एक घुटन भरे रिश्ते से आजादी मिल ही गई – रंजीता पाण्डेय : Moral Stories in Hindi

आज सुकून मिल रहा है | घुटन नही हो रही है | इतना बड़ा फैसला लेना ,वो भी इस उम्र में | चौहतर, साल की उम्र कैसे निकल गई  ,पता ही नही चला | अब उम्र के आखिरी पड़ाव पे आराम से अपने श्री मान जी के साथ आराम से जीना चाहती हू|

अभी भी याद है जब से शादी कर के आई तब से सारा काम खुद ही करती | चाहती तो काम वाली रख सकती थी | लेकिन सोचती थी, चार पैसे बचेंगे तो बच्चो के काम आएगा | यही सोच के अपने  सारे अरमानो को दवाती रही | तीन बच्चे हो गए हमारे | तीनो की देख भाल , पढ़ना ,लिखना सब किया बच्चे बड़े हो गए | तीनो की शादी भी उन्ही के पसंद के करा दिया |

सब कुछ ठीक ठाक ही चल रहा है | अब मेरा शरीर जवाब दे रहा था | मैने बोला अपने बहुओं से बेटा तुम लोग भी घर के कामों में मेरी मदद कर दिया करो | सब के सब बोली हम लोगो से नही होगा मम्मी जी | आप कामवाली रख लो | मैने बोला ठीक है रख लो तुम लोग अपने काम के लिए | तुम्हारे पापा जी का काम मैं कर लूंगी | 

फिर क्या था रोज सुबह सुबह लड़ाई  झड़गे की आवाज बच्चो के रूम से आती | मेरा शर्ट कहा है? नाश्ता अभी तक रेडी नही हुआ? जूते भी साफ नही है ? इस तरह की छोटी छोटी परेशानियां बच्चो को होने लगी थी |देख के बुरा लगता लेकिन,  मैं और मेरे श्रीमान जी शांत ही रहते | बहुत घुटन सी होने लगी थी अब | 

श्रीमान जी रिटायर हो गए | रिटायर होने के बाद उनको जो पैसा मिला , बच्चो ने फोर्स करके उन पैसों से  बड़ा घर ले लिया |

फिर क्या था हम नए घर मैं शिफ्ट  हो  गए | सब खुश  थे | 

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अचानक श्रीमान जी की तबियत खराब हो गई | तुरंत हॉस्पिटल ले के  गए बच्चे | मैं उनके पास ही बैठी थी | धीरे धीरे बच्चे आपस में काना फूसी करने लगे | की इतने बड़े हॉस्पिटल में  आने की क्या जरूरत थी ? किसी छोटे  हॉस्पिटल में भी जा सकते थे? अब इतना पैसा कोन देगा? मैं तो नही दूंगा | 

मेरा  दिमाग ऐसी बातो को सुन के सुन्न हो गया | मन ही मन सोचा अच्छा हुआ मैं बीमार नही हुई | नही तो मेरे श्रीमान जी ये बात ऐसी बाते सुन के शायद मर ही जाते |

मैने अपने मन को मजबूत किया और एक बड़ा फैसला लिया | सभी बच्चो को अपने पास बुलाया | बच्चो को लगा मैं उनसे पैसे की बात करने के लिए बुला रही हू | सभी मेरे कुछ बोलने से पहले ही बोलने लगे | हम लोगो को पास पैसे नही है | आप सरकारी हॉस्पिटल में एडमिट करा दो पापा जी को  | 

मैने तुम लोगो को इस लिए बुलाया है की, तुम लोग अपना सामान पैक करो, और पुराने घर में चले जाओ | क्यों की अब तुम्हारे पापा जी का इलाज लंबा चलेगा | जिसके  लिए मुझे पैसे  चाहिए | जो की तुम लोग दे नही सकते | मैं नए घर में तुम्हारे पापा जी को ले के रहूंगी | बाकी तुम लोगो का रूम किराए पे दूंगी ताकि हम दोनो का खर्चा चल सके | तुम लोग जाओ यहां से | 

आज मैने बच्चो को घर से ही नही बल्कि  अपने दिल से भी निकल दिया | खुश हू मै ” एक घुटन भरे रिश्ते से आखिर  आजादी मिल ही गई “

जब बच्चे अपने मां बाप को बीमार होने पे प्यार के दो शब्द नही बोल सकते , ऐसे रिश्तों का जिंदगी में क्या काम |

 

रंजीता पाण्डेय

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