शादी के लगभग डेढ़ साल बाद, सुमन जी की बहू, दिव्या, अपने मायके से लगातार फोन पर बात करती रहती थी। दिन में कई बार उसकी मायके से बातचीत होती। फोन कॉल्स के दौरान वह अपनी मां और घर के अन्य सदस्यों से अपने ससुराल के हर पहलू के बारे में बताती, जैसे ससुराल का खाना, बर्तन, पर्दों के डिजाइंस, पेंट का रंग और घर का आर्किटेक्चर। उसे ससुराल का माहौल मायके से बहुत अलग लगता था और कई बार वह शिकायत भी करती कि ससुराल में सब कुछ “डिफरेंट” और “डिफेक्टिव” है।
दिव्या की बातें अक्सर सुमन जी के कानों तक पहुँच जातीं और ये बातें उन्हें आहत कर देतीं। सुमन जी को अपने परिवार और घर पर बहुत गर्व था। उनके लिए उनका घर केवल ईंटों और दीवारों का ढांचा नहीं था, बल्कि उनके जीवन की धरोहर था। उनके पूरे जीवन का मान-सम्मान इसी घर से जुड़ा हुआ था। दिव्या के नित नए-नए मायके से जुड़े ताने और तुलना सुनकर सुमन जी का दिल भारी हो जाता था। उन्होंने अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा इसी घर को संवारने और अपने परिवार को एक साथ बांधे रखने में लगा दिया था।
एक दिन, सुमन जी ने निर्णय किया कि वे अब अपनी बहू को समझाएंगी। दिव्या उस समय फोन पर मायके से बात कर रही थी और बात करते-करते उसने अपनी मां से कहा कि ससुराल में उसे अपने मायके जैसा कुछ भी नहीं मिलता। बर्तन, पर्दों के डिजाइंस, पेंटिंग्स, आर्किटेक्चर, सब कुछ बहुत अलग और “उबाऊ” है। उसकी आवाज में मायके के प्रति प्रेम और ससुराल के प्रति असंतोष साफ झलक रहा था। सुमन जी ने धीरे से उसे इशारा किया कि वह फोन रख दे। दिव्या ने फोन रखा, और सुमन जी ने उसे अपने पास बुलाया।
सुमन जी ने प्यार भरे शब्दों में कहा, “बेटा, मैं तुम्हारी शिकायतें और तुलना सुन रही हूँ, और मुझे यह कहने में जरा भी बुरा नहीं लगेगा कि मुझे दुख भी होता है।”
दिव्या थोड़ी हैरान थी, वह कुछ बोलने की कोशिश करने लगी, लेकिन सुमन जी ने उसे बोलने से रोका और अपना बात जारी रखी, “बेटा, मैं जानती हूँ कि ससुराल एक लड़की के लिए एक नया स्थान होता है, और उसमें ढलने में समय लगता है। लेकिन एक बात समझना बहुत ज़रूरी है—जब एक लड़की की बिदाई होती है, तो उसे केवल शारीरिक रूप से नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी अपने मायके को पीछे छोड़ना होता है। हम सभी के लिए बदलाव मुश्किल होता है, लेकिन यह एक अटल सत्य है।”
इस कहानी को भी पढ़ें:
दिव्या ध्यान से सुन रही थी। उसे अहसास हो रहा था कि उसकी रोजाना की शिकायतें सास को कितनी दुखी कर रही थीं। सुमन जी ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए आगे कहा, “जब मेरी बेटी की शादी हुई, तब मैंने उसे विदा करते समय एक बात कही थी, जो मैं आज तुम्हें भी बताना चाहती हूँ। मैंने उससे कहा,
‘यादों को अपने साथ रखना, पर अपने मायके के घर को मत ले जाना। क्योंकि जब तुम अपने नए घर में मन से नहीं बसोगी, तो तुम्हारी जड़ें वहीं मायके में रह जाएंगी। तुम हमेशा उस घर की तरफ खींची चली जाओगी और ससुराल तुम्हें कभी अपना नहीं लगेगा।’ मैं जानती हूँ यह मुश्किल है, पर यही तुम्हारा वास्तविक घर है अब।”
दिव्या के मन में उलझन थी। वह सुमन जी के शब्दों का मर्म समझने की कोशिश कर रही थी। उसने अपनी सास से पूछा, “मांजी, मैं कैसे अपने मायके से अलग हो सकती हूँ? वहां की हर चीज़ से मेरी भावनाएं जुड़ी हुई हैं। क्या यह गलत है कि मैं वहां की बातों को याद करूँ?”
सुमन जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “नहीं बेटा, यह बिल्कुल गलत नहीं है कि तुम अपने मायके की यादें सहेज कर रखो। पर यह बहुत ज़रूरी है कि तुम उसे अपने ससुराल की खुशियों के बीच में बाधा न बनने दो। तुम्हारे मन में जो प्यार और सम्मान अपने मायके के प्रति है, वही अब तुम्हें अपने ससुराल के प्रति भी महसूस करना होगा।
मायके की यादें साथ रखना अच्छी बात है, लेकिन उस घर को अपने नए जीवन में जबरदस्ती लाने की कोशिश करना ठीक नहीं। यह तुम्हारा नया घर है, इसे अपनाओ और इसे भी अपने दिल में उतना ही प्यार और आदर दो जितना तुमने अपने मायके को दिया है।”
सुमन जी के ये शब्द दिव्या के मन को गहराई से छू गए। उसने महसूस किया कि उसके मायके और ससुराल में अंतर केवल चीजों में ही नहीं, बल्कि भावनाओं में भी था। उसने सोचा कि वह क्यों अपने नए घर की तुलना हर समय मायके से कर रही है। सासू माँ के प्यार और अपनेपन की झलक ने उसके दिल को गहरे से झकझोर दिया। दिव्या ने निश्चय किया कि अब वह अपने ससुराल को पूरी तरह से अपनाएगी और उसकी अच्छाइयों को समझने की कोशिश करेगी।
दिव्या ने सुमन जी के प्रति आभार व्यक्त किया और कहा, “मां जी, आपने आज मुझे एक बहुत बड़ी सीख दी है। अब मैं अपने ससुराल को दिल से अपना बनाऊंगी और इस घर की खुशियों में शामिल होऊंगी।”
इसके बाद से, दिव्या ने अपनी सोच में बदलाव लाना शुरू कर दिया। उसने अपने ससुराल के लोगों के साथ और घुलना-मिलना शुरू कर दिया और हर चीज में अपना योगदान देने की कोशिश की। उसने जाना कि हर घर की अपनी एक खासियत होती है और हर रिश्ते की अपनी अहमियत। अब वह अपने मायके की तुलना किए बिना अपने ससुराल की विशेषताओं को देखने और सराहने लगी। धीरे-धीरे सुमन जी भी खुश रहने लगीं और उनका बहू के प्रति आदर और प्रेम और भी गहरा हो गया।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि शादी के बाद एक लड़की को ससुराल के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए और उस घर को पूरी तरह से अपनाना चाहिए। मायके को कभी न भूलें, लेकिन ससुराल की खुशियों में खुद को पूरी तरह से शामिल करना ही उसके नए जीवन का सच्चा सुख है।
मौलिक रचना
निरंजन धुलेकर