“मां मुझे भी दीपावली मनानी है” – मनीषा सिंह : Moral Stories in Hindi

दीपावली आने में अभी 4 दिन शेष थे और इसकी तैयारी चारों तरफ जोर-शोर से चल रही थी । कहीं किसी के घर की रंगाई तो किसी के घर मिठाइयां बन रही थी— किसी की सफाई बची थी तो वह धनतेरस के दिन तक सारी सफाई को खत्म कर देना चाहते थे ताकि धनतेरस के दिन नई-नई चीजें घर ला सके और घर को सजा सके– कोई कपड़े तथा पटाखे खरीदने की लिस्ट बना रहे थें– । कईयों ने तो पटाखा छोड़ना भी शुरू कर दिया था ।” दिया ले— लो दिया”—-ये आवाजें अब हर दो-तीन घंटे के अंतराल में सुनाई देने लगी  ।

बच्चियां छोटे-छोटे घर बनाकर उसे सजाने में लगी थी–। कुल मिलाकर सारा शहर तथा बाजार “दीपावलीमय”  हो चुका था ।

इसी शहर के एक कॉलोनी में एक घर ऐसा भी था जहां पिछले पांच सालों से दीपावली का त्यौहार नहीं मनाया गया ।

 जी– हां–  हम बात कर रहे हैं “ज्योत्सना— की जो एक स्कूल की शिक्षिका और एक प्यारी सी 10 साल की बेटी रूही की मां की—।

 “मां “कई साल से हमने दिवाली नहीं मनाई–!” मुझे भी दीपावली मनानी है” ।

 देखिए ना– सभी लोग अपने-अपने घरों में दीपावली की तैयारी कर रहे हैं पर आप अभी से ही अपने आप को कमरे में बंद कर लेती हो– ! दस साल की अबोध बालिका अपने अंदर आए त्यौहार की उमंगों को रोक न सकी और शिकायती लफ्जों में मां ज्योत्सना से सवाल कर बैठी।

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“बेटी तुम्हें तो पता ही है फिर ये सवाल क्यों—-? रूही बुझे मन से अपने होमवर्क बनाने में लग गई । ज्योत्सना 5 साल पहले वाली घटना में खो गई । “अमरदीप और ज्योत्सना” की लव मैरिज शादी थी । अमरदीप एक सोशल वर्कर था और ज्योत्सना स्कूल टीचर । किसी स्कूल इवेंट में अमरदीप गेस्ट बनकर आया और इसी समय दोनों में जान-पहचान बढी– फिर दोस्ती और दोस्ती प्यार मैं तब्दील हो गई ।  दोनों एक दूसरे से शादी करना चाहते थे परंतु अमरदीप के पिताजी MLA थे और इस वजह से ज्योत्सना के पापा इतनी हाई-फाई फैमिली में बेटी की शादी करने से कतरा रहे थे–  उन्होंने साफ इन्कार कर दिया– । इनका प्यार इतना मजबूत था कि  दोनों ने चुपके शादी कर ली—और दूसरे शहर में हंसी खुशी से रहने लगे इसी बीच ज्योत्सना ने एक प्यारी सी “बच्ची, रूही” को जन्म दिया– ।

 ‘अमरदीप को जैसे दुनिया की हर खुशी मिल गई।

“पापा मुझे भी फुलझड़ी चाहिए–!

  बाहर बच्चों को पटाखा छोड़ देखते हुए 5 साल की रूही अपने पिता से बोली ।

 इतनी प्यारी और तोतली आवाज सुनकर अमरदीप खुश हो गए और झट से रूही को गोद उठाते हुए बोले “हां बेटा–!’ मैं आपके लिए फुलझड़ी जरूर लाऊंगा’ और फिर हम मिलकर फुलझड़ी जलाएंगे ।

 ” ज्योत्सना आता हूं–!

 कहां जा रहे हो—?

 पटाखे लाने बेटी का आर्डर है–! बाइक स्टार्ट करते हुए अमरदीप बोला ।

” जल्दी आ जाना” शाम की पूजा” की तैयारियां करनी है–!

 हां अभी आया–!

 शाम के 6:00 बज गए पर अमरदीप का कोई अता- पता नहीं था लगता है लग गए होंगे किसी समाज सेवा में रिंग जा रही है परंतु फोन नहीं उठा रहे– मन में सोचते हुए ज्योत्सना अमरदीप का इंतजार करने लगी  थी कि  तभी उसकी मोबाइल बज उठी।  नंबर अनसेव्ड थी–” क्या आप मिसेज अमरदीप है “

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हां जी बोलिए– आशंकित मन से ज्योत्सना बोल पड़ी ।

 अमरदीप का रोड एक्सीडेंट हो गया है आप फौरन अस्पताल पहुंच जाएं– अस्पताल का एड्रेस ले जब वहां पहुंची– तब तक काफी लेट हो चुकी थी अमरदीप जा चुका था– ।

 उसे दिन के बाद से ज्योत्स्ना के लिए दिवाली का दीप हमेशा के लिए बुझ गया था । 

“मां चलिए ना बाहर चलते हैं– ! ध्यान तोड़ते हुए रूही बोली।

“कितनी शोरगुल हो रखी है– मेरा मूड नहीं है जाकर सो जाओ–  ।

” ये क्या कर रही हूं मैं” दीपावली ना सही लेकिन रूही को मिठाई और कपड़े तो दिला सकती हूं वह बेचारी बच्ची है  उसको यह सजा क्यों—? कल ही  जाकर उसकी पसंद की मिठाई और कपड़े ले लूंगी ।

“मेम साहब कुछ “कैंडल और दीप” है इसे खरीद लीजिए–!

 रेड लाइट पे गाड़ी रोकी तो एक 12 साल का बच्चा हाथों में दीप से भारी डाली और कैंडल लिए, पसीने से लथपथ , शर्ट के बाजू में अपना मुंह पोछता हुआ बोला । ज्योत्सना ने  एक बार तो नजर- अंदाज किया परंतु बार-बार उसके बोलने से रूही, मां की खामोशी को अपनी आवाज देते हुए बोली–” हमें नहीं चाहिए” बच्चा आगे किसी और ग्राहक को पूछने चला गया  ।

ग्रीन लाइट होते ही जैसे ही वह आगे बढ़ी ही थी कि उसे ज़ोर की किसी के ब्रेक लगने की आवाज सुनाई पड़ी– गाड़ी रोक पीछे मुड़कर देखी तो, वहां भीड़ इकट्ठे हो रखे थे।

रूही चलो देखते हैं क्या हुआ है– जब दोनों वहां पहुंची तो हैरान थी यह तो वही बच्चा है मां पहचानते हुए रूही बोली ।

 ” धूप और भूख-प्यास “की वजह से बेहोश हो गया था और जिसकी वजह से सर में तथा हाथ पैर पर चोटें आई ।

अबतक भीड़ भी छट चुकी थीं पर किसी ने भी बच्चे की प्राथमिक उपचार के लिए नहीं सोचा ।

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” मां– इसे हम हॉस्पिटल लेकर चलते हैं  !

 हां– चलो चलते हैं–!

“डॉक्टर बच्चा ठीक है है ना– घबराने की बात तो नहीं—?

 “ही इज फाइन”  बस छोटी-मोटी जख्म थी मलहम-पट्टी हो चुकी है अब इसे आप ले जा सकती हैं । 

” बैठो बेटा गाड़ी में–  तुम्हारा नाम क्या है–? और अपना एड्रेस भी मुझे बताओ ताकि मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ सकूं–!

 ” थैंक यू मैडम “मेरा नाम रामू है–!

 रामू के घर के बाहर छोड़ जब ज्योत्सना जाने लगी–” मैडम जी आप इतनी दूर मुझे छोड़ने आई है तो घर के अंदर भी चलो ना ताकि मैं मां को दिखा सकूं कि आपने मेरी कितनी मदद की–  !

“नहीं बेटा मुझे देर हो जाएगी” पर रामू की बार-बार जिद की वजह से दोनों ही अंदर आए

 तो  देखा दो साल की बच्ची बुखार से तप रही थी और उसकी मां बच्ची के सर पर पट्टी डाल रही  थी ।  तेरे सर पर चोट कैसी लगी–? और ये मैडम जी कौन है–? रामू ने सारी बात बताई रामू की मां ने रामू को गले से लगा लिया एक तेरी बहन कई दिनों से बीमार पड़ी है और आज तू भी– “है भगवान” अगर यह मैडम जी ना होती तो मेरे बेटे का क्या होता–?

 बच्ची की हालत खराब देखकर ज्योत्सना ने  तुरंत उसे अस्पताल ले जाने का फैसला किया ।

 इसे निमोनिया हो गया है पर घबराने की बात नहीं–आपने समय रहते ही इसे दिखा दिया ! बच्ची 2 दिन अस्पताल में रही बच्ची के इलाज का सारा खर्च ज्योत्सना ने किया– ।

” धन्यवाद मैडम जी आपका यह एहसान मैं जिंदगी भर नहीं भूलूंगा तभी रामू के पिता भी वहां आ गए जो कमाने के लिए दूसरे शहर गए थे।  इस दीपावली आप लोगों ने हमारे घर में “खुशियों का दीप” जला दिया यह एहसान हम जिंदगी भर नहीं भूल पाएंगे  ।

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आज दीपावली है आप सब भी घर जाइए और दिवाली मनाईए–! कुछ कपड़े और मिठाइयां देते हुए ज्योत्सना बोली।

” धन्यवाद मैडम जी”सभी को उनके घर छोड़ते हुए जब ज्योत्सना लौट रही थी तो उसे आज सालों बाद खुशी महसूस हुई। क्योंकि उसने किसी के घर “खुशियों का दीप “जलाया  । आज मन ही मन एक संकल्प लिया कि वह हर दीपावली किसी जरूरतमंद की मदद करेगी ताकि उसकी दीपावली अच्छी हो। 

रूही आप कौन-कौन सी पटाखे और किस कलर की लड़ियों से अपना घर सजाओगी—? ऐसा सुनते  ही  रूही खुशी में ज्योत्सना से लिपट पड़ी—। “ओ माय गॉड”

” थैंक यू मां—-!

 

“दोस्तों दीपावली तो हम अपने घर में बहुत ही खुशी और उत्साह के साथ  मनाते हैं– पर एक संकल्प लेना चाहिए कि हर दीपावली किसी जरूरतमंद के घर हम चाहे तो खुशियों का दीप जला सकते हैं जैसे रोड किनारे  रेरी वाले बहुत होते हैं  उनसे कुछ ना कुछ खरीद कर चाहे तो  उनकी सहायता कर सकते हैं । और फिर देखिए जितनी खुशी हमें अपने घर में महसूस होती है उतनी ही खुशी हमें दूसरों के घर में खुशियां बांटने से भी मिलती है। 

 दोस्तों अगर आपको मेरी कहानी पसंद आई हो तो प्लीज इसे लाइक्स शेयर और कमेंट्स जरुर कीजिएगा ।

धन्यवाद।

मनीषा सिंह

#खुशियों का दीप

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