अफ़सोस – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi

देवी अपने माता-पिता की तीसरी संतान थी उसके दो भाई थे । माता-पिता भाई अत्यधिक लाड़ प्यार के कारण उसे घर से बाहर निकलने नहीं देते थे। जब भी वह कहती थी कि माँ बाहर भाइयों को खेलते हुए देखूँगी तब भी माँ बाहर बैठने नहीं देती थी कहतीं थीं कि लड़कियों को चारदीवारी पार नहीं करनी चाहिए ।

उसके बदले में उसे घर के सारे काम सिखाया । देवी कढ़ाई बुनाई बहुत अच्छे से करती थी ।

जब वह सत्रह साल की हुई तो उसकी शादी सोमेश्वर के साथ हो गई थी । वे अपने तीन भाई बहनों में सबसे छोटे थे ।

सब लोग साथ मिलकर रहते थे । सास गायत्री कड़क मिज़ाज की थी । देवी की दोनों जेठानियों ने अपनी शादी के समय बहुत सारा दहेज लेकर आई थी इसलिए गायत्री उन्हें कुछ नहीं कहती थी ।

देवी को कम दहेज लाने के जुर्म में आए दिन ताने सुनने पड़ते थे । इस कार्य में देवरानियाँ भी उनका साथ देतीं थी । उन्हें मुफ़्त की नौकरानी मिल गई थी ऐसा वे सोचने लगे थे ।

देवी घर का सारा काम बिना चूँ चाँ करे कर लेती थी। देवी माँ बनने वाली है सुनकर गायत्री जी खुश हो गई थी और उसकी देखभाल करने लगी थी परंतु उसके सामने शर्त यह रखी गई थी कि लड़का ही पैदा करना हमारे ख़ानदान में लड़कियों के लिए कोई जगह नहीं है । माता-पिता और परिवार को आगे लड़के ही बढ़ाते हैं लड़कियाँ तो पराई होती हैं ।

देवी के दिल में धकधक होती थी । वह दिन भी आ गया था जब देवी ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया था । गायत्री ने तो उसका मुँह भी नहीं देखा था । वह घर में ही घूमती रहती थी परंतु उसे कोई भी प्यार नहीं करता था ।

बच्ची भी समझने लगी थी कि दादी उसे पास तक आने नहीं देती है । देवी दूसरी बार माँ बनने वाली है यह सुनकर गायत्री ने साफ कह दिया था कि अगर इस बार बेटा नहीं हुआ तो सोमेश्वर की दूसरी शादी करा देगी । होनी को कोई नहीं टाल सकता है और देवी को फिर से लड़की हुई । अब तो देवी का उस घर में रहना दुर्भर हो गया था ।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

अपनी करनी पार उतरनी – डाॅक्टर संजु झा : Moral Stories in Hindi

सास के कारण देवी फिर से माँ बनने वाली थी तो गायत्री ने बेटे से कहा कि अगर इस बार भी इसको बेटा नहीं हुआ तो यह मेरे घर के अंदर कदम नहीं रखेगी और तुम्हारी मैं दूसरी शादी कराकर ही रहूँगी ।

ईश्वर ने भी देवी पर दया नहीं दिखाई और तीसरी बेटी तो हुई पर विकलांग। सोमेश्वर सर पकड़कर बैठ गया और कहने लगा कि देवी इस एक पैर से विकलांग लड़की को देखते ही माँ भड़क जाएगी क्या करेंगे ।

सोमेश्वर डरते हुए अपनी पत्नी और तीनों बच्चों को लेकर गेट तक पहुँचा ही था कि गायत्री ने उन्हें बाहर ही रोकते हुए कहा कि देवी अंदर कदम नहीं रखेगी हाँ तुम अंदर चलो कहते हुए सोमेश्वर को अंदर ले जाने लगी ।

सोमेश्वर ने उनसे अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा कि मेरी पत्नी और बच्चों के प्रति मेरी भी ज़िम्मेदारी है इसलिए जाएँगे तो हम साथ में जाएँगे कहते हुए पत्नी और बच्चों को लेकर चला गया । एक घर किराए पर लेकर वे बच्चों का पालन पोषण करने लगे । ईश्वर को इनकी यह छोटी सी ख़ुशी भी रास नहीं आई और सोमेश्वर की मृत्यु एक हादसे में हो गई थी। देवी पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था । उसे समझ में नहीं आ रहा था कि तीन तीन लड़कियों को लेकर कहाँ जाए । दिल पर पत्थर रख कर वह गायत्री के पास पहुँची तो उसने देवी के मुँह पर दरवाज़ा बंद कर दिया यह कहते हुए कि उसके कारण ही उसका बेटा मर गया है ।

देवी ने कुछ दिन तक घर चलाया अब सामान ख़त्म होने लगे तो उसने आस पड़ोस के लोगों की मदद से लोगों के घरों में खाना बनाने लगी । वह अच्छा खाना बनाती थी तो लोगों को उसके हाथ का खाना पसंद आने लगा ।

उसने अपने बच्चों को खूब पढ़ाने का फ़ैसला कर लिया था क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि माँ के समान वे अनपढ़ रहें ।

वह घर पर भी खाना बनाकर लोगों को डिब्बे भेजने लगी धीरे धीरे उसका काम बहुत अच्छे से चलने लगा । बड़ी बेटी ने बी एड किया और सरकारी स्कूल में नौकरी करने लगी । दूसरी बेटी ने बैंक की परीक्षा पास की और बैंक में नौकरी करने लगी ।

देवी ने दोनों की शादी अच्छे घरों में करा दिया वे अपने परिवार में खुश हैं।

तीसरी बेटी शशि की ही उसे फ़िक्र थी क्योंकि उसका एक पैर छोटा था जिससे वह हल्का सा लँगड़ाते हुए चलती है । वह पढ़ने में बहुत होशियार थी मेडिकल एंट्रेंस में उसने टॉप किया जिसकी वजह से उसे स्कॉलरशिप मिल गई और उसने अपने डॉक्टर की पढ़ाई पूरी कर ली ।

यह सब सोचते हुए देवी को पता ही नहीं चला कि रात के बारह बज गए हैं और शशि अभी तक घर नहीं आई है। उसने दोनों बेटियों को फोन कर दिया था कि शशि अभी तक घर नहीं आई है ।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

मायके में हस्तक्षेप ना करो बिटिया रानी – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

विमला ने कहा भी माँ वह एक डॉक्टर है कोई एमरजेंसी आ गई होगी आ जाएगी आप फ़िकर मत कीजिए ।

देवी ने फोन रखा ही था कि बेल बजी दरवाज़ा खोला तो शशि आ गई थी और पूरी तरह से भीगी हुई थी तब देवी को पता चला कि बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी ।

शशि कपड़े बदलने के लिए जाते हुए कहा कि माँ एक अच्छी सी अदरक वाली चाय बना दीजिए ना फिर आकर बताती हूँ कि देरी क्यों हो गई है ।

देवी उसके लिए चाय बनाकर लाई । शशि चाय पीते हुए बताने लगी थी कि मैं जल्दी ही अस्पताल से बाहर आ गई थी पर रास्ते में एक जगह बहुत भीड़ दिखाई दी तो मैंने ड्राइवर से गाड़ी रोकने के लिए कहा और जाकर देखा तो एक वृद्ध महिला बेहोश पड़ी हुई थी अब एक डॉक्टर होने के नाते उन्हें वैसे ही छोड़ कर नहीं आ सकती हूँ ना इसलिए उन्हें अस्पताल लेकर गई और उनका इलाज किया देखा तो बहुत बारिश हो रही थी उसके रुकने का इंतज़ार करने लगी पर जब बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी तो मैं निकल कर आ गई ।

देवी ने कहा कि आज तेरा जन्मदिन था मैं वृद्धाश्रम गई थी उन सबको मिठाई देने के लिए तुम आती तो और अच्छा लगता था ।

दूसरे दिन शशि अस्पताल से आते ही कहने लगी थी कि माँ कल मैंने एक वृद्ध महिला के बारे में बताया था ना उन्हें उनके बच्चों ने घर से निकाल दिया था वे नर्स से बता रहीं थीं तो मैंने सुना था ।

देवी ने बताया था कि कल जब मैं वृद्धाश्रम में मिठाई बाँटने गई थी तो वे लोग आपस में बातें कर रहे थे कि एक महिला भाग गई है ।

शशि ने बताया था कि इनका नाम गायत्री है और यहीं इसी शहर की हैं । देवी ने कहा कि कल मैं भी उनसे मिलना चाहूँगी । शशि के बताए हुलिये से उसे संदेह हो रहा था । शशि ने सुबह उठकर देखा कि देवी घर का सारा काम ख़त्म करके अस्पताल जाने के लिए तैयार बैठी है ।

माँ की हालत देख शशि को हँसी आती है वह भी तैयार होकर माँ को अस्पताल लेकर जाती है । देवी बड़ी ही तेज कदमों से उस कमरे की तरफ़ जाती है जहाँ वृद्ध महिला थी । उसका संदेह सही निकला वे गायत्री जी उसकी सास ही थी । उन्हें देख कर जब वह पलट कर बाहर निकलने लगी तो गायत्री ने पुकारा देवी मैं जानती हूँ मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया है इसका मुझे अफ़सोस है परंतु जो हो गया उसे वापस तो नहीं ला सकते हैं पर मुझे माफ कर दो ना।

देवी ने कहा कि आपके अफ़सोस ज़ाहिर कर देने से आप माफी के काबिल नहीं हो जाती हैं । इनकी बातों को सुनकर शशि को पता चल गया था कि वह उसकी दादी है ।

गायत्री ने कहा कि मैं सोचती थी कि लड़का ही घर का वारिस होता है बुढ़ापे का सहारा बनता है परंतु मैं गलत थी।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

रूपकुंड झील  – गरिमा जैन

दो साल पहले तुम्हारे जेठ और जिठानियों ने मुझे वृद्धाश्रम में भेज दिया था । उसी समय मुझे लगा था कि मैंने तुम्हारे साथ गलत किया था उसकी ही सजा मुझे मिल रही है । उस दिन मैंने तुम्हें मिठाई बाँटने के लिए आते हुए देख लिया था तुमसे मैं नज़रें नहीं मिला सकती थी इसलिए भाग कर बाहर आ गई थी ।

जिन लड़कियों से मैं नफ़रत करती थी देखो आज उसी ने मेरी जान बचाई है । शशि ने आकर बताया कि आपको डिस्चार्ज किया जा रहा है आप कहाँ जाएँगी फिर से आपको वृद्धाश्रम भेज दें क्या?

उसी समय देवी ने कहा कि नहीं शशि वे हमारे साथ चलेंगी । उन्होंने बहू को घर से भगा दिया गया लेकिन उनकी बेटी अभी ज़िंदा है । शशि भी खुश हो गई और दोनों को ड्राइवर से कहकर घर भिजा दिया था ।

के कामेश्वरी

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!