उसने अपनी सच्ची खुशी को पहचान लिया था – ऋतु सिंघल : Moral Stories in Hindi

 नीलिमा और सुधा का रिश्ता किसी अन्य जेठानी-देवरानी के रिश्ते से काफी अलग था। उनकी एक-दूसरे के प्रति गहरी समझ थी और वे एक-दूसरे के दुख और सुख में हमेशा साथ खड़ी रहती थीं।

आज का दिन सुधा के परिवार के लिए बेहद खास था, क्योंकि नीलिमा की गोदभराई का समारोह था। नीलिमा को दो साल बाद मातृत्व सुख मिलने वाला था, और इस खुशी में सुधा सबसे अधिक उत्साहित थी। सुधा ने सुबह से ही पूरे घर में समारोह की तैयारियां संभाल रखी थीं। घर में खुशी का माहौल था, और हर कोई नीलिमा की इस नई यात्रा को लेकर उत्साहित था।

सुधा के दिल में एक अजीब सी खुशी और संतोष था। उसने नीलिमा को अपनी छोटी बहन की तरह माना था और इस आने वाले बच्चे को भी वह अपना ही मानती थी। उसे लगता था कि नीलिमा का बच्चा सिर्फ उसका भतीजा या भतीजी नहीं होगा, बल्कि उसका भी बच्चा होगा। वह इस बात से बहुत खुश थी कि उसकी गोद भले खाली हो, लेकिन इस बच्चे के जन्म के बाद उसके जीवन में भी एक नई खुशी का संचार होगा। उसे विश्वास था कि यह बच्चा उसे “बड़ी मां” कहकर बुलाएगा और वह इस रिश्ते को संजोकर रखेगी।

समारोह की शुरुआत हो चुकी थी और घर में हर कोई नीलिमा की गोदभराई के लिए बधाई देने और रस्म निभाने में व्यस्त था। सुधा ने नीलिमा को अपनी ओर से उपहार देने की तैयारी कर रखी थी। वह नीलिमा की गोद में आशीर्वाद के साथ एक उपहार देने के लिए जा ही रही थी कि अचानक बुआ सास, जो दूर के रिश्ते से आई थीं, ने एक कठोर और बेतुका ताना मार दिया। उन्होंने सुधा को देखकर ताने मारते हुए कहा, “अरे, यह क्या अपशकुन करने जा रही हो? तुम तो बांझ हो, तुम्हें नीलिमा से दूर रहना चाहिए।”

उनके इस कटाक्ष ने सुधा के दिल पर गहरी चोट कर दी। नीलिमा के चेहरे पर भी एक असहजता सी आ गई, लेकिन उसने अपने भीतर के साहस को समेटते हुए बुआ सास को चुप करा दिया और सुधा को सहारा दिया। नीलिमा ने कहा, “बुआजी, आप ऐसी बातें क्यों कर रही हैं? सुधा दीदी मेरे लिए हमेशा से बड़ी बहन की तरह रही हैं, और उनकी दुआओं और स्नेह के बिना यह खुशी अधूरी है।”

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नीलिमा की यह बात सुनकर सुधा की आँखों में आँसू आ गए, लेकिन उसने अपने आँसुओं को छिपाने का प्रयास किया। वह और अधिक देर वहाँ नहीं रुक सकी और सबसे माफी मांगकर अपने कमरे में चली गई। उसने खुद को कमरे में बंद कर लिया और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। बुआ सास की उन कठोर बातों ने उसके जख्मों को फिर से हरा कर दिया था। उसने कई सालों से अपने अंदर इस दर्द को छिपा रखा था, लेकिन आज समाज के तानों और तिरस्कार ने उसके भीतर के इस घाव को फिर से कुरेद दिया था।

सुधा को याद आया कि कैसे उसने अपने जीवन में इस दर्द को सहा था। शादी के बाद उसके जीवन में भी एक समय था जब उसे मातृत्व सुख की उम्मीद थी। लेकिन ईश्वर की मर्जी कुछ और थी। वह इस खुशी से वंचित रह गई। उसने अपने इस दर्द को अपने भीतर ही दबा रखा था और अपने जीवन में खुशी और संतोष खोजने की कोशिश की थी। उसने कभी किसी के सामने अपनी कमी को उजागर नहीं होने दिया था। वह हमेशा मुस्कुराती रहती, सबसे प्यार से मिलती, और परिवार में सबकी खुशियों में शामिल रहती थी।

आज जब बुआ सास ने उसकी इस कमी पर ताना मारा, तो उसे यह महसूस हुआ कि समाज में ऐसे कई लोग होते हैं जो किसी के दर्द को समझने की बजाय उसे और गहरा कर देते हैं। हमारे आस-पास ऐसे लोग होते हैं, जिन्हें दूसरों के जख्मों पर नमक छिड़कने में मजा आता है।

कमरे में बैठी सुधा अपने भीतर की इस उथल-पुथल से जूझ रही थी कि तभी नीलिमा कमरे में आई। नीलिमा ने सुधा का हाथ पकड़ा और उसे ढांढस बंधाते हुए कहा, “दीदी, आप इतनी कमजोर मत बनिए। आप मेरे लिए हमेशा मेरी बड़ी बहन और इस आने वाले बच्चे की बड़ी मां हैं। इस बच्चे के जीवन में आपका महत्व सबसे अधिक है। किसी के कहने से आपकी अहमियत कम नहीं होती।”

नीलिमा की यह बातें सुनकर सुधा को कुछ राहत मिली। उसे महसूस हुआ कि उसके पास ऐसे लोग हैं जो उसकी असली कीमत समझते हैं और उससे सच्चा स्नेह करते हैं। उसने नीलिमा को गले लगाया और उसकी आँखों में एक बार फिर से उम्मीद और खुशी की चमक लौट आई।

उसे अब यह समझ में आ गया कि समाज में कुछ लोग हमेशा रहेंगे जो दूसरों के दुख और दर्द को देखकर कटाक्ष करेंगे, ताने मारेंगे, और जख्मों पर नमक छिड़कने से पीछे नहीं हटेंगे। लेकिन इस बात से उसकी खुद की अहमियत कम नहीं होती। वह एक मजबूत महिला थी, और उसने अपने जीवन में किसी और की बातों से खुद को कमजोर नहीं होने देने का फैसला किया। उसने यह ठान लिया कि वह उन लोगों के तानों को अपनी कमजोरी नहीं बनने देगी और अपने जीवन को अपने आत्म-सम्मान और सच्चे रिश्तों के साथ जीने का निर्णय लेगी।

इस घटना के बाद, सुधा ने खुद से एक वादा किया कि वह अपने जीवन में किसी भी ताने या कटाक्ष को अपने ऊपर हावी नहीं होने देगी। उसने अपनी सच्ची खुशी को पहचान लिया था और यह समझ लिया था कि उसकी असली ताकत उसके सच्चे रिश्तों में है, न कि समाज के नकारात्मक तानों में।

अब वह पहले से भी ज्यादा आत्मविश्वास और सशक्त महसूस कर रही थी। उसने अपने भीतर की उस कमजोर भावनाओं को त्याग दिया था और यह निर्णय लिया था कि वह हमेशा अपनी खुशियों और आत्म-सम्मान के साथ जीएगी।

ऋतु सिंघल

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