स्वार्थी संसार – सीमा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

अंशिका बेटी, आपकी सादगी और प्रगतिशील विचारों ने हमें बहुत प्रभावित किया। आपकी बात से मैं सहमत हूं कि यदि 21वीं सदी में आकर भी हम पुराने ढर्रे पर चलते रहेंगे, तो केवल कहने भर के लिए ऐसा क्यों कि बेटा, बेटी एक समान अथवा बेटा, बहू एक समान। हम आपकी नौकरी करने की इच्छा का सम्मान करते हैं। हमारा सौभाग्य है कि आप हमारे घर की बहू बनेंगी।” अंशिका के होने वाले ससुर रामकिशन जी बोले।

“हां, अंशिका बेटा! हालांकि आर्थिक संपन्नता की दृष्टि से हमारे यहां किसी चीज कमी नहीं है। जैसे तुम्हारे मायके में कोई महिला नौकरी नहीं करती, वैसी ही परंपरा हमारे यहां भी है। हम रूढ़िवादी सोच की आलोचना तो करते हैं लेकिन परिवर्तन के लिए आगे नहीं बढ़ते। तो क्यों न शुरूआत अपने घर से ही की जाए! तुम्हें पूरी छूट रहेगी जॉब करने की और अपने सपने साकार करने की।” अंशिका की होने वाली सास मधुलता जी ने भी उसे आश्वासन दिया।

अंशिका के होने वाले पति आदित्य ने तो पहले ही उसकी अभिलाषा को हरी झंड़ी दे दी थी।‌ अंशिका को महसूस हुआ जैसे उसकी झोली में सारे जहां की खुशियां आ गई हों। वह मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देने लगी। अंशिका के माता-पिता भी खुशी अनुभव कर रहे थे क्योंकि उनकी लाड़ली के सपनों को पंख जो मिल गए थे।

अंशिका की जिंदगी इस गहन विचारधारा के इर्द-गिर्द व्याप्त थी – “सादा जीवन, उच्च विचार।” एक छोटे से नगर में रहने वाले एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी, अंशिका ने बचपन से ही ज्ञान और शिक्षा को अपने जीवन का आधार मान लिया था। उसे भौतिकवादी वस्तुओं में खास रुचि नहीं थी।

अंशिका की प्रतिभा और विद्या ने उसे विद्यालय में सर्वोत्तम छात्रा का दर्जा दिया। कक्षा में सभी मित्र उसे ‘गोल्डन गर्ल’ कहकर पुकारते थे। उसके शिक्षक, विशेषकर सुनील ‌सर, सदैव उसके मार्गदर्शक रहे। “अंशिका बेटा, तुम परिश्रम करो, तुम्हारा भविष्य तुम्हारे हाथों में है,” यह वाक्य वह हमेशा कहते।

उसके माता-पिता ने भी उसे अच्छे संस्कार दिए, किन्तु पारिवारिक परंपराओं के बंधन उसकी उड़ान में बाधा बनते थे। एक दिन, जब अंशिका अपने अध्ययन में तल्लीन थी, उसकी माँ सुनीता ने उसके पास आकर कहा, “अंशिका, क्या तुमने उच्च शिक्षा के लिए आवेदन भरा है?”

इस कहानी को भी पढ़ें: 

 महत्वपूर्ण कौन? पैसा या रिश्ता – लतिका पल्लवी : Moral Stories in Hindi

अंशिका ने स्फूर्ति से उत्तर दिया, “हाँ माँ, मैं उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहती हूँ और इसके साथ-साथ नौकरी भी करना चाहती हूँ। केवल धन कमाना मेरा उद्देश्य नहीं है। मैं चाहती हूँ कि मैं अपनी विद्या का उपयोग करके समाज के लिए कुछ कर सकूँ।”

सुनीता ने थोड़ा गंभीर होकर कहा, “बेटा, हमारा परिवार तो सदियों से यह मानता आया है कि महिलाओं का स्थान घर में ही होता है।”

अंशिका ने आत्मविश्वास से भरकर कहा, “माँ, क्या हम उस परंपरा को बदल नहीं सकते? क्या मैं अपने सपनों को साकार करने का अधिकार नहीं रखती? मैं स्वावलंबी होकर स्वाभिमान से जीना चाहती हूं।”

अपनी बेटी की बात सुनकर सुनीता ने विचार-मनन किया। उसने अपने पति रमेश जी से भी विमर्श किया। तो दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि वे अपनी बेटी की इच्छाओं का गला नहीं घोंटेंगे।

दोनों ने अंशिका को अपना समर्थन देते हुए कहा, “बेटा, तुम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ो। हमें तुम्हारी खुशी से ज्यादा कुछ नहीं चाहिए।”

अब अंशिका और मन लगाकर पढ़ने लगी। उच्च शिक्षा के बाद उसे बहुत अच्छी नौकरी मिल गई। तब एक कुशल युवा पुरुष, आदित्य, ने अंशिका के माता-पिता के समक्ष उससे विवाह का प्रस्ताव रखा। और जब आदित्य के माता-पिता ने भी कह‌ दिया कि वे उसे नौकरी करने की पूरी स्वतंत्रता देंगे तो धूमधाम से ये शादी संपन्न हो गई।

विवाह के पश्चात्, अंशिका ने अपने ससुराल में नया जीवन आरंभ किया। आदित्य, जो एक सुशिक्षित व्यक्ति था, ने हमेशा अंशिका का समर्थन किया, “अंशिका, तुम अपने करियर पर ध्यान दो, मैं तुम्हारे साथ हूँ।”

अंशिका ने घर का कामकाज करने के साथ-साथ अपनी नौकरी को संभाला। वह प्रत्येक सुबह जल्दी उठती, अन्यतम प्रयासों के साथ अपनी गृहस्थी के कर्तव्यों का निर्वहन करती और ऑफिस जाकर वहां के कार्य में तल्लीन हो जाती।

एक दिन आदित्य ने कहा, “अंशिका, क्या तुमने सोचा है कि तुम हमेशा घर के कामों में व्यस्त रहती हो? अपने आराम का भी ख्याल नहीं रखती। मैं सोचता हूँ कि कभी-कभी फास्ट फूड ले आया करें।”ं

अंशिका ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “मैं मम्मी-पापा के लिए ताजा और पौष्टिक भोजन बनाना चाहती हूँ। उनकी सेहत का ख्याल रखना मेरे लिए महत्वपूर्ण है।” सुनकर आदित्य का दिल बल्लियों उछल पड़ा।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

रविवार की छुट्टी (हास्य) – रेखा जैन : Short Moral Stories in Hindi

अंशिका की स्वयं की जरूरतें बहुत कम थी तो अपने वेतन का एक छोटा-सा हिस्सा ही वह स्वयं पर व्यय करती थी। उसे बाकी के वेतन पर नियंत्रण अथवा उसके संग्रहण की कोई चाहत ही नहीं थी। इसलिए उसका डेबिट कार्ड और चेक बुक आदित्य के पास ही रहती थी। पैसे की मैनेजमेंट उसने आदित्य पर ही छोड़ रखी थी।

उसके सास-ससुर तो मृदुल स्वभाव की ऐसी संस्कारवान बहू पाकर धन्य हो गए। लेकिन भारतीय मानसिकता के वशीभूत वे अपनी बहू के समक्ष उसके गुणों की प्रशंसा करने से परहेज़ ही करते थे।

जैसा कि सर्वविदित है कि जब हमें सब कुछ सहजता से उपलब्ध हो जाता है तो हम उसके मूल्य को कम आंकने लगते हैं। यहां भी ऐसा ही होने लगा था। धीरे-धीरे सास-ससुर व पति आदित्य की अंशिका से अपेक्षाएं बढ़ने लगी।

अंशिका डिनर तो सबको गर्म-गर्म ही बनाकर खिलाती थी पर ब्रेकफास्ट और लंच के लिए खाना सुबह एक साथ बनाकर रख देती थी। अब सब उसे सुनाने लगे थे कि उसकी नौकरी के चक्कर में खाना ठंडा खाना पड़ता है।

कुछ समय के बाद, अंशिका की सास मधुलता जी ने उसे सुनाया, “अंशिका, तुम बड़ी किस्मतवाली हो जो तुम्हें इतना सीधा पति और हम जैसे इतने अच्छे सास-ससुर मिले हैं। तुम नौकरी कर रही हो‌, अपनी खुशी के लिए और कॉम्प्रोमाइज हम सभी कर रहे हैं। हमें तुम्हारे वेतन की कोई आवश्यकता नहीं। फिर भी तुम्हें जॉब करने की आजादी दे रखी है।”

दरअसल, अब घर में सबने अंशिका को ग्रांटेड ले लिया था कि नौकरी तो वह किसी कीमत पर छोड़ेगी नहीं। ऊपर से सोने पर सुहागा ये कि उसे पैसों से कोई मोह नहीं। सब धीरे-धीरे उसकी शराफत का फायदा उठाने लगे।

भारतीय परवरिश से फलीभूत सबकी स्वार्थी सोच घर में हावी होने लगी कि बहू को दबाकर नहीं रखा तो:

बहू कहीं सिर न उठाने लगे!

कहीं वह स्वयं को ज्यादा होशियार न समझने लगे!

कहीं कोई सिखा न दे कि अपना वेतन स्वयं के पास क्यों नहीं रखती!

आदि-आदि!

सब अंशिका के काम में मीन-मेख निकालकर उसे मानसिक चोट पहुंचाने लगे। अंशिका, हमें तुम्हारी नौकरी की जरूरत नहीं है। तुम्हारे महीने भर की सैलरी जितना तो हम दो-चार दिन में कमा लेते हैं। ऐसी नौकरी का क्या फायदा जिससे तुम घर के कामों में सही से रुचि नहीं दिखा रही हो?”

इस कहानी को भी पढ़ें: 

 नानी की OPD – रमन शांडिल्य : Short Moral Stories in Hindi 

अब अंशिका का मन टूटने ‌लगा। उसने आदित्य से कहा, “क्या तुम सच में मानते हो कि मैं केवल घर के कामों के लिए बनी हूँ? क्या मेरी काबिलियत का कोई मूल्य नहीं है?”

आदित्य ने उसके समक्ष सहानुभूति प्रकट करने की कोशिश की, “तुम्हें नौकरी करने से कोई नहीं रोक रहा। हम तुम्हारी कद्र करते हैं। लेकिन अपने घरेलू कर्तव्य भी तो सही से निभाओ।”

धीरे-धीरे, अंशिका को समझ आने लगा कि उसके ससुराली जन उसके स्वाभिमान को ठेस पहुंचा रहे हैं, उसके त्याग और समर्पण का अपमान कर रहे हैं।

अंशिका ने अंततः अनुभव किया, “ओह! मेरा ससुराल भी #स्वार्थी संसार का प्रतिबिंब है। प्रगतिवादिता के मुखौटे पहनकर कितनी चालाकी से यहां सभी अपना स्वार्थ साधने में लगे हैं। असल में वे सब मेरी मेहनत व निष्ठा के प्रति उदासीन हैं और केवल खुद के स्वार्थ के लिए मेरी नौकरी का लाभ भी उठा रहे हैं और मुझ पर झूठा एहसान भी जता रहे हैं।’

एक दिन अंशिका ने विचार किया, “क्यों न मैं एक योजना बनाकर इन्हें इनके स्वार्थ का अहसास कराऊँ?” योजनानुसार उसने अपने ऑफिस से छुट्टियां ले ली और कुछ दिन घर पर रहने का निर्णय लिया।

पहले दिन, उसने ताजे और स्वास्थ्यप्रद भोजन की तैयारी की। सभी ने उसकी मेहनत की सराहना की। फिर वह रोज ऐसा करने लगी। लेकिन कुछ दिनों बाद, आदित्य ने पूछा, “अंशिका, तुम अब ऑफिस क्यों नहीं जा रही?”

अंशिका ने साहसिकता से उत्तर दिया, “मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी है ताकि मैं घर के कामों को अच्छे से कर सकूँ।”

सभी के चेहरों पर चिंता की काली घटाएँ छाने लगीं। अंशिका ऐसा कदम उठा लेगी, ये तो किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था।

उसके पति ने कहा, “तुम ऐसा नहीं कर सकती। तुम्हारी नौकरी महत्वपूर्ण है। आज ही ऑफिस जाओ और अपना त्यागपत्र वापस लो।”

अंशिका के सास-ससुर ने भी आदित्य की हां में हां मिलाई। वे उसे समझाने लगे कि नौकरी के बिना वह खुश नहीं रह पाएगी।

नहीं,आदित्य! नहीं, मम्मी-पापा! मैंने सोच समझकर ये निर्णय लिया है। मुझे समझ आ गया है कि मेरी महीने भर की सैलरी ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। घर में पैसे की कोई कमी नहीं! फिर ऐसी नौकरी का क्या फायदा?”

शांत भाव से अंशिका के इतना कहते ही उसके ससुराल रूपी स्वार्थी संसार की सारी असलियत सामने आ गई।

सभी ने सिर नीचा करते हुए कहा, “अंशिका, कृपया हमें माफ कर दो। हमने तुम्हारी शराफत का फायदा उठाया है। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए था। हम स्वार्थ में अंधे हो गए थे। प्लीज इतनी प्रतिष्ठित और उच्च वेतन वाली जॉब मत छोड़ो। हमारे घर की संपन्नता में उसका बड़ा योगदान है।”

इस कहानी को भी पढ़ें: 

चुप्पी‌ का राज – संगीता श्रीवास्तव : Short Moral Stories in Hindi

अंशिका ने सबको अहसास करवाया कि वह मूर्ख नहीं है। लेकिन रिश्तों की मर्यादा वश सब सह रही थी। और अब अन्यायपूर्ण बातें नहीं सहेगी।

अंशिका ने कहा, “मैं त्यागपत्र तभी वापस लूंगी‌‌ यदि हम सभी एक-दूसरे के सम्मान और सहयोग का प्रण लें! क्या सब इसके लिए तैयार हैं?”

आदित्य व सास ससुर ने हाथ जोड़कर कहा, “अंशिका,‌ तुमने हमारी आंखें खोल दी हैं। हम वादा करते हैं कि हम तुम्हारी मेहनत की कद्र करेंगे। घर के काम सब मिलजुल कर करेंगें। तुम्हारे आराम और आत्मसम्मान का भी ख्याल रखेंगे।”

अंशिका ने अपनी योजना की सफलता के लिए ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त किया और एक नई शुरुआत की। ससुराल वाले अब उसे गंभीरता से लेने लगे थे। घर के कामों को साझा करना और मदद व सहयोग का रवैया अपनाना उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाया।

अंशिका के कार्यस्थल पर भी वह अपने जैसी परिस्थितियों का ‌सामना कर रही सहकर्मियों के लिए एक उदाहरण बन गई।‌

सबने एक स्वर में कहा, “अंशिका, तुमने अपने ससुराल में जो बदलाव लाया है, वह अद्भुत है, प्रेरणादायक है। सच में वास्तविक खुशी तभी मिलती है जब हम केवल अपना स्वार्थ न देखकर एक-दूसरे का सम्मान और सहयोग करते हैं।”

– सीमा गुप्ता (मौलिक व स्वरचित)

– साप्ताहिक विषय: #स्वार्थी संसार

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!