Moral Stories in Hindi : ” अरे-अरे..ज़रा देखिये तो…लगता है,बाहर कोई महिला बेहोश हो गई है…।” ‘ संजिवनी केमिस्ट ‘ पर दवाइयाँ खरीदते हुए ग्राहकों में से एक ने कहा तो नम्रता ने पीछे मुड़कर देखा।शाॅप के बाहर लगी भीड़ को देखकर उत्सुकतावश वह एक हाथ में पर्स-दवा थामकर दूसरे हाथ से लोगों के बीच जगह बनाती हुई भीड़ के अंदर जाकर देखा तो दंग रह गई।
किसी से पानी माँगकर उसने महिला के चेहरे पर छींटे मारे।उम्रदराज़ महिला ने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोली।वह सामने बैठी लड़की को पहचानने का प्रयास करने लगी।नम्रता कुछ कहती,उनके मुँह से निकल पड़ा, ” तुम नम्रता ही हो ना।”
” हाँ माया आँटी…मैं नम्रता ही हूँ।आप ठीक तो हैः…आईये…वहाँ चलकर बैठते हैं।” नम्रता ने महिला का पर्स लिया और उन्हें शाॅप के बाहर रखी कुरसी पर बिठाते हुए पूछी,” आप चाय पियेंगी आँटी…।”
“नहीं…अब मैं ठीक हूँ।थकान-से थोड़ा सिर घूम गया था।अब घर जाना है।तुम क्या इसी शहर में हो?”
” हाँ आँटी…आइये ना किसी रोज़..।”कहकर उसने उन्हें अपना पता और फ़ोन नंबर दिया और चली गई।
माया जी ने एक ऑटोरिक्शा बुलाया और उसे विज्ञान नगर’ चलने को कहकर बैठ गई।ऑटो का पहिया आगे बढ़ता जा रहा था और वे अपने जीवन के दस साल पीछे जा रहीं थीं जहाँ उनका भरा-पूरा परिवार था।एक बड़ी कोठी की मालकिन थी वे।स्वभाव से सरल व दयालु उनके पति महेन्द्र बाबू हमेशा उनकी हाँ में हाँ मिलाते थें।
गौर-वर्ण और आकर्षक व्यक्तित्व की माया जी का मायका धनाड्य था, ये कोठी उन्हें दहेज़ में ही मिली थी।गाँव में ससुर की भी बहुत संपत्ति थी जिसके अकेले वारिस उनके पति ही थें।समाज में उनका काफ़ी रुतबा था।ईश्वर की कृपा से उन्हें दो पुत्र और एक पुत्री की माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।बड़ा बेटा सुशांत का अपना कारोबार था।उसकी पत्नी सुकन्या एक सुशील बहू, समझदार पत्नी और दो बच्चों की माँ थी।बेटी अराध्या का उन्होंने ग्रेजुएशन पूरा होते ही शहर के एक बड़े बिजनेसमैन के इकलौते पुत्र आकाश के साथ कर दिया था जो अपने पिता के कारोबार को संभाल रहा था।सबसे छोटा निशांत उनका दुलारा था।आईआईटी मद्रास से इंजीनियरिंग पास करके वह शहर के एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने लगा था।
अब माया जी के पास निशांत के विवाह के लिये फ़ोन आने लगे।उन्होंने अपनी छोटी बहू के लिये बहुत सारे सपने संजों रखे थें।कई परिवारों से मिलने और लड़कियों की तस्वीरें देखने के बाद उन्होंने शहर के एक हाई सोसायटी फ़ैमिली की इकलौती बेटी मोना को अपने निशांत के लिए पसंद किया और जब बेटे को मोना से मिलने के लिये कहा तो उसने कहा,” मम्मी, मैं नम्रता से प्यार करता हूँ और उसी से शादी करुँगा।”
बेटे की बात सुनकर माया जी के क्रोध की सीमा न रही।दरअसल नम्रता के पिता एक सरकारी दफ़्तर के मामूली-से मुलाज़िम थें। माया जी का भला उनके साथ क्या मेल? बचपन में निशांत और नम्रता एक ही स्कूल में पढ़ते थें।बचपन की दोस्ती कब प्यार में बदल गई,उन्हें पता ही न चला।बीएड करके नम्रता स्कूल में पढ़ाने लगी थी।निशांत अपनी मम्मी से बात करता,तब तक में उन्होंने ही मोना का ज़िक्र छेड़ दिया तो निशांत को नम्रता के बारे में बताना पड़ा।
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पश्चाताप की आग (भाग 2) – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi
विभा गुप्ता