतने बड़े अधिकारी के पास अपना इतना बड़ा काम करवाने जा रहे हो तो बड़ी भेंट भी देनी होगी अगर बाइक पहुंचा दोगे तो तुम्हारे बेटे का तबादला हो जायेगा …समझ गए अब जाओ..सत्ता के मद में चूर निशी को किसी की मजबूरी से कोई लेना देना नहीं था ।
बिशन सन्नाटे में खड़ा सोच रहा था साहब के बारे में जो कुछ सुना था मेम साब से मिलकर तो उलट ही गया।अब तो बिना बाइक के काम होगा ही नहीं और बाइक लेना उसकी सामर्थ्य से बाहर था।
निशी के पति सुबोध सख्त विभागाध्यक्ष थे मातहतों और जरूरतमंद लोगों की सुदीर्घ पंक्ति अपने अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु साहब की एक कृपा दृष्टि की लालायित रहती थी ।जब निशी यहां आई तो कुछ नहीं जानती थी सिवाय इसके कि उसके पति सुबोध अत्यधिक ईमानदार तत्पर और कर्मठ अधिकारी थे पूरे विभाग में उनकी कट्टर ईमानदारी की तूती बोलती थी बेईमान और भ्रष्ट लोग थर थर कांपते थे उनसे कोई भी काम करवाने में।
……सुबोध वो शशांक जी तो पोस्ट में आपसे कम हैं पर उनके ठाठ कितने अधिक कैसे हैं!!उनकी बेटी का जन्मदिन पांच सितारा होटल में मनाया गया!उनकी पत्नी सोमा को देखा था हीरो का सेट पहने इतरा रही थीं इतना रौब झाड़ रही थी जैसे अधिकारी उनके पति नहीं वो खुद हों सारे नौकर चाकर आगे पीछे हो रहे थे…
एक दिन जन्मदिन पार्टी से लौटी आश्चर्य चकित निशी की जिज्ञासा पर सुबोध हंस कर रह गया था फिर गंभीर होकर समझाया था उसने
निशी ऐसा रौब और घमंड किस काम का जिसका आधार बेईमानी हो शशांक की इमेज कितनी खराब है चारो तरफ भ्रष्ट अधिकारी के रूप में जाना जाता है वो पर हां उसके ऊपर इन सब बातों का कोई असर नहीं पड़ता है मुझ पर पड़ता है मैंने कठिन परिश्रम और नियमो की दृढ़ता से विभाग में अपनी साफ सुथरी बेदाग छवि बनाई है.
जिस पर मैं एक भी दाग नहीं लगाना चाहता हूं चाहे उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े कह कर सुबोध सो गया था पर निशी की आंखों से नींद और कानों से सुबोध की गहरी बातें उड़ गईं थीं ..उसकी आंखों में तो इठलाती रौब जमाती सोमा की छवि ही नाच रही थी बहुत ज्यादा प्रभावित थी वो सोमा से।
कहा जाता है हम जिन लोगों से प्रभावित होते हैं उन लोगो जैसा ही अपनी जिंदगी में बनना चाहते हैं या हम जैसा बनना चाहते हैं वैसे ही लोगों से प्रभावित हो जाते हैं।
निशी के साथ भी ऐसा ही हुआ सोमा के रहन सहन और रुआब से बुरी तरह प्रभावित उसका दिल अनजाने ही उसकी आदतों का अंधा अनुसरण करता चला गया और बहुत जल्दी ही वो इनके गूढ़ रहस्यों से अवगत हो गई तकनीकी रूप से सिद्ध हो गई ।
जैसे ही सुबोध दस दिनों के दौरे पर दूसरे शहर गया निशी ने पूरी कमान अपने हाथों में ले ली..बहुत शातिर अंदाज़ में सुबोध से काम निकलवाने वालों की वो अभयदात्री बन कर अपनी चापलूसी करवाने का मंत्र सीख गई.
सरकारी नौकरो की तो डफली बजा दी उसने ।मेम साब के चारो तरफ चकरघिन्न सी जिंदगी हो गई थी सबकी ।बिजली की तेजी से ये बात चौतरफा फैल गई थी ..सुबोध के विरोधी सक्रिय हो उठे थे ।अब तो मेम साहब के पास श्रद्धालुओं का तांता बंधा रहता था भेंट उपहार अपनी मर्यादाएं भूलने लगे थे ।
आज बिशन के जाते ही अचानक सुबोध घर आ गया था।ये बोरी भर के आम किसने मंगवाए हैं…पूछने पर निशी झूठ नहीं बोल पाई …”वो बिशन आया था गांव से वही लाया है कह रहा था साहब के लिए खास अपने बगीचे से छांट कर लाया है.
निशी ने बहलाने की कोशिश की थी परंतु सुबोध की तो त्योरियां चढ़ गईं थीं क्यों तुम्हारे पास क्यों आया घर के अंदर घुसने की हिम्मत कैसे हो गई उसकी ।मुझसे काम था तो ऑफिस आता यहां क्यों आया!!
अरे यहां आ गया आम दे गया तो इतना नाराज होने वाली कौन सी बात हो गई आप तो सबके इतने काम करते रहते हैं सब पर एहसान करते रहते हैं उदारता से…. प्रेम से आपके लिए भेंट में आम ले आया बिचारा कोई गुनाह कर दिया ।
आम लेने में आपकी ईमानदारी को कौन सा ग्रहण लग गया …बाइक वाली अपनी बात को छिपाते हुए निशी ने चिढ़ाते हुए हंसकर कहा तो सुबोध आगबबूला होकर आम की बोरी घसीट कर फेंकने लगा ..”नहीं लेना है मुझे ऐसी भेंट जिसमे से स्वार्थ की बू आती हो नहीं जरूरत है ऐसा आम खाने की मुझे ..
तुम्हे इच्छा है तो जाओ बाजार से मंगवा लो अपने पैसे से खरीद कर अपने शौक पूरे करो मुफ़्त में क्यों!!और हां सुन लो मैं अपनी नौकरी के कर्तव्य करता हूं किसी पर कोई एहसान नहीं करता जो जायज हैं और होने ही चाहिए वही काम मैं करता हूं ।
या तो ये बोरी उसको वापिस करो या इन आमों के दाम उसको भिजवा देना मुझे ये सब जरा भी पसंद नहीं है तेजी से कह कर सुबोध चला गया था।
लेकिन पानी तो सिर के ऊपर से निकल गया था निशी के दिल दिमाग पर तो अफसरशाही और मुफ़्त की भेंट का जबरदस्त नशा चढ़ चुका था ।अभी भी सुबोध को नहीं समझ सकी थी वो तभी तो दूसरे ही दिन बिशन की लाई बाइक देख कर तुरंत स्वीकार कर लिया था उसने बिना सुबोध की प्रतिष्ठा की परवाह किए।
सस्पेंड हो गया था सुबोध उसके विरोधी सक्रिय हो उठे थे कई दिनों से उसकी लब्ध प्रतिष्ठित छवि को दागदार साबित करने के मौके तलाशती उनकी अभिलाषा पूरी हो गई थी ..निशी की नाजायज मांग से अनजान सुबोध तो गरीब बिशन से किया अपना वादा निष्पक्ष अधिकारी के बतौर निभा रहा था.
उसने बिशन के पुत्र का जायज तबादला उसके घर के पास करने के आदेश पर हस्ताक्षर किए उधर इस बात से अनजान बिशन ने भी मेम साब की आज्ञानुसार साहब के पुत्र के लिए नई बाइक लाकर उनके घर में खड़ी कर दी थी……बस विरोधियों का काम आसान हो गया था।
सुबोध की लाख सफाई काम नहीं आई बाइक लेकर ही उसने बिशन का काम किया ये साबित करने में उसके विरोधियों को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी थी।
पता लगते ही नींद से जागी निशी ने तुरंत बिशन को बुलाकर बाइक वापिस कर दी थी लेकिन तब तक तो बहुत देर हो चुकी थी
सुबोध की बेदाग छवि में अमिट दाग लग चुका था जिसे निशी लाख जतन करने पर भी नहीं मिटा सकती थी…सस्पेंडेड सुबोध के घर अब सूना पन है कोई नहीं आता था पद प्रतिष्ठा थी तो सारे ठाट बाट थे नौकर चाकर थे निशी को अब सारे काम आंसू बहा बहा कर खुद ही करने पड़ते हैं …अब उसे कोई नहीं पूछता ना ही नौकर चाकर ना ही उसके पति सुबोध।
बिन पानी सब सून…..!
#दाग
लतिका श्रीवास्तव