जब से ससुर जी रिटायर हुए थे घर गृहस्थी का बोझ अलका और सुरेश पर ही आ चुका था।
आम मध्यमवर्गीय परिवार में मुश्किल से चार जनों का खर्चा अलका और सुरेश दोनों की कमाई से चल पाता था, वहां बाबूजी और अम्मा दोनों की दवाइयां, राशन, पानी, दूध, फल सब्जी सभी का खर्चा जुड़ गया था।
उस पर आने जाने वालों का तांता। जब बूढ़े बुजुर्ग साथ हो तो मिलने वाले बहाने बाजी के साथ प्रकट हो जाते थे और हफ्ता दस दिन पूरा कर ही जाते थे।
इन सब में अलका और सुरेश दोनों की हालत बहुत ही ज्यादा खराब हो गई थी।आमदनी अठन्नी खर्चा रूपैया वाली स्थिति होती जा रही थी।
और अब अलका की बड़ी बेटी दामिनी ने मेडिकल का एंट्रेंस निकाल लिया था।हर साल लाख रुपए की फीस जरूरी थी।
छोटी बिटिया के स्कूल की फीस तो थे ही।अगले दो सालों में वह भी बारहवीं निकाल लेगी, उसके लिए भी रूपयों का उपाय करना जरुरी था।
अलका का पति सुरेश एक फैक्ट्री में काम करता था। एक आम फैक्ट्री वर्कर की तरह बहुत ही साधारण सैलरी वह उठाता था.
अलका एक स्कूल टीचर थी। उसे भी बहुत ज्यादा तनख्वाह नहीं मिलती थी।फिर भी दोनों मिलकर एक काम चलाऊ कमा लेते थे।
अलका अपने सास ससुर की बहुत ही ज्यादा इज्जत करती थी।उसकी सास मोनिका देवी सगी मां की से भी बढ़कर थी। बिल्कुल एक मां की तरह अलका को प्यार करती थी,इसलिए अलका भी अपनी सास और ससुर का दोनों का बहुत ज्यादा सम्मान करती थी.
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” अगले महीने दीपावली है. दामिनी के फीस का भी इंतजाम करना है। उस पर त्योहारों का खर्चा …!मैं यह सोच रही थी कि अगर पैसे हाथ में आ जाते तो बाबूजी के लिए एक अच्छा सा जैकेट खरीद लेती और अम्मा के लिए एक गरम शॉल… मगर खर्चा तो मुंह बाए खड़ा रहता है… कहां से होगा ?”
अलका बुदबुदाई. उसे बुदबुदाते हुए देखकर उसके पति सुरेश ने कहा
“जैसे चल रहा है वैसे ही चलने दो। हमारे पास कोई अलग से पैसे तो है नहीं।अभी दामिनी के इस सेमेस्टर की फीस भरनी है।”
“हां वह तो है!, अलका ने ठंडी सांस ली कल को बिटिया डॉक्टर बन गई तो हमारे संकट का निवारण हो जाएगा”
“हा हा, सुरेश अलका की बात पर जोर जोर से हँसने लगा।
उसने कहा
“जब दामिनी मेडिकल पूरी कर लेगी तब उसकी ब्याह की चिंता होने लगेगी फिर दहेज की जुगाड़ करनी होगी… कैसे होगा मुझे तो कोई आशा की किरण भी नजर नहीं आती!”
“क्या करूं बाबूजी की पेंशन भी नहीं !एक पैसे की ज्यादा कमाई नहीं होती है!”
“कोई बात नहीं! चिंता मत करो ईश्वर है ना और अगले महीने हमारे त्यौहार हैं।जी भरकर अच्छे से पूजा करना। माता लक्ष्मी जरूर हमारी मदद करेंगी।” सुरेश ने बड़ी श्रद्धा से कहा।
” अगले महीने दीपावली है। बच्चों को नए कपड़े चाहिए। मैं यह चाह रही थी कि पैसे बचा कर बाबूजी के लिए एक अच्छा ऊनी जैकेट खरीद लूं और अम्मा के लिए ऊनी शॉल।”
” चलो देखो, भगवती तुम्हारी इच्छा जरुर पूरी करेंगी.”
कुछ दिन बीते दीपावली में अभी एक ही हफ्ता बचा था। अलका स्कूल में ही थी।
उसके स्कूल के प्रिंसिपल ने प्यून से अलका को बुलवा भेजा।
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जब प्यून ने जाकर अलका से कहा “आपको प्रिंसिपल सर बुला रहे हैं!” तो अलका के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई।
” ऐसा तो नहीं किसी ने मेरी शिकायत कर दी हो? क्या बात है, आज तक तो प्रिंसिपल सर ने बुलाया नहीं फिर ऐसी क्या बात हो गई?”
वह डरते हुए प्यून से कहा
“तुम चलो मैं आती हूं.”
स्टाफ रूम से उठकर उसे प्रिंसिपल केबिन में जाते हुए उसके पैर पहाड़ों से भी भारी हो रहे थे।वह धीरे-धीरे चलकर पहुंची और उसने दरवाजा नौक कर कहा
“मे आई कम इन सर!” प्रिंसिपल सर मुस्कुराते हुए उसका इंतजार कर रहे थे।
“यस,प्लीज मैम!”प्रिंसिपल सर ने उसे अंदर बुलाकर कुर्सी में बैठने का इशारा करते हुए कहा।
उन्हें खुश देखकर अलका के जान में जान आई।
“प्लीज मैम हैव सीट!” प्रिंसिपल सर ने उसे कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए कहा।
“जी धन्यवाद!, संकोच में गड़कर अलका ने धन्यवाद देते हुए प्रिंसिपल सर से कहा आपने मुझे बुलाया था सर?”
” जी , मैंने आपको बुलाया था। दरअसल आपको एक खुशखबरी देनी थी दीपावली भी आ रही है आपके लिए एक सरप्राइज गिफ्ट है हमारे लिए!”
” सरप्राइज गिफ्ट! यह कैसा गिफ्ट है सर ?”
अलका आश्चर्यचकित होकर बोली।
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“यह लेटर पढ़िए.” प्रिंसिपल सर ने एक लिफाफा निकालकर अलका की तरफ बढ़ाते हुए कहा।
अलका फटाफट उसे खोलकर पढ़ने लगी।
“अरे यह तो मेरे प्रमोशन का लेटर है. मुझे सीनियर टीचर बना दिया गया है!” अलका खुशी से हंसते हुए बोली
“मैम,आपका काम बहुत ही अच्छा है। स्कूल प्रशासन को आपका काम बहुत ज्यादा पसंद आया है।
आपके पढ़ाने का ढंग और टीम मैनेजमेंट हम लोगों को बहुत पसंद आई इसलिए आपको हम स्कूल मैनेजमेंट का इसका भी हिस्सा बना रहे हैं,इसलिए आपकी सैलरी भी अब दुगनी हो जाएगी।”
“अरे वाह !, सर फिर तो मेरी सारी प्रॉब्लम ही खत्म हो गई?”
“कैसी प्रॉब्लम ?”प्रिंसिपल सर ने आश्चर्य से पूछा.
अलका संकोच में गड़ गई। उसने कहा “वही सर, मिडिल क्लास फैमिली का प्रॉब्लम। घर में सास ससुर और दो बच्चियाँ। सभी का खर्चा। एक आम सैलरी से नहीं हो पा रहा था।बड़ी मुश्किल से घर चल रहा था।
आपने मेरी तनख्वाह बढ़कर मुझ पर बड़ा उपकार किया है। मैं जिंदगी भर आपकी आभारी रहूंगी।”
” नो नो जो मिसेज वर्मा!, मैंने आपके ऊपर कोई उपकार नहीं किया। प्रिंसिपल सर मुस्कुराते हुए बोले, आप जैसी लेडिज डिजर्व करती हैं इस कामयाबी की। बहुत-बहुत बधाई हो!
आपने यह पद हासिल किया है अपनी अच्छाई की वजह से।
अपने अच्छे लीडरशिप की वजह से।”
“सर थैंक यू वेरी मच! हैप्पी दीपावली!”अलका मुस्कुराते हुए बोली।
“थैंक यू, थैंक यू सो मच!यू मोस्ट वेलकम. हैप्पी दिवाली!”
प्रिंसिपल सर मुस्कुराने लगे।
अलका प्रिंसिपल सर को धन्यवाद देकर खुशी-खुशी वहां से निकल आई।
अब वह निश्चिंत हो गई थी। खुशियों भरे दीप जल उठे थे।
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*प्रेषिका–सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
# खुशियों के दीप
पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित रचना
बेटियां साप्ताहिक विषय #खुशियों के दीप के लिए।