मायके में हस्तक्षेप ना करो बिटिया रानी – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

प्रतिदिन की तरह फोन पर आरना का पहला सवाल…..

” हैलो मम्मी क्या कर रही हो …??”

 “कुछ नहीं बेटा वो सब्जी बना रही हूं…!”

” तुम क्यों सब्जी बना रही हो…? भाभी कहां गई …..?”

” आज रेनू के कमर में दर्द है इसीलिए वो लेटी है, मैंने सोचा तब तक मैं ही सब्जी बना डालूँ.”

फोन पर बिटिया आरना से बात करते हुए कविता जी ने सब्जी भून ड़ाली और ग्रेवी के लिए पानी डालते हुए आगे कहा “हां अब बोल बेटा …सब्जी में पानी डाल दिया है अब आराम से पकते रहेगा….”

” पर मम्मी भाभी का हमेशा कहीं ना कहीं दर्द होता रहता है. आप इतने उम्र की हैं फिर भी भाभी से ज्यादा ही काम कर लेती हैं. आपकी भी तो हड्डियों में दर्द होता है ना मम्मी. …भाभी किसी अच्छे डॉक्टर से दिखा क्यों नहीं लेती हैं. …रोज-रोज के दर्द से उनको भी आराम और आपको भी काम से छुट्टी मिल जाएगी…..”

        आरना की बातों से साफ झलक रहा था कि उसे मम्मी का काम करना पसंद नहीं था. वह कई बार पहले भी कह चुकी है कि अब आपकी उम्र नहीं है काम धाम करने की…अब तो आराम किया करो मम्मी….. और हर बार कविता जी बड़े प्यार से आरना को समझा देती थी कि बेटा…. काम करने से शरीर को कभी हानि नहीं होती बल्कि स्फूर्ति बनी रहती है. ऐसी न जाने ऐसी कितनी बातों की दुहाई देकर कविता जी आरना को समझा-बुझाकर शांत कर आरना के बातों को विराम लगा देती थी….

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      पर कविता जी ये बात हमेशा सोचने पर मजबूर हो जाती थी क्या आरना यहां मायके के मामले में बातों में ही हस्तक्षेप कर उचित कर रही है ? माना ये उसका भी घर है, मैं उसकी  मां हूं, …..निसंदेह उसे मुझ पर प्यार आता होगा और वो अपनी तरह से मेरी भलाई के लिए ही बोल रही होगी पर क्या उसकी हर बात मानना उचित है..? हर घर की अपनी एक शैली होती है और घर चलाने का अपना-अपना ढंग और नजरिया होता है…… कविता जी का ये  भी मानना था कि बेवजह किसी के भी घरेलू मामले में दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए चाहे वह खुद की बिटिया ही क्यों ना हो….

    और जब आरना जानती है कि मैं हमेशा अपने विवेक बुद्धि से ही काम लेती हूं, हर समय आरना की बातों में आकर फैसले नहीं ले लेती, फिर वह बार-बार मुझे क्यों सिखाती है ….? ऐसा करना चाहिए…. वैसा करना चाहिए….. और फिर रेनू मेरी बहू है… हमारा घर हम दोनों सास- बहू मिलकर ही चला रहे हैं और घर सुचारू रूप से चल भी रहा है…. तो फिर क्या अनावश्यक रोक – टोक उचित है ?

       हालांकि कविता जी ने कभी अपनी बातों से यह जाहिर नहीं होने दिया कि आरना फिजूल की बातों में माथापच्ची कर रही है….. इन बातों को मुझ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है….. मुझे अपने घर के सुख शांति के लिए छोटे-मोटे समझौते करने भी पड़े तो इसमें हर्ज ही क्या है…?

    कविता जी तो बस यही चाहती थी कि ये घर आरना का भी है. उसे यहां भी बोलने का पूरा अधिकार है..पर मायके में भी ऐसी कोई बात नहीं बोलनी चाहिए जिससे आपसी रिश्तो में मनमुटाव हो जाए और इसका असर रिश्तों पर दिखने लगे….

 कविता जी और रेनू… सास बहू भी आपस में बहुत याराना पूर्ण व्यवहार से रहती थी…. आपसी हंसी मजाक बातों में अपनापन…. कहीं ना कहीं कविता जी की व्यवहार कुशलता और अपनापन इस रिश्ते पर काफी मजबूत पकड़ बना ली थी और कहीं ना कहीं रेनू भी भले ही काम में थोड़ी सुस्त जरूर थी पर व्यवहार में कविता जी को भी उसनें कभी शिकायत का मौका नहीं दिया…. इसीलिए सास बहू में काफी अच्छी तालमेल थी…

काफी दिनों से कविता जी के मन में एक बात चुभती थी और इस बात को कविता जी बड़े धैर्य पूर्वक और प्यार से बेटी आरना  को समझाना चाहती थी…. उन्हें लगता था बातों ही बातों में कहीं आरना रेनू को मेरा पक्ष लेकर या अपने ससुराल से तुलना कर कुछ ऐसी बातें ना बोल दे जिससे ननद भाभी (आरना व रेनू) व हम सास बहू के रिश्तो में भी दरार आ जाए …क्योंकि आरना कई बार मजाक में कविता जी को ऐसा बोल चुकी है कि मम्मी भाभी बहुत चालाक हैं, आपकी तारीफ कर कर के आप से काम करवा लेती हैं ….! 

     अब आरना को कौन समझाए कि रेनू चालाक है तो मैं भी बेवकूफ नहीं हूं… घर परिवार चलाने के लिए थोड़ी बहुत बेवकूफी करना भी गलत नहीं होता और ऐसी बेवकूफी जिससे कोई हानि ना हो…

   जैसे ही अगले दिन आरना का फोन आया पहला सवाल “क्या कर रही हो मम्मी …..???”

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व्यंग में आरना ने पूछा- “आज बहू के लिए क्या बनाया है….”

बस जैसे कविता जी इसी प्रश्न के इंतजार में थी… आज उन्होंने सोचा अच्छा मौका है आरना को समझाने का… अतः उन्होंने बात को ना घुमाते हुए स्पष्ट रूप से कहा…

“कैसी बात कर रही है आरना ? यह हमारे घर की व्यवस्था है बेटा… हम दोनों सास बहू आपसी सामंजस्य से मिल बांट कर खाना बनाते हैं और बहुत अच्छे ढंग से घर चल रहा है बेटा ….! और मुझे कुछ भी होता है तो संभालने वाली मेरी बहू रेनू ही तो होती है…. अब बूढी हो गई हूँ ना ……वो तो मैं काम कर कर के इतनी एक्टिव रहती हूं… कि आसानी से बीमार नहीं पड़ती… पर जब भी मेरी तबीयत खराब होती है तो रेनू ही तो मेरी देखभाल करती है और आगे भी कौन है वही तो करेगी…. अतः उससे मिलजुल कर रहने में हर्ज क्या है…..? हम सास बहू एक दूसरे का पूरा ध्यान व ख्याल रखते हैं ….तो तू ये रोज-रोज इस विषय पर बातें ना किया कर बेटा…. इस विषय पर बात करने के लिए मैं और रेनू सक्षम है…. तू फिजूल में टेंशन ना लिया कर और ” मायके में अनावश्यक हस्तक्षेप ना किया कर….

आज कविता जी अपने मन की बातें आरना से बोल कर उसके फिजूल की बातों पर विराम लगाना ही उपयुक्त समझा…

आरना भी अपनी मम्मी के विचारों को भलीभांति समझ चुकी थी… अब वो जान चुकी थी मायका , मायका ही होता है…! अनावश्यक रूप से हर बात पर अपनी राय थोपना उचित नहीं है…. जहां वो एक लंबे समय से रहती ही नहीं है वहां की बारीक वस्तुस्थिति के बारे में अनभिज्ञ है… कई बार घर का सिचुएशन बहुत अलग होता है… और बताने का ढंग बहुत अलग और सुनने वाला अपने ढंग से समझता है इसलिए कही सुनी बातें और यथार्थता काफी अलग होती है….!

    वो तो भला हो मम्मी का जिन्होंने हमेशा मुझ पर एक रेखा खींची है…. सुनती मेरी जरूर है पर अमल हमेशा अपने घर के वातानुकूलित फैसले पर ही करती हैं….

   सॉरी मम्मी ….वाकई मुझे मायके में आपके ऊपर अपने फैसले नहीं थोपने चाहिए और आपका बहुत-बहुत धन्यवाद जो आपने कुछ बिगड़ने से पहले ही मुझे समझा-बुझाकर मेरा मार्गदर्शन किया…जिससे संबंधों में मधुरता बनी रही…! और कुछ रिश्ते टूटने से बच गए…।

यदि काम बिगड़ जाता तो बाद में  “अफसोस” करने से भी क्या फायदा होता…!

सच में साथियों  ,अपने घर के खुद के फैसलों के प्रति किसी के भी विचारों से भ्रमित ना हो …..सुनें सबकी पर करें अपने मन की… घर आपका है और सुचारू रूप से चलाने के लिए फैसले भी आपके ही होने चाहिए…।

( स्वरचित मौलिक और सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )

 

साप्ताहिक विषय : 

  #अफसोस

संध्या त्रिपाठी

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