स्वार्थी संसार – गीता यादवेन्दु : Moral Stories in Hindi

विनीता पिछले दस वर्षों से पल्लवी के घर काम करती थी। वह मेहनती और ईमानदार थी, इसलिए पल्लवी का उस पर पूरा विश्वास था। एक दिन सुबह काम के दौरान पल्लवी ने विनीता को उदास देखा। वह जानती थी कि उसकी जिंदगी हमेशा संघर्षों से भरी रही है, इसलिए वह समझ गई कि कुछ न कुछ जरूर हुआ होगा।

चाय पीते हुए पल्लवी ने उससे पूछा, “क्या बात है, विनीता? तुम इतनी परेशान क्यों लग रही हो?”

विनीता ने हल्के से मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उसकी आँखों में छिपी चिंता को छुपा नहीं पाई। वह पल्लवी से कहने लगी, “क्या बताऊं, बहनजी, हालात ही ऐसे हैं। दो बेटों की शादी में इतना खर्च हो गया, कर्ज चढ़ गया। अब बेटियों की शादी की चिंता लगी है, पर पहले बेटों का कर्ज चुकाना पड़ेगा।”

पल्लवी यह सुनकर हैरान हो गई। उसने गहरी सांस लेते हुए कहा, “विनीता, क्या ज़रूरत थी पहले बेटों की शादी करने की? पहले बेटियों की शादी कर लेती।”

विनीता थोड़ा सहम कर बोली, “क्या करती, बहनजी? दोनों लड़के अपनी-अपनी पसंद की लड़कियों के साथ घर बसा चुके थे। उन पर रोक-टोक लगाना मुश्किल हो गया था। लड़कों ने धमकी तक दी कि अगर उनकी शादियाँ नहीं की गईं तो वे घर छोड़ देंगे। मजबूरी में पहले उनकी शादियाँ करनी पड़ीं।” उसकी आवाज में दर्द था।

विनीता ने एक गहरी सांस ली और अपनी कहानी को आगे बढ़ाया, “हमने सोचा था कि बेटों की शादी के बाद हमारे कंधे का बोझ थोड़ा हल्का हो जाएगा। लेकिन अब हालात ये हैं कि दोनों अपने अपने बीवियों के साथ मस्त रहते हैं। ना उन्हें अपने मां-बाप का ख्याल है और ना अपनी बहनों की जिम्मेदारी का। बहनजी, दोनों बेटियां और हम दोनों पति-पत्नी ही कमाते हैं ताकि कर्ज चुका सकें और अपनी जिंदगी चला सकें।”

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पल्लवी को विनीता की बात सुनकर अजीब सा महसूस हुआ। वह समाज के इस स्वार्थी रूप को देखकर हैरान थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर यह कैसी परंपरा है जिसमें बेटों के लिए हर त्याग करना एक मां-बाप की जिम्मेदारी समझा जाता है। उसे ये देखकर बहुत दुःख हुआ कि जिस विनीता ने अपने बेटों की खुशी के लिए अपनी बेटियों के भविष्य को भी ताक पर रख दिया, वही बेटे अब उनके लिए कुछ भी नहीं कर रहे थे।

पल्लवी ने फिर उससे पूछा, “और दोनों बेटियाँ? वे क्या कहती हैं?”

विनीता ने आँखें पोंछते हुए कहा, “मेरी बेटियाँ तो बहुत समझदार हैं, बहनजी। वे जानती हैं कि हमारे पास ज्यादा पैसा नहीं है, इसलिए वे भी कुछ नहीं कहतीं। दोनों खुद मेहनत करती हैं, अपनी पढ़ाई और घर के कामों में भी हमारा हाथ बंटाती हैं। और कर्ज चुकाने में भी साथ देती हैं।”

पल्लवी की आँखों में विनीता के लिए एक नया सम्मान पैदा हो गया था। उसने महसूस किया कि विनीता जैसी महिलाओं का जीवन कितने त्याग और सहनशीलता से भरा होता है। वह सोच में पड़ गई कि कैसे एक माँ ने अपने बच्चों की खातिर सब कुछ सह लिया, और फिर भी समाज में बेटी को हमेशा पराई ही माना जाता है।

कुछ देर की चुप्पी के बाद पल्लवी ने कहा, “तुमने अपने बच्चों के लिए जो कुछ भी किया है, वह वाकई काबिल-ए-तारीफ है। पर अब मुझे लगता है कि तुम्हें अपनी बेटियों के बारे में भी सोचना चाहिए। आखिरकार, वे भी तुम्हारी संतान हैं।”

विनीता ने सिर हिलाते हुए कहा, “बहनजी, आप बिल्कुल सही कह रही हैं। लेकिन मेरे हालात ही ऐसे हैं कि चाह कर भी मैं बेटियों के लिए कुछ खास नहीं कर पा रही हूं। कभी-कभी सोचती हूं कि समाज में यह कैसी सोच है कि बेटों के लिए हम सब कुछ कुर्बान कर देते हैं, लेकिन बेटियाँ, जो सबसे ज्यादा सहनशील होती हैं, उनकी जिंदगी के बारे में कभी गंभीरता से नहीं सोचते।”

पल्लवी की आँखों में एक दृढ़ता आ गई। उसने ठान लिया कि वह विनीता की कुछ मदद करेगी। उसने अपने मन में यह तय किया कि चाहे जो भी हो, वह इस महिला की बेटियों की शादी का सपना पूरा करने में उसकी मदद करेगी। उसने तुरंत विनीता से कहा, “तुम चिंता मत करो। हम दोनों मिलकर इस समस्या का हल जरूर निकालेंगे। बेटियों का भविष्य उज्जवल बनाने के लिए मुझे जो भी करना पड़ेगा, मैं तुम्हारे साथ खड़ी रहूंगी।”

विनीता ने यह सुनकर भावुक होकर कहा, “बहनजी, आप तो मेरे लिए भगवान की तरह हो गईं। आज के जमाने में भला कौन किसी का साथ देता है?” उसकी आँखों में आँसू थे, पर इन आँसुओं में कहीं न कहीं उम्मीद की एक किरण भी थी।

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पल्लवी ने विनीता के हाथ को थामते हुए कहा, “यह दुनिया स्वार्थ से भरी जरूर है, लेकिन अगर हम एक-दूसरे की मदद करने की ठान लें, तो हम सबकी जिंदगी बेहतर हो सकती है। मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हारी बेटियों का भविष्य जरूर अच्छा होगा। तुमने जीवन भर अपने बच्चों के लिए कुर्बानी दी है, अब तुम्हारी बेटियों की जिंदगी में खुशियों की बारी है।”

विनीता ने भी एक नए संकल्प के साथ अपने जीवन को फिर से संवारने की ठानी। उसने सोचा कि वह अपने बेटों के बजाय अपनी बेटियों की खुशी के लिए काम करेगी और उनका भविष्य बनाएगी। पल्लवी की इस मदद से उसे एक नई ताकत और आत्मविश्वास मिला।

विनीता और पल्लवी की यह बातचीत उस दिन का अंत थी, लेकिन पल्लवी की कोशिशों से विनीता की बेटियों की पढ़ाई और उनके भविष्य के लिए अच्छे रास्ते खुल गए। विनीता ने भी महसूस किया कि अपनी बेटियों के लिए आत्मनिर्भरता की सोच रखना कितना जरूरी है।

विनीता अब पहले से कहीं ज्यादा मजबूत थी और उसके जीवन में भी एक नई दिशा आई थी। उसने अपनी बेटियों के लिए त्याग और संघर्ष करने की ठानी और उन्हें शिक्षा और आत्मनिर्भरता का महत्व समझाया। पल्लवी की उस एक बात ने विनीता के पूरे जीवन को बदल दिया।

मौलिक रचना 

      गीता यादवेन्दु

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