पछतावा – मोनिका रघुवंशी : Moral Stories in Hindi

सुवर्णा का मन सदियों से ठहरा हुआ प्रतीत हो रहा था, मानो उसकी भावनाएँ कहीं जड़ हो गई हों। जब वह सामने खड़ा था, उसकी आँखों में पछतावे और शर्म का भाव था, लेकिन वह वह भावनाओं को फिर से सहलाना नहीं चाहती थी।

सुवर्णा और उसके पति के बीच का रिश्ता एक ऐसा रिश्ता था, जो किसी समय बहुत गहरा था। उसकी आँखों में अब उसे देखकर कोई कोमलता नहीं थी। वो दिन याद आ गए जब वह सपने बुनती थी उनके साथ एक सुखी परिवार का। उस छोटे-से घर में वह और उसके पति, उनके बच्चे, और उनकी हंसी-खुशी के पल — यही उसका छोटा-सा सपना था। जब भी वह घर के किसी कोने में बैठती, उसे यही ख्याल आता कि कैसे उनके बच्चे हँसते, खेलते और अपनी छोटी-छोटी इच्छाओं को उसके पास आकर व्यक्त करते। एक साधारण-सा जीवन, लेकिन उसके लिए सबसे मूल्यवान था।

वह जैसे ही कुछ कहने लगी, उसकी आवाज़ में कोई कोमलता नहीं थी। उसने कहा, “हाँ, यही तो चाहती थी मैं कि हम सब साथ रहें, हंसे, खेले, खाए… एक छोटा-सा सपना संजोया था मैंने, जो शायद हर स्त्री संजोती होगी। लेकिन तुमने उसे चूर-चूर कर दिया। मैंने तुम पर विश्वास किया, तुमसे प्यार किया, और सोचा कि ये प्रेम हमेशा रहेगा। मगर तुमने उस प्यार और विश्वास को सात साल पहले छोड़ दिया। तुमने सिर्फ मुझे ही नहीं, बल्कि अपने उन मासूम बच्चों को भी अनदेखा कर दिया, जो सिर्फ तुमसे यह उम्मीद करते थे कि उनका पिता हमेशा उनके साथ रहेगा।”

सुवर्णा का चेहरा कठोर था और उसकी आवाज में एक ऐसा तेज था, जिसने सामने खड़े उसके पति को बिल्कुल चुप कर दिया। वह अपनी जगह पर खड़ा रह गया और उसके पास इस सवालों का कोई जवाब नहीं था। वह जानता था कि उसने गहरी चोट दी थी, लेकिन आज उसे उस दर्द का एहसास हो रहा था।

सुवर्णा ने दर्द भरी मुस्कान के साथ कहा, “शादी के सात साल बाद तुमने मुझे और मेरे बच्चों को केवल इसीलिए छोड़ दिया क्योंकि तुम्हारा दिल किसी और से लग गया। तुम मेरे लिए सब कुछ थे। मैं अपने घर-परिवार को छोड़कर आई थी, तुम्हारा साथ पाने के लिए, पर तुमने मेरे उस विश्वास का तिरस्कार किया। तुम्हारे अपने माता-पिता ने भी तुम्हें हर दिन याद किया, तुम्हारे लौटने की आस में हर दिन बिताए। तुम्हारी माँ की आँखें हर पल दरवाजे की ओर लगी रहती थीं कि शायद तुम आ जाओगे, लेकिन तुमने उन्हें एक बार भी नहीं देखा।”

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सुवर्णा की बातें सुनते हुए उसके पति का सिर शर्म से झुका हुआ था। उसने कभी नहीं सोचा था कि वह लौटकर आएगा और उसे अपनी पिछली गलतियों का सामना ऐसे करना पड़ेगा। उसे समझ में आ गया था कि उसने कितने लोगों का दिल दुखाया है और कितना कुछ खो दिया है। लेकिन अब यह सब बदलने में वह असमर्थ था।

सुवर्णा ने आगे कहा, “तुम्हारे जाने के बाद हमने यह मान लिया था कि तुम अब हमारे लिए नहीं हो। धीरे-धीरे हमने एक नई ज़िंदगी जीना शुरू किया। तुम्हारे बिना बच्चों को पालना, उन्हें हर रोज़ प्यार देना, उनके सपनों को सहारा देना, ये सब मैंने अकेले किया। मुझे पता था कि तुम्हारी वापसी का कोई मतलब नहीं है और शायद तुम अब कभी लौटोगे भी नहीं। तुम्हारे बिना मैंने खुद को मजबूत किया, और अपने बच्चों को तुम्हारे बिना जीने का मतलब समझाया।”

सुवर्णा के पति ने अपने अधूरे शब्दों में कहा, “मुझे माफ कर दो, मैं जानता हूँ मैंने बहुत बड़ी गलती की। मुझे नहीं पता कि मैंने क्या खो दिया था, पर अब समझ में आ गया है कि मेरे लिए कुछ भी बाकी नहीं बचा है।”

सुवर्णा ने उसकी ओर देखा और उसकी आँखों में कड़वाहट साफ झलक रही थी। उसने कटुता भरी आवाज में कहा, “आज तुम इसीलिए वापस आए हो क्योंकि तुम्हारे पास अब कुछ नहीं बचा है। तुम्हारे शरीर में अब वो ताकत नहीं, तुम्हारा पैसा खत्म हो गया है और तुम्हारी तथाकथित प्रेमिका ने तुम्हें छोड़ दिया। उसके लिए तुम्हारा साथ तब तक था, जब तक तुम ताकतवर और संपन्न थे। अब तुम टूट चुके हो, और तुम्हें ठिकाने की तलाश है। तुम्हें याद आई अपनी पत्नी और बच्चे की, क्योंकि अब तुम्हारे पास और कोई सहारा नहीं है। लेकिन मेरी जिंदगी में तुम्हारी कोई जगह नहीं है।”

उसके पति के चेहरे पर अपराधबोध का भाव स्पष्ट था। वह समझ चुका था कि उसने अपनी पत्नी और बच्चों के साथ-साथ अपने माता-पिता का भी दिल दुखाया है। सुवर्णा ने अपने बच्चों के लिए इतनी कठिनाइयों का सामना किया और हर दर्द को झेलकर अपने बच्चों का पालन-पोषण किया। उसे पता चल गया था कि अब सुवर्णा उसके बिना खुश और संतुष्ट है। वह जानता था कि अब सुवर्णा को उसकी कोई जरूरत नहीं है।

सुवर्णा ने अपनी बात जारी रखी, “मैंने तुम्हारे बिना जीना सीख लिया है। बच्चों ने भी ये मान लिया है कि उनके पिता का अब उनके जीवन में कोई स्थान नहीं है। जब तुमने हमारी परवाह नहीं की, तो हमें भी अब तुम्हारी कोई परवाह नहीं। और मैं अब तुम्हारी पत्नी बनकर तुम्हारी सेवा करने का सोच भी नहीं सकती।”

सुवर्णा के पति का सिर और भी झुक गया। उसके पास अब कहने को कुछ नहीं था। वह चुपचाप खड़ा रहा, उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। सुवर्णा ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “हाँ, ये संस्था ‘बसेरा’ मैं ही चलाती हूँ। यह संस्था उन बेसहारा लोगों को सहारा देती है, जिनका इस दुनिया में कोई नहीं है। वे लोग जो अपने अपनों के बीच से पराए हो गए हैं। अगर तुम चाहो तो यहाँ एक अनाथ की हैसियत से रह सकते हो, कुछ आवश्यक कागजी कार्यवाही पूरी करके तुम्हें यहाँ जगह मिल जाएगी।”

यह सुनकर उसके पति के पास कोई जवाब नहीं था।

मौलिक रचना 

– मोनिका रघुवंशी

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