एक दिन एक बीमार सी दिखने वाली बुजुर्ग महिला डॉक्टर के पास गई। डॉक्टर ने पूछा क्या तकलीफ है। वो औरत बोली मुझे कोई तकलीफ नहीं है बस मुझे भूलने की दवा चाहिए। मेरा बेटा मुझे छोड़ कर कमाने के लिए कोटा चला गया है, उसकी बहुत याद आती हैं। पहले कभी कभी घर आता था और फोन भी करता था
पर अब न घर आता है न फोन ही फोन करत है। 2 साल हो गए हैं उसे देखे और बात किये हुये। उस महिला की बात सुनकर डॉक्टर बेमन से बोला, ऐसी कोई दवा नहीं आत, तुम जाओ। डॉक्टर की बात सुनकर महिला थोड़ा जोर से बोली फिर मेरे बेटे ने दवा कहॉ से ली जो मुझे भूल गया। डॉक्टर थोड़ा सहम गया ओर फिर बात संभालते हुए बोला अगर आप चाहो तो
मैं आपके बेटे के लिए यादास्त बढाने की दवा दे देता हूँ। मुझे उसका पता दे दो। महिला फिर थोड़ा मायूस होकर बोली अगर पता मालूम होता तो मैं जाकर मिल आती। ये कहते कहते उसके अपने पल्लू से एक कागज का टुकड़ा निकाल कर आगे बड़ा दिया, उसमें फोन नंबर लिखा था। डॉक्टर बोला मैं पता खोजकर दवा भिजवा दूँगा, 10 -15 दिन मैं वो मिलने आ जायेगा। डॉक्टर भला इंसान था। उसके अपने दोस्तों/मिलने वालों से सम्पर्क
करके कोटा में उसका ठिकाना पता कर लिया। इस में लगभग 10 दिन लग गए। फिर डॉक्टर ने एक पत्र लिखकर अपने स्टाफ के साथ बताये पत्ते पर भिजवा दिया। शाम को वो महिला फिर से आई और अपने बेटे के बारे मैं पूछा। उसकी हालत देख कर डॉक्टर समझ गया कि अब इसके पास ज्यादा समय नहीं है। डॉक्टर बोला मेने पता लगा लिया है और दवा भी भेज दी है। आप 5-7 दिन और इंतजार करलो। अगर वो नही आता तो में जाकर उसको अपने साथ लेकर आऊगा।
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कुछ दिन बाद उस महिला की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई और पड़ोसी उसी डॉक्टर को बुला लाया। डॉक्टर महिला को देख ही रहा था कि एक नोजवान दरवाजे से अन्दर आया। उसके हाथ मैं वही लिफाफा था जो डॉक्टर ने भेजा था। उसे देखकर महिला के मुँह से आवाज निकली, बेटा तू आ गया। माँ ने बेटे को कस कर गले लगाया और वहीं उसकी बाहों में अपने प्राण त्याग दिए। ऐसा लगा शायद वो अपने बेटे का ही इंतजार कर रही थी। वो नोजवान कभी अपनी माँ को देख रहा था तो कभी आपने हाथ के लिफाफे को पर उसकी समझ में कुछ नहीं आ गया था। ये सब देख कर डॉक्टर भी अपने क्लिनिक पर आ गया।
एक दिन डॉक्टर ने यह किस्सा अपने दोस्त को सुनाया। उसके दोस्त ने पूछा आखिर तुमने पत्र मैं ऐसा क्या लिखा था कि बेटा मां से मिलने दौड़ा चला आया।
डॉक्टर ने लम्बी साँस ली और बोला, मैंने लिखा था कि हमारे बैंक मैं तुम्हारी मां की एफ.ड़ी. पूरी हो गई हैं, के. वाई. सी. करवाकर पैसे ले जाओ। मुझे इस झूठ का कोई मलाल नही। महिला को आखिरी समय में बेटे से मिलवा दिया। ऐसा लगता है कि महिला के प्राण अपने बेटे के लिये ही अटके हुऐ थे।
पता नहीं इंसान अपनों से ज्यादा पैसों को अहमियत क्यों देता हैं ??
आपकी राय मैं डॉक्टर ने जो किया क्या वो गलत था??
रचना
एम पी सिंह
स्वरचित,