अनकहा बंधन (भाग-1) – श्वेता अगवाल : Moral Stories in Hindi

“मम्मा, मेरी ‘बेड टी’।” रूही लगातार चिल्लाए जा रही थी।

“ये ले तेरी ‘बेड टी’। इत्ती बड़ी हो गई लेकिन अक्ल ढेले भर की भी नहीं। अब तुझे मम्मा को सुबह की चाय बनाकर पिलानी चाहिए। उल्टे खुद ही ‘बेड टी’- ‘बेड टी’ चिल्लाए जा रही है।”

“क्या दीदी, अब सुबह-सुबह प्रवचन सुनाकर मूड मत खराब करो।अब तुम्हें तो पता ही है जब तक मैं मम्मा के हाथों की चाय न पी लूँ ,मेरा दिन ही नहीं शुरू होता।”

“बाय दी वे दीदी, ये यह सब बात छोड़ो और ये बताओ आप इतनी सुबह-सुबह यहांँ कैसे? जीजू ने आपको आने कैसे  दे दिया! उनका तो आपके बिना मन ही नहीं लगता। वो क्या कहते हैं-

तेरे बिन नै लगता दिल मेरा ढोलना
तेरे बिन नै लगता दिल मेरा ढोलना
सब छड जायें तू ना मेनू छोड़ना
तेरे बिन नै लगता दिल मेरा ढोलना
नहीं लगता, नहीं लगता, नहीं लगता
हो नहीं लगता, नहीं लगता, नहीं लगता।।”

कहकर रूही जोर-जोर से हंँसने लगी।

“रूही की बच्ची, तू रुक मैं तुझे अभी बताती हूंँ।” उसकी ओर पिलो फेंकते हुए माया ने कहा।

“मम्मा, बचाओ। देखो, दीदी मुझे मार रही है।” माया की ओर वापस पिलो फेंकते हुए रूही ने कहा।

“क्या माया, मैंने तुझे इस जगाने भेजा था और तू इसके साथ खेल में लग गई। इतनी बड़ी हो गई हो दोनों, लेकिन बचपना अभी तक नहीं गया। एक की शादी हो गई और दूसरी की होने वाली है लेकिन अक्ल तो मानो घास चरने गई है दोनों की। ये नहीं कि इतना काम है तो मांँ की मदद ही कर दे। आपस में ही मस्करी में लगी है दोनों।” रमा ने गुस्साते हुए कहा।

“मम्मा, शांत हो जाओ। सब हो जाएगा अभी तो सिर्फ नौ बजे हैं। वो लोग शाम में पाँच बजे तक आएंँगे।” माया ने रमा को चेयर पर आराम से बैठाते हुए कहा।

“कौन आएगा शाम में? अरे! कोई मुझे भी तो बताओ।”

“तुझे देखने के लिए लड़के वाले। हफ्ते भर पहले ही तो तुझे बताया था। अब यह मत कहना कि भूल गई।” रमा ने झुंझलाते हुए कहा।

“मम्मा, सच्ची भूल गई। आज तो हम सब फ्रेंड्स का मूवी का प्रोग्राम है। प्लीज, उन्हें और किसी दिन बुला लो। मैं तो कहती हूंँ अगले साल ही बुला लो। अभी तो मेरे खेलने- खाने के दिन हैं।” रूही ने मासूम सा चेहरा बनाते हुए कहा।

उसे ऐसे देख माया और रमा दोनों की हंँसी छूट गई।

फिर रमा ने सीरियस होते हुए कहा “रूही बेटा, अब ये सब मजाक- मस्ती छोड़। जा, जल्दी से रेडी होकर आ। मैंने उबटन भी बना कर रखा है और माया, तू मेरे साथ किचन में चल बहुत काम पड़ा है।” ऐसा कह कर रमा माया को लेकर किचन में चली गई।

“माया, मुझे तो इस रूही की बहुत चिंता होती है। किसी चीज को लेकर सीरियस ही नहीं है। तू जब इसकी उम्र में थी तो कितनी समझदार थी। पूरा किचन संभाल लेती थी और ये महारानी चाय, कॉफी ही ढंग से बना ले तो बहुत बड़ी बात है।” कचोरियों में मसाला भरते हुए रमा गहरी सांँस लेकर बोली।

“मम्मा, तुम बेकार ही चिंता कर रही हो। एक बार संबंध पक्का तो हो जाने दो सब सीख जाएँगी। मैंने उसके लिए बहुत ही अच्छी कुकिंग क्लास देख कर रखी है एक महीने में ही एक्सपर्ट बन जाएगी अपनी रूही।”

“जाएगी तब ना, एक्सपर्ट बनेगी। पहले भी तो कितनी ही क्लासेस में भेजने की ट्राई की है तूने।”

“एक बार संबंध तो पक्का हो जाने दो फिर वह तो क्या उसका भूत भी जाएगा।”

“चलो देखते हैं।” रमा ने हंँसते हुए कहा।

“किसे देखने की बात हो रही है, मम्मा?” रूही ने किचन की ओर आते हुए कहा।

क्रमशः

दोस्तों ,यह मेरी नई धारावाहिक कहानी है। कृपया, पढ़ें और समीक्षा के द्वारा अपने सुझाव अवश्य दें। 

धन्यवाद ।

आप सबके समीक्षा और सुझाव के इंतजार में –

श्वेता अग्रवाल

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