रंजन अपने ऑफिस से थका-हारा घर पहुंचा। उसकी आँखों में हल्का सा गुस्सा और निराशा झलक रही थी। वह सीधे अपने कमरे में गया और खुद को बिस्तर पर फेंक दिया। उसकी माँ, विमला देवी, जो रंजन के चेहरे के हर भाव को समझने में माहिर थीं, तुरंत समझ गईं कि कुछ बात है जो उसे परेशान कर रही है। वह धीरे से उसके कमरे में आईं और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा।
“क्या बात है, रंजन? आज कुछ परेशान लग रहे हो,” माँ ने स्नेह से पूछा।
रंजन ने कुछ देर तक चुप रहकर माँ की बात को अनसुना करने की कोशिश की, लेकिन उसके भीतर का गुस्सा और निराशा उसे चुप रहने नहीं दे रही थी। वह गहरी सांस लेते हुए बोला, “माँ, मैं निशा से तलाक लेना चाहता हूँ।”
माँ यह सुनकर चौंक गईं। उन्होंने सोचा भी नहीं था कि रंजन इतनी गंभीर बात कह देगा। वह समझ नहीं पा रही थीं कि ऐसा क्या हुआ जो उनके बेटे ने इतना बड़ा फैसला लिया। उन्होंने शांत स्वर में पूछा, “क्यों भला?”
रंजन की आवाज में गुस्सा साफ झलक रहा था। वह बोला, “क्योंकि वह कहीं भी लेकर जाता हूँ तो अपना गंवारपना दिखा ही देती है। मेरे दोस्तों की पत्नियों की तरह पार्टी में बर्ताव नहीं करती। मुझे उसके कारण लज्जित होना पड़ता है।”
माँ ने उसकी बातें ध्यान से सुनीं और थोड़ी देर तक सोचने के बाद बोलीं, “बेटा, जिसे तुम उसका गंवारपना कहते हो, वह असल में उसके संस्कार हैं। उसके इसी गुण के कारण मैंने उसे तुम्हारे लिए पसंद किया है। उसमें कई ऐसे गुण हैं जो तुम्हें शायद अभी दिखाई नहीं दे रहे हैं, लेकिन जो उसे एक बेहतरीन इंसान बनाते हैं। तुम्हें समझना होगा कि रिश्तों में हमेशा दोनों पक्षों को कुछ समझौते करने पड़ते हैं। अगर तुम हर चीज में केवल अपने अनुकूलता ढूंढोगे, तो कभी खुश नहीं रह पाओगे।”
इस कहानी को भी पढ़ें:
रंजन माँ की बातें सुनकर थोड़ी देर चुप रहा। उसे लगा कि माँ शायद उसे समझ नहीं पा रही हैं। उसने कहा, “लेकिन माँ, मेरी दोस्त की पत्नियाँ कितनी आधुनिक हैं, कितनी स्मार्ट लगती हैं, और हर बात में उनका साथ देती हैं। वो लोग अपने पतियों के साथ हर जगह जाती हैं, पार्टी में एकदम स्टाइलिश दिखती हैं। निशा तो उनके सामने एकदम साधारण लगती है। मुझे उसके साथ पार्टियों में ले जाने में शर्मिंदगी होती है।”
माँ ने उसकी बात को गंभीरता से लिया और उसकी तरफ देखकर मुस्कुराईं। उन्होंने कहा, “रंजन, तुम्हें निशा का साधारण होना पसंद नहीं आता, लेकिन क्या तुमने कभी सोचा है कि वह कितनी सरल और सच्ची है? तुम्हारी आधुनिक और स्टाइलिश दोस्त की पत्नियाँ केवल बाहरी दिखावे में ध्यान देती हैं। क्या उनके अंदर वह प्यार, ईमानदारी और त्याग है जो निशा के अंदर है? निशा के संस्कार ही उसे खास बनाते हैं। इसी में तो उसका सच्चा रूप है।”
रंजन थोड़ा असहज हुआ। उसे यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि माँ उसकी समस्या को किस तरह से हल करना चाहती हैं। उसने गहरी सांस लेते हुए कहा, “माँ, मैं यह नहीं कह रहा कि निशा के संस्कार बुरे हैं। लेकिन मुझे भी समाज में अपनी पहचान बनानी है, दोस्तों के बीच सम्मान चाहिए। सब अपने परिवार को साथ लेकर चलते हैं और मैं निशा को लेकर नहीं जा सकता।”
माँ ने उसकी इस बात को ध्यान से सुना। उन्होंने धीरे से कहा, “रंजन, तुमने कभी सोचा है कि तुम निशा को अपने साथ क्यों नहीं ले जाना चाहते? क्योंकि वह तुम्हारी सोची-समझी छवि में फिट नहीं होती। तुम जो दूसरों की पत्नियों में देखते हो, वो केवल बाहरी दिखावा है। रिश्ते केवल बाहरी चीजों पर आधारित नहीं होते; वे तो समझ, त्याग और समर्पण से बनते हैं।”
फिर माँ ने एक कहानी सुनाई, “बचपन में तुम्हें याद है जब तुमने एक बार स्कूल में अपने दोस्तों को इम्प्रेस करने के लिए मुझे माँ कहने की बजाय ‘आंटी’ कहा था? तब भी तुमने सोचा था कि मैं तुम्हारे दोस्तों के सामने शर्म का कारण बन सकती हूँ। लेकिन मैं तुम्हारी माँ हूँ, मेरा प्यार और त्याग दिखावे के लिए नहीं, बल्कि तुम्हारे लिए है।”
रंजन ने माँ की बात पर सोचते हुए कहा, “हाँ माँ, मुझे वह याद है। लेकिन अब बात अलग है। मेरे दोस्तों की पत्नियाँ कितनी आत्मनिर्भर और स्टाइलिश हैं, उनके पास सब कुछ है।”
माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, जो दिखता है, वह जरूरी नहीं कि असल हो। अपने दोस्तों के साथ दिखावा करना तुम्हें खुशी दे सकता है, लेकिन क्या वह वास्तविक खुशी होगी? निशा ने तुम्हारे लिए कितने त्याग किए हैं, क्या तुम उसे समझते हो?”
रंजन की आँखों में थोड़ी झिझक थी। वह धीरे से बोला, “माँ, निशा अच्छी है, लेकिन मुझे समाज के सामने शर्मिंदगी महसूस होती है।”
इस कहानी को भी पढ़ें:
माँ ने फिर उसे समझाने का प्रयास किया, “बेटा, रिश्ते का मतलब है एक-दूसरे को समझना, एक-दूसरे के साथ चलना। हर इंसान में खामियाँ होती हैं, लेकिन प्यार और त्याग से रिश्ते मजबूत होते हैं। तुम्हें समझना होगा कि निशा तुम्हारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है।”
माँ की ये बातें रंजन के दिल को छू गईं। उसे अहसास हुआ कि वह बाहरी दिखावे के चक्कर में निशा के सच्चे और ईमानदार प्यार को नजरअंदाज कर रहा है। उसे समझ आया कि माँ की बातों में सच्चाई है और उसे अपने साथी के साथ समझौता करना सीखना चाहिए।
वह गहरी सोच में डूब गया। उसने महसूस किया कि निशा का सच्चा प्यार और उसके संस्कार उसकी सबसे बड़ी संपत्ति हैं। उसे अपनी माँ की बातों का महत्व समझ में आने लगा। रंजन ने माँ की ओर देखा और गंभीरता से कहा, “माँ, तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो। रिश्तों को निभाने के लिए सामंजस्य और समझौता करना ही सबसे सही तरीका है।”
माँ ने उसे गर्व से देखा और अपने बेटे के चेहरे पर खुशी की झलक देख कर मुस्कुराईं। रंजन ने उसी वक्त मन में यह संकल्प किया कि वह अपने रिश्ते को पूरी ईमानदारी और प्यार से निभाएगा और किसी बाहरी दिखावे में बहकर अपने साथी को चोट नहीं पहुँचाएगा। उसने निशा के साथ अपने रिश्ते को और मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाने का निश्चय किया।
रंजन को अपनी गलती का अहसास हो चुका था, और उसने ठान लिया कि वह अब अपने रिश्ते में बदलाव लाकर इसे बेहतर बनाएगा। वह समझ चुका था कि सच्चे रिश्ते केवल बाहरी चमक-धमक से नहीं बल्कि दिल की गहराइयों से बनते हैं, और इस अहसास ने उसके जीवन को नई दिशा दी।
मौलिक रचना
सुभद्रा प्रसाद