सच्चे रिश्ते प्यार, सम्मान और समझ पर टिके होते हैं – कुमुद मोहन : Moral Stories in Hindi

  आज नीता की शादी थी। नीता ने जब से अपनी दुल्हन की जोड़ी पहनी थी, तब से उसके चेहरे पर चमक और मुस्कान थी, लेकिन मन में कुछ हल्का सा डर भी था, जो हर दुल्हन के मन में होता है—अपने मायके से विदा होने का, एक नये घर में कदम रखने का।

नीता के पिता जी ने जैसे ही बारात का स्वागत किया, उनकी आँखों में खुशी और गर्व का मिलाजुला भाव था। अपने ससुराल के पहले पलों में नीता की नजरों में भी यही भाव झलक रहे थे। उसकी उम्मीदें अपने भावी पति रमन के प्रति और भी बढ़ गई थीं। उसने शादी के लिए अपनी सारी तैयारियाँ खुशी-खुशी की थीं और मन ही मन अपने नए जीवन का सपना संजोया था।

शादी का समय निकट आया, और सभी की निगाहें मंडप पर टिक गईं। नीता अपनी सहेलियों के साथ मंडप में पहुंची। सब कुछ जैसे एक परी कथा सा महसूस हो रहा था। लेकिन तभी अचानक से सबकी खुशी का माहौल सन्नाटे में बदल गया। नीता के ससुर, सोनपाल जी, ने एक कठोर और खौफनाक आवाज में सभी को चौंका दिया।

“फेरे तभी पड़ेंगे जब हमारे बेटे को मोटरसाइकिल देंगे, वर्ना बारात वापस जाएगी।”

उनकी आवाज में इतनी दृढ़ता और जिद थी कि हर कोई दंग रह गया। यह सुनते ही मंडप में सन्नाटा पसर गया। नीता का दिल तेजी से धड़कने लगा, उसकी आँखों में एक डर और असहायता की झलक थी। उसने अपने पिता की ओर देखा, जैसे कि वह उनसे मदद की गुहार लगा रही हो।

नीता के पिता, जो कि एक सरल और ईमानदार इंसान थे, इस स्थिति में बिलकुल बेबस महसूस कर रहे थे। उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वे दहेज में मोटरसाइकिल दे सकें। उन्होंने अपने हर संभव संसाधन का उपयोग करके शादी की तैयारियां की थीं, ताकि उनकी बेटी को किसी चीज की कमी न हो। लेकिन उन्हें ये उम्मीद नहीं थी कि उनकी बेटी के ससुराल वाले ऐसा मांग रख देंगे। उन्होंने अपनी पगड़ी उतार कर समधी सोनपाल जी के पैरों में रख दी और विनती करने लगे, “भाई साहब, कृपया मेरी इज्जत और बेटी के सम्मान का ख्याल रखिए। हम इतने सक्षम नहीं हैं कि आपकी ये इच्छा पूरी कर सकें। हमारी बेटी को अपनाइए, वो आपके घर की रौनक बढ़ाएगी।”

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परंतु सोनपाल जी अपनी जगह से हिलने को तैयार नहीं थे। वे अब भी अपने बेटे का हाथ पकड़कर मंडप से बाहर जाने की धमकी दे रहे थे। नीता के पिता की आँखों में आँसू थे। उन्होंने फिर से विनती की, परन्तु उनकी विनती सोनपाल जी पर कोई असर नहीं डाल पाई। इसी दौरान, मंडप में बैठे रमन की नजरें लगातार अपनी दुल्हन नीता की ओर जा रही थीं। उसे अपनी दुल्हन की आंखों में वो आंसू देखे नहीं जा रहे थे। नीता ने आस भरी नजरों से रमन को देखा, मानो कह रही हो, “क्या हमारा रिश्ता यूं ही टूट जाएगा?”

रमन कुछ पलों के लिए चुप रहा, लेकिन उसके मन में बहुत सारे ख्याल आने लगे। क्या वह अपने पिता की इस जिद को समर्थन दे सकता है? क्या वह इस नाजुक और पवित्र रिश्ते को एक मोटरसाइकिल के कारण त्याग सकता है? उसके दिल में एक अनोखी बेचैनी उठी।

उसे अपनी जिंदगी का पहला सबक सिखाने का यह मौका अपने पिता को नहीं छोड़ना चाहिए, उसने सोचा। और उसने अपने पिता का हाथ जोर से छुड़ा लिया।

“पापा, रुकिए!” रमन की आवाज में दृढ़ता थी। मंडप में बैठे हर किसी ने उसकी ओर देखा। उसके चेहरे पर एक नई रोशनी और आत्मविश्वास था। रमन ने कहा, “पापा, नीता और उसका परिवार हमें इतना आदर और सम्मान दे रहे हैं। ये लोग हमारे लिए अपनी पगड़ी तक उतार रहे हैं, और हम इनकी मेहनत और इज्जत का सौदा कर रहे हैं। यह हमारा संस्कार नहीं हो सकता।”

“अगर नीता की जगह आपकी बेटी होती, तब भी क्या आप यही मांग रखते? क्या आप चाहते हैं कि मैं अपनी नई जिंदगी की शुरुआत एक लड़की की मजबूरी और उसके परिवार की बेबसी का फायदा उठाकर करूं?” रमन की बात सुनकर सोनपाल जी के चेहरे पर हैरानी और शर्मिंदगी का भाव था। उन्हें खुद नहीं पता था कि उनका बेटा इतनी दृढ़ता से अपने विचार रखेगा।

रमन ने आगे कहा, “पापा, मुझे किसी मोटरसाइकिल की जरूरत नहीं है। मैं खुद अपनी मेहनत से अपनी जिंदगी संवारना चाहता हूं। और भगवान की कृपा से और आपके आशीर्वाद से, मैं अपनी कमाई से आपके लिए कार खरीद दूंगा। लेकिन किसी की इज्जत का सौदा करके नहीं। मुझे किसी को अपमानित करके इस रिश्ता शुरू नहीं करना।”

सोनपाल जी की आंखें झुक गईं। उनके अपने बेटे ने उनकी सोच को बदल दिया था। वे समझ गए कि यह रिश्ता पैसों से बढ़कर है। रिश्तों का आधार केवल समझ और प्यार होता है, न कि स्वार्थी मांगों पर। वे नीता के पिता की ओर मुड़े और कहा, “भाई साहब, माफ कीजिएगा। हमारी तरफ से ये गलती हुई। कृपया अपनी जगह लीजिए और फेरों का मुहूर्त निकला जा रहा है।”

नीता के पिता के चेहरे पर राहत और खुशी के आंसू थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या कहें। उन्होंने सोनपाल जी का हाथ थाम लिया और कहा, “भाई साहब, यह आपकी महानता है कि आपने इस बात को समझा।”

नीता के चेहरे पर भी एक संतोष की मुस्कान थी। उसे विश्वास था कि अब उसकी जिंदगी सही दिशा में जाएगी। उसके सपने, जो थोड़ी देर पहले चकनाचूर होते दिखाई दे रहे थे, अब दोबारा जीवित हो गए थे। वह यह समझ गई कि रमन एक सच्चे साथी हैं, जो उसे इज्जत और बराबरी का दर्जा देंगे।

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रमन ने नीता का हाथ थामा, और दोनों ने सात फेरों में अपने जीवन को एक-दूसरे के साथ जोड़ने का संकल्प लिया। इस शादी में उन्होंने न केवल एक-दूसरे का, बल्कि अपने परिवारों का भी मान रखा। यह शादी सिर्फ दो लोगों का नहीं, बल्कि दो परिवारों का मिलन था, जो बिना किसी शर्त और स्वार्थ के हो रहा था।

शादी संपन्न होने के बाद रमन के इस साहसिक कदम की चर्चा पूरे गांव में होने लगी। लोग उसकी ईमानदारी और सोच की प्रशंसा करने लगे। रमन ने इस शादी के माध्यम से समाज को एक नई सीख दी कि दहेज लेना और देना दोनों ही गलत है और यह परंपरा तभी खत्म होगी जब युवा पीढ़ी खुद इसके खिलाफ खड़ी होगी।

इस घटना ने न केवल रमन के परिवार में, बल्कि पूरे समाज में एक सकारात्मक बदलाव की शुरुआत कर दी। लोगों ने यह समझा कि सच्चे रिश्ते प्यार, सम्मान और समझ पर टिके होते हैं, न कि किसी चीज के लेन-देन पर। और नीता और रमन ने अपने रिश्ते की नींव ऐसी सच्चाई और ईमानदारी पर रखी, जो हर इंसान के लिए एक मिसाल बन गई।

मौलिक रचना 

कुमुद मोहन

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