रिया आज विदा होकर अपने ससुराल जा रही थी।वैसे तो वह मेरी बेटी थी,किन्तु लड़का ढूंढने से लेकर कन्यादान तक की सारी जिम्मेदारियां रूपा भाभी ने बड़ी आत्मीयता से निभाईं थीं।वह रिया को एक अच्छी पत्नी व बहू बनने के सीख दे रहीं थीं..समझा रहीं थीं,कि अपने व्यवहार से सबका दिल जीतना।मैं तो बस मूक दर्शक बनी अतीत की उन यादों में खो गई,जब कमल भैया ने माँ को बताया था कि उनके ऑफिस में एक लड़की है जो क्लर्क के पद पर कार्यरत है बहुत समझदार और सुंदर है वह उससे शादी करना चाहते हैं।
माँ ने नाक भौं सिकोड़कर कहा था -“अरे क्या कमी है तुझमें? बड़ा ऑफिसर है,दिखने में गबरू जवान है खाते पीते घर का है,तुझे तो एक से बड़कर लड़कियां मिल जाएंगी।”
भैया बोले -“माँ मुझे जैसी लड़की चाहिए रूपा में वो सारे गुण हैं।”
भैया के जिद्द के आगे किसी की नहीं चली,मां ने शादी के लिए हाँ कर दी।रूपा घर में बहू बनकर आ गई।मध्यम परिवार की होने के कारण शादी बड़े ही सामान्य तरीके से हुई थी दहेज के नाम पर बस भैया के कुछ कपड़े,कुछ रुपा के खुद के कपड़े और थोड़ा बहुत जरूरत का समान था।
पिता की आकस्मिक निधन से रुपा के काँधे पर छोटे भाई और माँ की जिम्मेदारी आन पड़ी इसलिए बी.ए.की पढ़ाई के बाद,भैया के ऑफिस में क्लर्क की नौकरी करके अपने परिवार का गुजारा करती थी।
भैया चूँकि हम तीन भाई बहनों में सबसे बड़े थे इसलिए हमारे घर में पहली शादी थी।माँ बाऊ जी चाहते थे कि शादी धूमधाम से हो,क्योंकि समाज में उनकी बड़ी साख थी भैया की जिद्द के आगे उन्हें झुकना पड़ा और जिसका भुगताना भाभी को भुगतना पड़ा।
रिश्तेदार और मिलनेवाले सब घर पर भाभी को देखने आ रहे थे।माँ से पूछते,बहू दहेज में क्या लाई तो माँ सभी को ठंडी आह भरकर कहती-“अरे हमारी ऐसी किस्मत कहाँ,जो हमें कोई कुछ दे।”भैया ने माँ की बात सुनी तो क्रोधित हो उठे,मुझे पुकारा..मीना..इधर आओ।”
“जी भैया।”मैं पास आकर बोली।”
“अरे माँ को समझाओ,रूपा सुन लेगी तो क्या सोचेगी?अभी तो बेचारी ने इस घर में कदम रखा ही है।” भैया को भाभी की इतनी परवाह करते देख मैं ईर्ष्या से बोली-“माँ ठीक ही तो कहती है,सुंदरता को चाटोगे क्या?चार पैसे दहेज में लाती तो समाज में हमारी भी कुछ रेपुटेशन बनती।आप तो बस सुंदरता पर डोल गए।”कहते हुए मैं वहाँ से चलदी।
इन सब बातों से बेखबर भाभी सोफे पर मुँह झुकाए बैठी आने जाने वालों का झुककर अभिवादन कर रही थी।सभी लोग भाभी की सुंदरता की तारीफ कर रहे थे।विमल भैया कमल भैया से छोटे थे बात बातपर ठिठोली कर रहे थे..मीनू अपने कमल भैया तो गए काम से…अभी से जोरू के गुलाम बन गएं हैं।
हम सब भाभी की भावनाओं को नजरदांज करते हुए उनपर व्यंग कस रहे थे।रात को भैया भाभी के कमरे में जा रहे थे,मुझे लगा अब तो बस भैया भाभी के हो जाएंगे हमारा तो उनपर कोई अधिकार नहीं रह जाएगा।
मैं मन ही मन भाभी से ईर्ष्या करने लगी थी भैया कभी मेरे नाज नखरे मनाते नहीं थकते थे,अब तो बस रूपा..रूपा करते रहतें हैं।मैं सुंदर नहीं थी,किन्तु इस बात से तसल्ली कर लेती थी कि भाभी से ज्यादा पढ़ी लिखी हूँ और अमीर माँ बाप की इकलौती बेटी हूँ।
माँ बाऊ जी समय समय पर भाभी को दहेज के नाम पर ताने देते रहते थे,पर वह कभी किसी से कुछ नहीं कहती थीं।
समय कब बीत गया पता ही नहीं चला विमल भैया की और मेरी शादी हो गई थी।विमल भैया विदेश चले गए और मैं अपने ससुराल घर की सारी जिम्मेदारिययां रूपा भाभी के काँधे पर आन पड़ीं,जिन्हें उन्होंने बखूबी संभाल लिया।मैं शहर में थी तो मायके आती जाती रहती थी।जब भी घर आती,भाभी मेरा बहुत प्यार से स्वागत करतीं..लेने देने में भी कोई कसर नहीं रखतीं थीं।
भाभी की गोद में अब प्यारा सा भतीजा आ गया था मुझे कहती रहती थीं,तुम कब खुशखबरी सुनाओगी?मैं मुस्कुराकर रह जाती।
शादी के दो वर्ष बाद,वो दिन आ ही गया मैं प्रेग्नेंट हो गई।भाभी को जब पता चला तो वह बहुत खुश हुईं,बोली..तू चिंता मतकर..मैं हूँ न सब संभाल लूँगी।कहते हैं कभी कभी मुँह से निकली बात सच हो जाती है..ऐसा ही हुआ,भाभी को ही मुझे संभालना पड़ा।मेरी डिलीवरी ऑपरेशन से हुई थी ऑपरेशन में एनेस्थीसिया की ज्यादा मात्रा दे देने से मुझे दो दिन तक होश नहीं आया।माँ की तबियत ठीक नहीं रहती थी और सासू माँ को भी घुटनों में दर्द रहता था,इसलिए भाभी अपने बच्चे की परवाह किए बग़ैर मेरे साथ हॉस्पिटल में रहतीं थीं और मेरी व बच्ची की देखभाल करतीं थीं।अस्पताल से छुट्टी तो मिल गई,पर डॉक्टर ने मुझे बेड रेस्ट के लिए बोला।
भाभी ने मेरे पति से मुझे अपने घर ले जाने के लिए बोला,तो वह भी राजी हो गए क्योंकि ससुराल में कोई मेरी और बच्ची की देखभाल करने वाला नहीं था।
मैं अपनी बच्ची के साथ मायके आ गई भाभी ने रात रातभर जागकर हम दोनों माँ बेटी की बहुत सेवा की।बेटी का नाम रिया भी उन्होंने ही रखा था।भाभी का निस्वार्थ भाव से यूँ सेवा करना मेरे दिल को छू गया सच भाभी तन से ही नहीं मन से भी सुंदर थीं।आज भैया की पसंद पर हम सभी घरवालों को नाज हो रहा था।
रिया सवा महिने की हो गई थी और ज्यादातर भाभी की गोद में ही रहती थी।भतीजे अंशुल को स्कूल भेजकर और घर के सभी काम निबटाकर भाभी मुझे नहलाती,फिर बेटी की मालिश करती उसे नहलाती उसके सुसु पॉटी के कपड़े भी बिना घिन किए खुद धोती थीं।
मेरी हालत में धीरे धीरे सुधार हो रहा था..अब मैं अपने छोटे मोटे काम खुद कर लेती थी।रिया भाभी के साथ बहुत घुलमिल गई थी।
रिया जब 3 महीने की हो गई तो मैंने भी घर जाने का मन बना लिया हालांकि भाभी और माँ चाहतीं थीं,कि मैं एक महिना और रुकूँ।
पति लेने आ गए भाभी से गले मिलकर मैं बहुत रोई।भाभी भी रिया को गोद में लेकर बार बार चूम रहीं थीं,जैसे वह उनकी ही बेटी हो।
मैं बोली-“भाभी,रिया ने भले ही मेरी कोख से जन्म लिया हो,पर उसको पाल पोसकर बड़ा आपने किया है,इसलिए रिया पर सदा पहले आपका हक रहेगा।”
रिया के लिए हमेशा भाभी बड़ी माँ रहीं और आज उसका कन्यादान भी बड़ी माँ के हाथों ही हुआ।दिल से बस यही आवाज आई-” थैंक्यू भाभी,मेरी जिंदगी में खुशियों की चाबी बनने के लिए।”
सच दहेज पैसा ये तो बस एक छलावा है असल जिंदगी में तो इंसान का व्यवहार और संस्कार ही काम ही आते हैं।
कमलेश आहूजा