कविता अपनी करनी के कारण काँच की तरह टूटकर बिखर चुकी है। निराशा औरअवसाद का अँधेरा उसकी जिन्दगी में घर कर चुका है।उसकी आँखों में जब-तब दर्द की लहर आ गुजरती है,जिसे मुश्किल से छुपाकर होठों पर मुस्कान ला पाती है।दूसरी बार भी आई.वी.एफ असफल होने पर कविता के आँखों के आँसुओं का बाँध टूट गया था।वह बहुत देर तक पति पंकज की बाँहों में सिसकती रही।
जीवन में सफलता की सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़ती कविता को अपना कैरियर छोड़कर किसी अन्य बात की रत्तीभर भी चिन्ता नहीं थी।एक-दो बार उसके पति पंकज ने कहा भी था -” कविता!बहुत हो चुका।अब हमें परिवार बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए!”
पति की बातों पर बिफरते हुए कविता ने कहा -” पंकज!तुम्हें पता है कि अगले साल मेरा प्रमोशन होनेवाला है।दफ्तर की सबसे ऊँची कुर्सी पर पहुँचने का मेरा ख्वाब पूरा होगा और तुम चाहते हो कि ऐसे समय में मैं मातृत्व के बंधन में जकड़ जाऊँ?”
कविता से बहस न करते हुए पंकज खामोश हो गया।कविता पूर्व में दो बार एबाॅर्शन करा चुकी थी।उसे तरक्की में मातृत्व बंधन -सा महसूस होता था।अगले साल कविता का प्रमोशन हो गया।उसने खुशी में पार्टी रखी थी।उसके सभी दोस्त और कलीग अपने बच्चों के साथ आए हुए थे।उन्हें देखकर पहली बार कविता ने मातृत्व की चाहत महसूस की।सभी दोस्तों ने उसे तरक्की की बधाई देते हुए माँ बनने की भी नसीहत दे डाली।
कविता ने हँसते हुए अपने दोस्तों से कहा -” तुम सब मेरी तरक्की से जलते।मुझे घर-गृहस्थी के झमेले में फ़साना चाहते हो!”
हँसी-मजाक के साथ पार्टी खत्म हो गई। रात में पति पंकज ने उसे बाँहों में भरते हुए कहा -“कविता!सभी सच ही कह रहे थे कि अब हमें अपना परिवार बढ़ाना चाहिए!”
मौन स्वीकृति देते हुए कविता पंकज के सीने में समा गई।
बच्चे का इंतजार करते-करते और चार साल बीत चुके थे।अब कविता एक बच्चे की चाहत में व्यग्र-सी रहने लगी।दो बार एबाॅर्शन के कारण उसके बच्चेदानी में कुछ खराबी आ चुकी थी,जिसके कारण नार्मल रुप से उसका माँ बनना संभव नहीं था।दो बार आई.वी
एफ भी असफल हो चुका था।उसके पति पंकज ने उसे सांत्वना देते हुए कहा -“कविता!उदास मत हो।हम एक बच्चा गोद ले लेंगे।”
पति की बातों पर कविता मुस्कराकर रह जाती है,क्योंकि वह तो अपनी करनी पार उतरनी महसूस कर रही है।
समाप्त।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)