परफ्यूम की खुशबू घर मे आते ही दोनो दीदियाँ कह उठतीं ” अनिल भईया आ गये”
और अनिल भईया के आते ही घर में खुशी की लहर दौड़ जाती। मैं तो बहुत छोटी थी, पर सब के मुँह से सुनती आ रही हूँ। हमारा संयुक्त परिवार था जिसमें नौकरी के लिये अलग अलग शहरों में रहते हुए भी हम सब बँधे हुए थे। बड़े ताऊ जी गोरखपुर में थे, और छोटे ताऊ जी के बेटे ” नरेंद्र भईया” भी उन्ही के साथ थे। अनिल भईया को घर पर लाने वाले यही नरेंद्र भईया थे। मोहक व्यक्तित्व के स्वामी अनिल भईया ने बहुत जल्दी घर में
अपना स्थान बना लिया। स्मार्ट अनिल भईया मेरे बड़े भईया के दोस्त और अम्मा के लड़के का रोल शीघ्र ही निभाने लगे। ऐसे में जब राखी आई तो अनिल भईया का दीदी लोगों से प्रश्न था ” मुझे राखी नही बाँधोगी, बहन” वो अक्सर उन लोगों को उनके नाम की जगह बहन से ही संबोधित करते थे। और दीदी लोगों ने राखी बाँध दी।
एक तार का क्या महत्व है रिश्तों में ये तो वही जानता है जो इसे जीता है। अनिल भईया भी अब उसी श्रेणी में आ गये थे। अब बातें व्यक्तिगत स्तर पर होने लगीं, भाई हो और भाभी को देखने की लालसा ना हो ऐसा कैसे हो सकता है? दीदी लोग भाभी से मिलने की जिद करती तो भईया अपनी बेचारगी जताते कि वो बहुत अमीर घर की है, वो हम सब के साथ adjust नही कर पाएगी। दो कुत्ते लिये, बेलवाटम शर्ट पहने एक लड़की की फोटो
दिखाई गई कि यही हैं भाभी। दीदी लोगो को भी लगा कि हाँ शायद भाभी हमारे साथ adjust नही कर पाएंगी।वो तो भईया ही हैं इतने down to earth ….!भईया फलों की पेटी ले कर आते और बताते कि अभी अभी मम्मी पापा लैंड किये हैं और वो ये फल की पेटी ले के आये थे। पूरा घर सम्मोहित …. ! इतने बड़े घर का लड़का और हमारे जैसे निम्नतर मध्यम वर्गीय परिवार की सेवा में लगा हुआ है।
इन्ही सब के बीच, मेरे बड़े भतीजे का जन्म हुआ। मेरे पोलियो का अटैक आने के बाद से परिवार जिस दुखद काल में चल रहा था उससे उबरने का एक बहुत बड़ा आश्रय मिला सभी को। घर में खुशी की लहर दौड़ गई। उसका जन्मोत्सव होना था और हमारे परिवार का गेट टुगेदर। खूब सामान खरीदे जा रहे थे। सभी उत्साह पूर्ण भागदौड़ मे लगे थे। अम्मा को चूड़ियाँ खरीदनी थी, वे अनिल भईया के साथ जा रही थीं और उधर से बड़े ताऊ
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जी गोरखपुर से आ रहे थे। अम्मा को अनिल भईया के साथ जाते देख ताऊ जी के तेवर चढ़ गए। ” वीरेंद्र की अम्मा किस के साथ जा रही थी।” उन्होने बाबूजी से प्रश्न किया। बाबूजी ने अनिल भईया का परिचय दिया। लेकिन अनिल भईया तो असल में ताऊ जी के पास का ही प्रोडक्ट थे न। ताऊ जी उनके विषय में हम से अधिक जानते थे।
उन्होने बताया कि जिस लड़के को तुम लोगो ने अपने परिवार का सदस्य बना रखा है, उसने असल में अपनी पत्नी को छोड़ दिया है। सो काल्ड भाभी जी की फोटो दिखाई गई तो पता चला कि ये तो मील के हेड आफ डिपार्टमेंट की बेटी है। जहाँ अनिल भईया का अक्सर आना जाना होता है। बिहार के एक साधारण परिवार के अनिल भईया यहाँ घर छोड़ के आ गए हैं।
एक मिनट में परिवार के लिये हीरो भईया विलेन बन गए। जो दीदी लोग बड़े भाई की सुरक्षात्मक जगह अनिल भईया में पाती थीं वो उनसे डरने लगीं।
सब के चेहरे पर मन के भाव अनिल भईया को बताने लगे कि अब कुछ गड़बड़ है। लेकिन अम्मा अपना व्यवहार सामान्य रखे रहीं।
सभी लोग अनपढ़ फिल्म देखने गए अनिल भईया फिल्म बीच में ही छोड़ आये।
दूसरे दिन फिर उनका आगमन हुआ। अम्मा ने पूँछा ” अनिल कल तुम फिल्म बीच में ही क्यों छोड़ आये थे”
भईया ने बात का उत्तर ना देते हुए कहा ” मम्मी मुझे कई दिन से आप से कुछ कहना चाहता हूँ,लेकिन कह नही पा रहा हूँ।”
“तो लिख के दे दो” अम्मा ने सुझाव दिया।
अनिल भईया सिर नीचे कर के अपनी कहानी बताने लगे। उन्होने बताया कि उनकी शादी हो चुकी है और एक बेटा भी है। बिहार में शादी के बाद एक माह तक दामाद ससुराल में ही रहता है। पत्नी का साथ उतने दिन का ही रहा है उनका। इसी बीच उन्हे पता चला कि लड़की बिलकुल पढ़ी लिखी नही है, और वो गर्भवती पत्नी को छोड़ यहाँ चले आये।भईया कहानी सुना रहे थे और दोनो दीदियाँ और अम्मा की आँखें गंगा जमुना हो रहीं थी। इतनी सी बात की एक औरत को इतनी बड़ी सजा….? दीदी उठ कर अपने कमरे में चली आईं और फूट फट कर रोने लगीं।
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” मुझे तेरी राखी की कसम है बहन मैं होली तक तुम लोगो के साथ तुम्हरी भाभी को ले आऊँगा।”
और वो बिहार चले गए।
इतना झूठ बोलने वाले आदमी के लिये कसम का क्या महत्व? किसी को विश्वास नही था,लेकिन होलिका दहन के दिन भईया एक सुंदर सी औरत और ८ साल के बच्चे के साथ रिक्शे से उतर रहे थे। किसी की राखी ने किसी की होली मनवा दी थी …….!
इस बात को आज लगभग २९ साल हो गये। दोनो दीदियों की विदाई की चूनर भईया ही लाए। भाई के किसी भी कर्तव्य मे वो पीछे नही रहे। वो बच्चा जो आठ साल का था, आज उसके अपने बच्चे आठ साल से ऊपर के हो रहे हैं।
और ये सब किया राखी के एक तार ने। राखी के तार से संबंधित दूसरी कहानी यहाँ भी पढ़ सकते हैं।
लेखिका : कंचन सिंह चौहान