रह रहकर सास संयोगिता के शब्द मनुस्मृति के कर्ण पटल भेद रहे थे, “मुझे तकलीफ देकर तू कभी सुखी नहीं रह सकती”।
पर सब अनदेखा कर वो अपना सामान बांध अपने बच्चों के साथ निकल गई नए जीवन के सफर पर।
मनुस्मृति शादी कर ससुराल आई तो सब ठीक ठाक ही लगा उसे पर धीरे धीरे उसे पता चला कि पति व्योम अलग अलग तरह के नशे के आदी हैं।
रोज रात झूमते हुए आते।उसने सास से कहा तो उनका कहना था कि जवान उम्र में बच्चे ने थोड़ी बहुत पी ली तो क्या हो गया, तुझे करने को काम रहा और रहने को घर।
वैसे भी मनुस्मृति के पास मायके के नाम पर एक बूढ़ी मां ही थी, जिसने जैसे तैसे कर उसका ब्याह कर दिया था। शादी के तीन साल में ही वह दो बच्चों की मां बन गई थी।अनजान नहीं थी कि व्योम शराब ही बल्कि इंजेक्शन और गोलियों जैसे नशों का भी आदी है। पर मरती क्या न करती प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती, घर बच्चों का भी करती, सास की चिक चिक, पति की गैर जिम्मेदारी के साथ किसी कदर धक्कम पेली में चल रही थी ज़िंदगी।
बस उसके दोनों ही बच्चे समझदार और पढ़ने में तेज थे, यही सुकून था उसे। वैसे भी जमीन जायदाद कोई थी नहीं, जो थी वो व्योम बेच चुका था। अब उसे किसी से कोई उम्मीद भी नहीं थी।सास ससुर बूढ़े हो चले थे, फिर भी बेटे के मोह में कुछ अंधे थे, कुछ उसकी हरकतों से अनजान।
पर आज सुबह जब वो स्कूल से घर पहुंची तो देखा, उसके घर में 2 आदमी बैठे थे, सास को पूछने पर पता चला वो व्योम के दोस्त हैं और बेटी मिनी को देखने आए हैं। तब तो उसने कुछ न बोला, पर उनके जाते ही मनुस्मृति फट पड़ी। आपकी हिम्मत कैसे हुई, मिनी की ज़िंदगी का फैसला करने की। मैने अपना सारा जीवन लगा दिया, यही हालत मुझे मेरी बेटी की नहीं करनी। और वो भी व्योम के दोस्त के घर, जैसे ये हैं वैसे ही इनके दोस्त मिलेंगे।मनुस्मृति का इतना कहना था
कि सास ससुर और व्योम सब एक हो गए। हमारी क्या बेटी नहीं है, तुम्हारी हिम्मत कैसे हो गई ऐसा कहने की, निकलो घर से। जोश जोश में मनुस्मृति भी कह गई हां, जा रही हूँ अपनी मां के घर वैसे भी जब मुझे ख़ुद ही कमाकर अपना और बच्चों का पेट भरना है तो क्या फायदा यहां रहने का।
मनुस्मृति ने देखा किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ा, उल्टे रात को व्योम बेटे मिंटू को बोतल दिखा कह रहा था कि अरे तू चखकर तो देख, जन्नत का सा मज़ा आएगा।
दिन का गुस्सा तो भरा ही था, वो फिर शुरू हो गई, हां बिगाड़ दो इसको भी, जवानी तो खराब कर दी, बुढ़ापा भी बिगाड़ दो मेरा। उसका यह कहना था कि व्योम ने दो थप्पड़ रसीद दिए, बोलती है मेरे सामने और हां मिनी का रिश्ता मैने 50000 में तय कर दिया है और इसके बदले वो पचास हज़ार रुपए भी देंगे।
यह सुनते ही, मनुस्मृति के होश उड़ गए, रात भर उसने ने खूब सोच विचारकर फैसला किया यदि बच्चों का आज बचाना है और भविष्य संवारना है तो यहां से निकल जाना ही ठीक है, वैसे भी जैसा व्योम जब पिता होकर मिनी को बेचने का सोच सकता है तो उस से कोई उम्मीद रखना ही बेकार है।
सुबह उठी तो सामान बांधने लगी, सास बोली कहां भागकर जा रही हो अब बुढ़ापे में। उसने कोई जवाब न दिया। जब उसे लगा कि अब वो नहीं मानेगी तो संयोगिता जी ने अपना इमोशनल अत्याचार शुरू कर दिया, मेरे पोता पोती को तो छोड़ जा।मेरी गल सुन, मुझे तकलीफ देकर तू कभी सुखी नहीं रह पाएगी।
पर अब मनुस्मृति फैसला कर चुकी थी, आगे क्या होगा वो तो समय बताएगा पर अब वो इस अग्निपरीक्षा में अपने बच्चों की आहुति नहीं देगी, यह सोच वह चल दी, दोनों बच्चों को लेकर, एक नए सफर पर।वैसे भी उसके हाथ में अब उसकी सरकारी नौकरी का जॉइनिंग लेटर था, ताकि वह बच्चों और अपने साथ अपनी मां का भी ख्याल रख सके।
लेखिका
ऋतु यादव
रेवाड़ी (हरियाणा)
# मुझे तकलीफ देकर तू कभी सुखी नहीं रह सकती