खुशियों के दीप – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

शकुन के चेहरे की खुशी आज देखते बन रही थी।सही मायने में तो दीपावली आज मन रही थी शकुन के घर खुशियों के दीप जो जले थे। नाचती फिर रही थी शकुन ।आज तीन सालों बाद घर में खुशियों के दीप जलें है । नन्ही मुस्कान भी नई मां की गोद पाकर खुश थी । मां के आंचल को तरसी नन्ही मुस्कान दिव्या को मां के रूप में पाकर खुश हो रही थी।

               शकुन आज अपनी अलमारी खोले बैठी थी और दिव्या को जेवर ले रही थी ,ले बेटा इसमें से जो पंसद आए वो जेवर ले लो और पहन लो इस घर में तुम्हारी पहली दीवाली है अच्छे से तैयार हो जा ,जी मां जी।ला मुस्कान को मुझे दे दो नहीं मैं मां के पास रहूंगी। हां हां मां के पास ही रहना पर उसको तैयार तो हो लेने दे। मां बेटी का प्यार देखकर शकुन निहाल हुई जा रही थी और ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि दिव्या के मन में मुस्कान के लिए सौतेला पन न आए वो इसे हमेशा सगी मां जैसा ही प्यार करे ।बेचारी मुस्कान पैदा होते ही बिन मां की हो गई बहुत तरसी है मां के लिए।

                     चार साल पहले शकुन ने अपने इकलौते बेटे नमन की बड़ी धूमधाम से शादी करनी थी निकिता के साथ । बहुत सुंदर जोड़ी थी ।एक दूसरे को दोनों बहुत चाहतें थे। बहुत सुंदर सुघड़ और सबका मान सम्मान करने वाली बहू मिली थी शकुन को । शकुन को कोई काम ही न करने देती थी सबकुछ मैं संभाल लूंगी ऐसा बोलती शकुन से ।सांस बहू दोनों खूब हिलमिल कर रहती थी ।संग संग मिलकर सारे काम निपटा देती संग संग बाजार घूमती कहीं जाना है तो दोनों साथ-साथ ही जाती आती आस पड़ोस सब इनको देख कर आश्चर्य चकित थे क्योंकि आजकल तो बहुओं को सांस सुहाती ही नहीं है और ये दोनों तो ऐसी लगती है जैसे सांस बहू न होकर मां बेटी हो ।

                 इन्हीं खुशियों में दिन बीत रहे थे अभी शादी के आठ महीने हुए थे कि पता लगा निकिता प्रेगनेंट हैं । नन्हे मेहमान के आने की खुशी सबके चेहरे से साफ छलक रही थी।नमन के तो खुशी का ठिकाना नहीं था । निकिता के बालों में उंगलियां फिराते हुए नमन निकिता से बोला देखो मुझे तो तुम्हारी जैसी बेटी चाहिए ,और यदि बेटा हो गया तो , बेटा हुआ तो तुम्हारा और बेटी हुई तो मेरी अच्छा कह निकिता नमन के बांहों के आगोश में समा गई।

                  शकुन का निकिता को सख्त आदेश था कि कोई भारी सामान नहीं उठाओगी और कोई काम नहीं करोगी ये क्या मम्मी काम क्यों नहीं करूंगी आप अकेले कितना काम करेगी थोड़ा बहुत तो एक्टिव रहना जरूरी है डाक्टर भी बोलती है एक जगह बैठे नहीं रहना है नहीं तो परेशानी हो जाएगी । अच्छा अच्छा जो अच्छा लगता है थोड़ा बहुत कर लेना लेकिन अपनी डाइट का भी विशेष ध्यान रखना है खूब अच्छा खाओगी पाओगी तभी तो स्वस्थ और सुंदर बच्चा भी होगा न हां मम्मी जी।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

अफ़सोस – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi

            बस ऐसे ही समय बीतता रहा शकुन ने बहू पर बहुत ज्यादा ध्यान रखा हुआ था । लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर होता है। सातवे महीने में निकिता को ब्लीडिंग शुरू हो गई और‌ निकिता को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा ।प्री मैच्योर डिलिवरी करानी पड़ी इसलिए बच्ची बहुत कमजोर थी हां बेटी हुई थी उसको मशीन के अंदर रखना पड़ा । लेकिन निकिता को कुछ काम्पलीकेशन ऐसे हो गए कि निकिता को बचाया नहीं जा सका और नन्ही सी बच्ची को छोड़कर निकिता इस दुनिया से चली गई।

                  बेटी के आने की खुशी भारी ग़म में बदल गई भारी दुख का सामना करना पड़ा सबको ।नमन तो बिल्कुल पागल हुआ जा रहा था। निकिता के बिना सबकुछ संभालना शकुन को बहुत भारी पड़ रही था।एक तरफ बच्चे को देखना था दूसरी तरफ नमन को ।नमन के पिता जी ने भी नमन को बहुत समझाया देखो बेटा उस ऊपर वाले के आगे सब बेबस है क्या कर सकते हो संभालों अपने आपको ।

                 दो महीने तक बच्ची को मशीन के अंदर रखा अब बच्ची थोड़ी ठीक हो गई थी उसे घर ले जाने की इजाजत मिल गई थी ।अब शकुन दिनभर बच्ची को संभालने में ही लगी रहती बिन मां के बच्ची को संभालना बहुत मुश्किल हो रहा था ‌‌‌घर के कामों की दिक्कत होने लगी तो फिर शकुन ने घर के लिए एक सहायिका रख ली ।नमन तो बच्ची की तरफ देखता भी नहीं था उसको लगता इसकी वजह से ही मेरी निकिता मुझसे दूर हुई है ।

           शकुन ने बच्ची का नाम मुस्कान रखा । मुस्कान धीरे धीरे बड़ी हो रही थी । मुस्कान चार महीने की हो रही थी।आज शकुन ने मुस्कान को नमन की गोद में दिया तो उसने मुंह फेर लिया ।ये क्या बेटा नमन बेटी की क्या ग़लती है तू उसे क्यों कसूरवार समझ रहा है देख तेरी तरफ कैसे देख रही है । नहीं मां मैं जब इसकी तरफ देखता हूं तो मुझे निकिता याद आ जाती है कैसे भूलूं उसको । नहीं बेटा इसमें इसका कोई दोष नहीं है ये तो ऊपर वाले का फैसला था इसमें हम और तुम कुछ नहीं कर सकते।

                सालभर बाद एक दिन शकुन नमन से कहने लगी बेटा तू दूसरी शादी कर ले । अकेले मुस्कान को नहीं संभाल पाती हूं।और तेरा जीवन भी कैसे कटेगा अभी तेरी उम्र ही क्या है। मुस्कान कैसे बिन मां के रहेगी। लेकिन नमन ने साफ़ साफ़ मना कर दिया था । फिर भी शकुन लड़की की तलाश कर रही थी जो जरूरत मंद हो और मुस्कान को संभाल सके ।इधर उधर शकुन और रिश्तेदारों में बोलतीं रहती थी कि कोई लड़की बताओ ।नमन  को तो मना ही लूंगी । ऐसे ही धीरे धीरे मुस्कान तीन साल की होने को आ गई।

           तभी शकुन के भाई का देहांत हो गया और उसे वहां जाना पड़ गया मुस्कान को भी ले गई साथ में यहां किसके पास छोड़ती । वहां काफी पुराने रिश्ते दारों से मुलाकात हुई ।उस समय वहां शकुन की मौसी भी गांव से आई हुई थी । मौसी से मुलाकात बहुत सालों में हुईं दोनों ने एक दूसरे का हालचाल जाना और शकुन की बहूं के बारे में मौसी ने अफसोस भी किया ।तू नमन की दूसरी शादी कर दें शकुन हां मैं भी इसी चक्कर में हूं

लेकिन कोई लड़की समझ में नहीं आ रही है । फिर मौसी ंने बताया कि हमारी नन्द की बेटी की बेटी है अभी एक साल पहले उसकी शादी हुई थी उसका आदमी बिजली का काम करता था एक दिन डियूटी पर था और उसको करेंट लगा और उसकी मृत्यु हो गई । ससुराल वालों ने उसे निकाल दिया मां बाप उसके है नहीं भाई भाभी रखते नहीं है ठीक से । सुनकर शकुन की जिज्ञासा बढ़ गई और मौसी देखने सुनने में कैसी है ।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

प्यार की एक कहानी – नीलम सौरभ

सुंदर और सुघड़ है बिटिया हालात की मारी है शकुन अपने नमन न की शादी कर ले उससे बहुत अच्छे से संभालेंगी तुम्हारा घर नमन को और मुस्कान को भी । अच्छा मौसी बात चलाओ । दिव्या नाम है उसका ठीक है मैं बात करती हूं ।

                मौसी ने बात करी अपनी ननद की बेटी से  फिर उसके भाई भाभी तो उधार खाएं बैठे थे कि कब ये यहां से जाए झट से तैयार हो गए ।अब यहांनमन को तैयार करना था ।

           आज के पिता और मां दोनो बैठकर नमन को समझा रहे थे देखो बेटा किसी एक के चले जाने से दुनिया नहीं रूकती पीछे जो छूट गया उसको भूलने की कोशिश करो और जिंदगी को आगे बढ़ाओ बेटा अच्छी लड़की मिल रही है हां कर दें हम लोग कबतक संभालेंगे मुस्कान भी मां के प्यार से वंचित न कर उसे । क्या गारंटी है मां कि वो मुस्कान को मां का प्यार देंगी , देंगी बेटा तू हां तो कर फिर मौन स्वीकृति दे दी नमन ने।

              मंदिर में शादी करके शकुन दिव्या को घर ले आईं। दिव्या हालात की मारी थी घर आते ही उसने गोद में मुस्कान को उठा कर लाड़ प्यार दिखाया तो मुस्कान भी दिव्या के गले से लग गई। बच्चे तो प्यार के भूखे होते हैं। शकुन के घर में फिर से खुशियों के दीप जल गए ।आज पूरा परिवार दिव्या को पाकर खुशी से फूला नहीं समा रहा था ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

30 अक्टूबर

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!