पापा! नीता की जगह अगर आपकी बेटी होती तो… – कुमुद मोहन : Moral Stories in Hindi

नीता और रमन की शादी का दिन था। यह वह दिन था जिसका नीता ने बचपन से सपना देखा था। अपने मन में अनेक सपनों और उम्मीदों के साथ वह रमन के साथ फेरे लेने के लिए तैयार थी। मंडप में सजी हुई नीता के चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान थी, उसकी आँखों में भविष्य के सुनहरे सपनों की झलक थी। उसके परिवार के लोग भी खुश थे और विवाह की हर रस्म को हर्षोल्लास के साथ निभा रहे थे।

तभी अचानक, एक अप्रत्याशित मोड़ आया। जब फेरे शुरू होने वाले थे, तो रमन के पिता, सोनपाल जी, ने एक अजीब सी मांग कर दी। उन्होंने नीता के पिता से कहा, “फेरे तभी होंगे जब हमारे बेटे को मोटरसाइकिल दी जाएगी। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो बारात वापस चली जाएगी।” उनकी आवाज में कठोरता और कठोरता थी, जिससे सभी लोग सन्न रह गए। यह सुनकर मंडप में खड़े सभी लोग सकते में आ गए।

नीता के पिता के चेहरे पर चिंता की रेखाएं साफ झलकने लगीं। वह पहले ही शादी के खर्चे में अपने जीवन भर की जमापूंजी लगा चुके थे, और अब यह नयी मांग उनके लिए एक बड़ा झटका थी। वे सोचने लगे कि कैसे इस स्थिति को संभालें, क्योंकि उनके पास अब और पैसे नहीं थे कि वे अचानक से दहेज की इस नई मांग को पूरा कर सकें। वे सोनपाल जी के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए, लेकिन सोनपाल जी का रुख अडिग था। उन्होंने अपनी बात दोहराई और अपने बेटे रमन का हाथ पकड़कर मंडप से उठने का इशारा किया।

नीता, जो कि दुल्हन के जोड़े में सज-धज कर मंडप में बैठी थी, अपनी आँखों में आँसू भरकर इस दृश्य को देख रही थी। उसकी आँखों में अपने जीवन का सबसे बड़ा सपना टूटता हुआ दिखाई दे रहा था। उसने डरते हुए रमन की ओर देखा, जैसे कि उससे उम्मीद की हो कि वह इस स्थिति को संभाल लेगा। उसके मन में सवाल उठ रहे थे कि क्या उसका होने वाला पति उसके साथ खड़ा होगा या नहीं।

तभी, रमन ने अचानक एक साहसिक कदम उठाया। उसने अपने पिता का हाथ छुड़ाया और गंभीर आवाज में कहा, “पापा! नीता की जगह अगर आपकी बेटी होती तब क्या आप ऐसा ही करते? क्या आप भी उसकी इज्जत का सौदा करते? किसी की मजबूरी का फायदा उठाना उचित नहीं है। मेरे लिए दहेज मत मांगिये। मुझे आपकी दुआएं चाहिए, न कि किसी और की इज्जत का सौदा।”

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रमन की इस बात ने मंडप में खड़े सभी लोगों के दिल को छू लिया। सोनपाल जी, जो अपने बेटे के इस निर्णय से स्तब्ध थे, अपने मन में शर्मिंदगी महसूस करने लगे। वह समझ गए कि उनके बेटे ने जो कहा, वह बिल्कुल सही था। इस दहेज की मांग ने न केवल नीता और उसके परिवार को चोट पहुंचाई, बल्कि उनके बेटे की आँखों में उनके लिए आदर भी कम कर दिया था। सोनपाल जी को महसूस हुआ कि उनकी इस मांग ने उनके बेटे के नजर में उनकी इज्जत को गिरा दिया था।

रमन ने आगे कहा, “पापा, भगवान की कृपा से और आपके आशीर्वाद से मैं इतना काबिल हूँ कि अपनी मेहनत से कमाकर आपके लिए कार तक खरीद सकता हूँ। लेकिन किसी की इज्जत की कीमत पर मुझे यह खुशी नहीं चाहिए। मेरी खुद की आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचे, पर मैं किसी और की आत्म-सम्मान को ठेस नहीं पहुंचा सकता।”

रमन की यह बात सुनकर सोनपाल जी की आँखों में आंसू आ गए। उन्हें एहसास हुआ कि उनकी इस मांग ने उन्हें गलत रास्ते पर ला खड़ा किया था। उन्होंने नीता के पिता की ओर देखा और शर्मिंदगी महसूस करते हुए कहा, “मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं लालच में आकर यह भूल बैठा था कि हमारी जिम्मेदारी अपने बच्चों को खुश रखने की है, न कि उनकी इज्जत का सौदा करने की। कृपया मुझे माफ़ कर दें और जल्दी से फेरों की तैयारी करें, मुहूर्त निकल रहा है।”

नीता के पिता, जो कि इस स्थिति से टूट चुके थे, सोनपाल जी के इस बदले हुए रुख को देखकर चकित रह गए। उन्होंने तुरंत उनकी माफी को स्वीकार किया और फेरे की तैयारी में जुट गए।

मंडप का माहौल फिर से खुशनुमा हो गया। सभी ने राहत की सांस ली, और इस बार फेरे शुरू हुए तो उन सभी में एक नयी ऊर्जा, विश्वास और खुशी का संचार था। नीता और रमन के फेरे उस समय लिए गए जब दोनों के दिल एक-दूसरे के प्रति आदर और सम्मान से भरे हुए थे।

यह शादी केवल दो लोगों का नहीं, बल्कि दो परिवारों का मिलन था। रमन ने अपने साहस और अपने विश्वास से यह साबित कर दिया कि सच्चे रिश्तों में कोई लालच नहीं होना चाहिए। उसने दिखा दिया कि किसी के सम्मान से बढ़कर कुछ नहीं होता। उस दिन रमन ने समाज को यह संदेश दिया कि दहेज की प्रथा को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए और शादी को केवल प्रेम, विश्वास और सम्मान के आधार पर ही होना चाहिए।

इस तरह, नीता और रमन का जीवन एक नई शुरुआत के साथ आगे बढ़ा, जिसमें लालच और दहेज के लिए कोई जगह नहीं थी। उनके इस साहसी कदम ने समाज में एक सकारात्मक संदेश दिया और उस विवाह को एक नई मिसाल बना दिया।

मौलिक रचना

कुमुद मोहन

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