हम बूढ़े भले है पर लाचार नही ( भाग 3 ) – संगीता अग्रवाल : short moral story in hindi

” वकील को पर क्यो ?” ममता और राघव दोनो चौंक कर बोले।

” अपनी वसीयत करने के लिए !” शारदा जी वापिस सोफे पर बैठती हुई बोली।

” वसीयत पर क्यो आपका इकलौता बेटा होने के नाते सब पर मेरा ही तो अधिकार है !” राघव एकदम से बोला।

” वाह बेटा अधिकार याद रहा पर कर्तव्य ? उसका क्या !” शारदा जी बोली।

” हां तो हम कर्तव्य भी तो निभा रहे है ना !” इस बार ममता बोली।

” हां मां को एक कोठरी मे पटक देना वो भी घर की नौकरानी के भरोसे । उसकी बीमारी मे भी उसके कमरे मे झाँक कर ना देखना कि वो जिंदा है या मर गई। उसे सबसे अलग थलग रखना मानो वो माँ नही कोढ की बीमारी है । अगर यही फर्ज निभाना है तो ये तो अकेले रहते हुए भी मैं कर सकती हूँ ।

इसलिए मैने निश्चय किया है घर को किराये पर देने का तुम लोग आज ही मेरी कोठरी मे अपना सामान ले जाओ मैं एक कमरा अपने लिए रखकर घर का बाकी हिस्सा किराये पर दे रही हूँ जिससे मेरे खर्च निकल सके और तुम्हे तुम्हारे फर्ज से मुक्ति मिल सके !” शारदा जी के इतना बोलते ही राघव और ममता के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी। दोनो तेजी से माँ के पास आकर बैठ गये उस माँ के पास जिससे बात किये भी उन्हे जाने कितने दिन हो गये थे। 

” माँ ये क्या कह रही हो आप उस कोठरी मे हम कैसे रह सकते है और आपको तो पता है आपका बेटा इंजीनियर है उससे मिलने वाले आते रहते है आपकी बहू की सहेलियाँ आती है हमारी क्या इज्जत रह जाएगी आप ये भी तो सोचिए और फिर आपके पोतो की पढ़ाई लिखाई !” राघव माँ के कांधे पर हाथ रख बोला।

” वाह बेटा जब माँ वहाँ रह रही थी तब कोई दिक्कत नही अब खुद को रहना पड़ेगा तो हवा खराब हो रही तुम दोनो की और कौन से पोते जिन्हे तुम मेरे पास तक नही आने देते उनके बारे मे मैं क्यो सोचू मैने निश्चय कर लिया बस ये घर किराये पर देने का और मेरे बाद इस घर को अनाथाश्रम को दान करने का जिसकी देखभाल कमला करेगी !” शारदा जी ने कहा।

” माँ हमें माफ़ कर दो सच मे हम स्वार्थ मे अंधे हो गये थे और इस घर की मालकिन और अपनी माँ का ही अपमान कर बैठे हमें माफ़ कर दीजिये पर हमें हमारी गलती की इतनी बड़ी सजा ना दे !” ममता हाथ जोड़ते हुए बोली।

सच मे रिश्ते कितने खोखले हो गये है आज जब घर हाथ से जाता दिख रहा तो उन्हे उस माँ के आगे हाथ जोड़ने से भी गुरेज नही जिससे उन्हे बात करना तक गँवारा नही । 

” ठीक है क्योकि तुम मेरे बच्चे हो सिर्फ कहने को वरना तुमने बच्चे होने का कोई फर्ज नही निभाया सिर्फ एक खोखला रिश्ता है तुम्हारे साथ मेरा ..पर फिर भी मैं माँ हूँ मैने तो कभी तुम्हे खुद से अलग नही माना तो उसी रिश्ते के नाते मैं तुम्हे एक मौका देती हूँ ।

मै तुम्हारे वाले कमरे जोकि पहले मेरा था उसमे रहूंगी बाकी बचे दो कमरे तुम लोगो के है और हाँ वो मेरी कोठरी भी ले लेना । उपर की दोनो मंजिल अब मैं किराये पर चढ़ाऊंगी क्योकि मुझे भी पैसा चाहिए। अगर मुझे तुम्हारी तरफ से जरा भी उपेक्षा मिली तो मै फैसला लेने मे एक पल की देर नही करूंगी । चलो अब ऊपर से अपना सामान हटा लो ।” शारदा जी ने कहा।

” पर माँ केवल दो कमरे ?” ममता बोली।

” हाँ तो एक तुम्हारा एक तुम्हारे बच्चो का फिर ये बैठक भी तो है अगर मंजूर नही तो तुम किराये का घर देख सकते हो !” शारदा जी सख्ती से बोली । हालाँकि वो मन ही मन तड़प रही थी अपने बच्चो से ऐसा व्यवहार करती पर अब अपना महत्व दिखाने के सिवा कोई चारा भी तो नही छोड़ा था बच्चो ने। 

” नही नही हम दो कमरों मे रह लेंगे ज्यादा हुआ तो आपकी कोठरी को सही करा लेंगे !” राघव एकदम से बोला।

अगले तीन दिनों मे शारदा जी ने ऊपर की मंजिल किराये पर दे दी। साथ ही अपनी वसीयत भी बना दी जिसमे घर का अस्सी प्रतिशत हिस्सा उन्होंने अपने दोनो पोतो को दिया बाकी बीस प्रतिशत कमला को क्योकि इतने साल निस्वार्थ सेवा तो उसी ने की उनकी बेटा बहू तो अब भी स्वार्थवश उनकी सेवा कर रहे थे। हालाँकि उन्होंने वसीयत की भनक अभी अपने बेटा बहू को नही लगने दी थी। 

दोस्तों जब बच्चे अपने माता पिता का ध्यान ना रखे तो माता पिता का फर्ज है ऐसे खोखले रिश्तो को उनकी औकात याद दिला दे और उन्हे अपना महत्व बताये कि भले हम बूढ़े हो गये है पर लाचार नही। 

क्या आप शारदा जी के फैसले से इत्तेफाक रखते है ? 

 

आगे की कहानी पढ़ने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें

हम बूढ़े भले है पर लाचार नही ( भाग 2 )

 हम बूढ़े भले है पर लाचार नही ( भाग 2 ) – संगीता अग्रवाल : short moral story in hindi

धन्यवाद आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!